देश के कई हिस्सों, विशेषकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और इससे सटे इलाकों के प्रमुख शहरों में, हर साल एक निश्चित समय पर वायु प्रदूषण का स्तर 'गंभीर' या 'बेहद गंभीर' श्रेणी में पहुंच जाता है। यह स्थिति अब एक वार्षिक त्रासदी बन चुकी है, जिसे केवल मौसम की मार मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब समय आ गया है कि प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए तत्काल प्रभाव से एक जनस्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाए और इससे निपटने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास किए जाएँ।
उल्लेखनीय है कि भारतभर में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने की मांग करते हुए शीर्ष न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई है। यह याचिका ल्यूक क्रिस्टोफर काउंटिन्हो द्वारा दायर की गई है। क्रिस्टोफर का कहना है कि देश में वायु प्रदूषण का स्तर जनस्वास्थ्य आपातकाल के अनुपात तक पहुंच गया है, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लोगों की सेहत पर गंभीर असर पड़ रहा है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि अकेले दिल्ली में करीब 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को इतना नुकसान हो चुका है कि उनकी रिकवरी मुश्किल है। इसकी पुष्टि सरकारी और चिकित्सीय अध्ययनों से भी हुई है। यह आंकड़ा केवल दिल्ली का है; यदि पूरे देश का आंकड़ा जोड़ा जाए, तो स्थिति और गंभीर प्रतीत होती है।
दरअसल, वायु प्रदूषण कोई सामान्य पर्यावरणीय समस्या नहीं है। यह एक मूक हत्यारा है, जो सीधे तौर पर हमारे जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में भी उल्लेख है। उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से कई गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जिनमें अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, सीओपीडी, हृदय रोग, स्ट्रोक और फेफड़ों का कैंसर शामिल हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि अत्यधिक प्रदूषित शहरों में रहने वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा कई वर्षों तक कम हो सकती है। यह बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष रूप से खतरनाक है।
समस्या के मूल कारण, जैसे वाहनों का धुआँ, औद्योगिक उत्सर्जन, पराली जलाना और निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल, दशकों से ज्ञात हैं। सरकारें समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाती रही हैं और कुछ प्रतिबंध भी लगाए हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में ईपीसीए द्वारा निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन ये प्रयास समस्या के स्थायी समाधान के लिए अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।
एक जनस्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा सरकारी तंत्र को इस समस्या से निपटने के लिए आवश्यक कठोर और त्वरित कदम उठाने हेतु बाध्य करेगी। यह केवल कुछ दिनों के लिए स्कूल बंद करने या निर्माण कार्य रोकने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें दीर्घकालिक नीतियां भी शामिल होनी चाहिए। उदाहरण स्वरूप:
सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करना।प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई और जुर्माना।पराली जलाने जैसी प्रथाओं के स्थायी विकल्प खोजना।नागरिकों के बीच मास्क के उपयोग और व्यक्तिगत सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
प्रदूषण मुक्त जीवन हर नागरिक का मौलिक अधिकार है। सरकारों और संबंधित अधिकारियों को इस अधिकार की रक्षा के लिए सतर्क और सक्रिय होना होगा। केवल बयानबाजी या कामचलाऊ उपाय से काम नहीं चलेगा। इस गंभीर संकट को राष्ट्रीय जनस्वास्थ्य आपातकाल मानकर ही हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित कर सकते हैं।