उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से पूछा- एक राष्ट्र, एक पहचान में क्या गलत है

उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार से पूछा- एक राष्ट्र, एक पहचान में क्या गलत है
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र की आधार योजना के खिलाफ रुख के लिए पश्चिम बंगाल सरकार से बुधवार को सवाल पूछा कि सभी भारतीयों के लिए एक राष्ट्र, एक पहचान रखने में क्या गलत है। ममता बनर्जी सरकार ने आधार योजना और इसको कानूनी जामा पहनाने वाले 2016 के कानून का विरोध किया था।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि भारतीयता का किसी खास तरह की पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। राज्य सरकार ने आधार योजना का कुछ खास आधार पर विरोध किया था। उसने कहा था कि यह एक राष्ट्र, एक पहचान की ओर ले जाएगा।

पीठ ने कहा कि हां, हम सब इस देश के नागरिक हैं और भारतीयता का इस तरह की पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। पीठ में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविल्कर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण भी शामिल हैं। न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से पूछा कि किस बात पर उन्होंने एक राष्ट्र, एक पहचान की अवधारणा के बारे में सोचा।

सिब्बल ने कहा हम सब गर्व से भारतीय और भाव प्रवणता से भारतीय हैं, लेकिन आधार में सबकुछ गलत है। भारतीयता का पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। हम इस बहस में इसलिये पड़ रहे हैं क्योंकि यह कानूनी की बजाय राजनैतिक अधिक है। हम इस आधार से कहीं अधिक हैं। बस।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने अपनी दलीलों को जारी रखते हुए आधार अधिनियम को पढ़ा। उन्होंने कहा कि यह विकल्प के संबंध में गलत तरीके से ड्राफ्ट किया गया कानून है क्योंकि आधार के अतिरिक्त किसी व्यक्ति की पहचान की प्रामाणिकता की कोई गुंजाइश नहीं है।

उन्होंने कहा कि आधार अधिनियम किसी व्यक्ति की पहचान स्थापित करने के लिये अन्य विकल्पों की कोई गुंजाइश की बात नहीं करता है। उन्होंने कहा कि बैंक कहते हैं कि वे कोई अन्य सूचना या कार्ड नहीं चाहते हैं और सिर्फ आधार संख्या मांगते हैं।

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