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देश को आजाद न्यायपालिका की जरुरत, कोर्ट का काम शासन चलाना नहीं : मंत्री रविशंकर प्रसाद

देश को आजाद न्यायपालिका की जरुरत, कोर्ट का काम शासन चलाना नहीं : मंत्री रविशंकर प्रसाद
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पटना। केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्री और इलेक्ट्रानिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है देश को चलाने के लिए आजाद न्यायपालिका की जरुरत है। इसके लिए देश को गर्व है। देश में एक से एक निष्पक्ष जजों के होने का गर्व है। केन्द्र सरकार न्यायपालिका के प्रति सम्पूर्ण सम्मान भाव रखती है, पर व​ह मानती है कि कोर्ट को शासन चलाने और कानून बनाने का अधिकार नहीं है । यह अधिकार पांच वर्षों के लिए चुने लोगों से बनी सरकार को ही है। शासन चलाने का अधिकार जनता के प्रति सीधे तौर पर उत्तरदायी लोगों का है जिन्हें पांच साल के बाद बदला जा सकता है।

केन्द्रीय विधि मंत्री यहां राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के भारत प्रक्षेत्र के छठा सम्मलेन में 'वि​धायिका और न्यायपालिका : लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण स्तम्भ' विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। विधानसभा के सभावेश्म में आयोजित चार दिवसीय सम्मेलन की लोकसभा की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन अध्यक्षता कर रही हैं । 52 देशों की प्रतिनिधि संस्था सीपीए की कार्यकारिणी समिति की अध्यक्ष एमीलिया एम लिफाका भी गणमान्य प्रतिनिधि के रूप में इस सम्मेलन में शरीक हुई हैं|

केन्द्रीय विधि मंत्री ने कहा ​कि हमारे संविधान निर्माताओं को यह आशंका थी कि आगे यदि लोकतंत्र के एक अंग के पास बहुत अधिक शक्ति हो तो हमारी लोकतांत्रिक राजव्यवस्था को खतरा हो सकता है। इसलिए उन्होंने ऐसी पद्धतियों के बारे में विचार किया जिससे तीनों अंगों यथा विधायिका, न्यायपालिका एवं कार्यपालिका अपने-अपने क्षेत्र में रहते हुए भी एक-दूसरे के साथ संतुलन सुनिश्चित करते हुए मिलजुल कर काम कर सकें ताकि देश के कामकाज को प्रभावी ढंग से चलाया जा सके । उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 221 और 222 के तहत विधायिका और न्यायपालिका के कामों की स्वायत्तता मिली है। एक-दूसरे के काम में हस्तक्षेप को रोकता है। न्यायपालिका का काम है कि वह यह देखे कि जो कानून बने हैं वह संविधान के बुनियादा ढांचे और उसकी भावना के प्रतिकूल न हो। मौलिक अधिकारों के साथ छेड़छाड़ या उसके विपरीत न हो। अनुच्छेछ 222 के तहत संसद और विधानसभा की कार्यवाही चलाने का अधिकार और इसके लिए नियम बनाने का अधिकार अध्यक्ष में निहित है, न कि यह अधिकार कोर्ट का है।

केन्द्रीय विधि मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नेशनल जुडिशियल रिफार्म्स कमीशन बनाने संबंधी कानून को निरस्त किये जाने को दु:खद मानते हुए कहा कि केन्द्र सरकार ने न्यायपालिका का सम्मान करते हुए इसे स्वीकार कर लिया। उन्होंने कहा कि इस कमीशन में केन्द्रीय विधि मंत्री के होने के कारण सरकार का हस्तक्षेप होेने को आधार बनाकर निष्पक्षता पर सवाल उठाते हुए कानून को निरस्त कर दिया गया। उन्होंने कहा कि कई संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के चयन में केन्द्रीय मंत्री की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठता है पर कमीशन के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया अपनाये जाने में निष्पक्षता पर सवाल उठ गया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के सामने भी ऐसी हालत आयी कि सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज को माफी के​ ​लिए नोटिस देना पड़ा और एक जज को गिरफ्तार करने का आदेश देना पड़ा।

Updated : 17 Feb 2018 12:00 AM GMT
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