पारदर्शी मतदाता सूची: मजबूत लोकतंत्र की दिशा में बड़ा कदम

Update: 2025-10-30 06:11 GMT

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ हर वोट की अहमियत है। हर मतदाता की भागीदारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ें मजबूत करती है। लेकिन यदि मतदाता सूची अशुद्ध या अपूर्ण हो, तो लोकतंत्र की यह सबसे मूलभूत प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ जाती है।

इसी पृष्ठभूमि में चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रव्यापी विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) का ऐलान एक ऐतिहासिक और दूरदर्शी पहल के रूप में सामने आया है। मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के नेतृत्व में आयोग ने यह सुनिश्चित किया है कि देशभर में मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण हो, ताकि हर वैध मतदाता का नाम दर्ज हो और हर अवैध नाम हटाया जा सके।

बिहार में इस प्रक्रिया का पहला चरण पूरा हो चुका है और उसके परिणाम उत्साहजनक हैं। साढ़े सात करोड़ मतदाताओं वाले इस राज्य में 90 हजार बीएलओ और सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की भागीदारी से मतदाता सूची को शुद्ध और पारदर्शी बनाया गया है। बिहार का यह अनुभव पूरे देश के लिए एक मिसाल बन सकता है।

दरअसल, मतदाता सूची का शुद्धिकरण केवल प्रशासनिक कवायद नहीं है, यह लोकतंत्र की साख से जुड़ा सवाल है। पिछले 21 वर्षों में (2002 से 2023 तक) देश की जनसंख्या में व्यापक बदलाव हुए हैं। पलायन, मृत्यु और निवास परिवर्तन जैसे कारकों के कारण लाखों लोगों के नाम कई बार एक से अधिक स्थानों पर दर्ज हो गए हैं। वहीं, कुछ नाम ऐसे भी हैं जो अब सूची में नहीं होने चाहिए, क्योंकि वे व्यक्ति अब इस दुनिया में नहीं हैं। दूसरी ओर, कई नए युवा मतदाता अब तक सूची में शामिल नहीं हो पाए हैं।

यदि एक सटीक और अद्यतन मतदाता सूची तैयार नहीं की जाती, तो चुनाव परिणामों की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है। इस पहल का एक और महत्वपूर्ण पक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा है। देश के सीमावर्ती और संवेदनशील इलाकों में वर्षों से अवैध घुसपैठ की समस्या रही है। कई घुसपैठिए स्थानीय पहचान बनाकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा लेते हैं। इससे न केवल वे चुनावी प्रक्रिया में अनुचित ढंग से भाग लेने लगते हैं, बल्कि कई बार यह राष्ट्रीय हितों के लिए भी चुनौती बन जाता है।

जब चुनाव आयोग पूरी ईमानदारी से हर नाम की जांच कर रहा है, तो यह कदम लोकतंत्र को घुसपैठ और फर्जी पहचान से मुक्त करने की दिशा में अहम साबित होगा। आयोग ने शिकायत और अपील की पारदर्शी व्यवस्था भी बनाई है। यदि किसी नागरिक को लगता है कि उसका नाम गलत ढंग से सूची से हटाया गया है, तो वह पहले जिलाधिकारी और फिर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी से अपील कर सकता है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि कोई वैध मतदाता अधिकार से वंचित न रहे और साथ ही कोई अवैध नाम सूची में न रह पाए।

चुनाव आयोग का यह अभियान केवल तकनीकी नहीं, बल्कि नैतिक सुधार की दिशा में भी एक कदम है। जब मतदाता सूची निष्पक्ष और पारदर्शी होगी, तब जनता का विश्वास चुनाव प्रणाली पर और अधिक बढ़ेगा। यह विश्वास ही लोकतंत्र की असली पूंजी है।

अब आवश्यक है कि इस राष्ट्रव्यापी एसआईआर अभियान में सभी नागरिक, राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन सहयोग करें। हर व्यक्ति का दायित्व है कि वह अपने नाम की स्थिति जांचे, आवश्यक सुधार कराए और अपने आस-पास के लोगों को भी इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिए प्रेरित करे।

लोकतंत्र की मजबूती केवल संस्थाओं से नहीं, बल्कि नागरिकों की सजगता से आती है। मतदाता सूची का शुद्धिकरण केवल एक प्रशासनिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत के लोकतांत्रिक चरित्र की रक्षा का अभियान है। इससे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी, फर्जी मतदान रुकेगा और घुसपैठियों की भूमिका सीमित होगी। मुख्य चुनाव आयुक्त और उनकी टीम का यह प्रयास सराहनीय है, और पूरे देश को इसके साथ खड़ा होना चाहिए।

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