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केन्द्र के बेहतर बजट की आस में सभी

केन्द्र के बेहतर बजट की आस में सभी
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साल 2018-19 का आम बजट आगामी 1 फरवरी को पेश किया जायेगा। फरवरी के अन्तिम दिवस को बजट पेश किये जाने की प्रथा पिछले साल से समाप्त कर दी गयी। इतना ही नहीं 1924 से अलग से परोसे जाने वाले रेल बजट को भी समाप्त कर एक बजट बना दिया गया। जाहिर है कि नये तरीके से देश के आय-व्यय के विवरण की यह दूसरी पेशगी होगी। इस बार सतत विकास, सबका विकास और समावेशी विकास समेत सबका साथ लेने की कोशिश भी इसमें दिखाई देती है। तमाम अर्थशास्त्रियों ने आगामी बजट के मामले में व्यापक सुझाव दिये हैं और यह उम्मीद की गयी है कि कृषि व ग्रामीण विकास, रोजगार, स्वास्थ व शिक्षा, विनिर्माण व निर्यात, शहरी विकास और आधारभूत संरचना जैसे विविध विषयों की बेहतरी हेतु बजट में बहुत कुछ देखने को मिलेगा। बजट से पहले वित्त मंत्री भी कह रहे हैं कि कृषि क्षेत्र प्राथमिकता में रहेगा। देश के आर्थिक विकास को तब तक तर्कसंगत और समानता वाला नहीं कहा जा सकता जब तक कि किसानों को इसका लाभ स्पष्ट रूप से न दिखने लगे। वैसे इस बात में पूरी सच्चाई है कि वित्त मंत्री चाहे अरूण जेटली रहे हों या इनके पूर्ववर्ती, सभी ने बयानों में किसानों की खूब चिंता की और बेहतर विकास किया, पर जमीनी हकीकत यह है कि अन्नदाता छटपटाते रहे। साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात सरकार कह चुकी है। जाहिर है यह सिलसिला प्रतिवर्ष की दर से करते रहना होगा जो हो रहा है या नहीं बजट में झांक कर समझा जा सकेगा। केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय के साझा आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2017-18 में देश की जीडीपी की वृद्धि दर चार साल के निचले स्तर यानी 6.5 फीसद तक रहने का अनुमान है। यह मौजूदा सरकार के कार्यकाल की सबसे निचली वृद्धि दर भी है। इसी के ऊपर चढ़ कर आगे की रणनीतियां निर्मित की जायेंगी। विकास दर यदि कमजोर है तो मजबूत योजना कैसे सम्भव होगी यह चुनौती तो है।
मोदी सरकार बजट में मध्यम वर्गों को राहत दे सकती है संकेत है कि आयकर का दायरा बढ़ेगा। मौजूदा ढाई लाख पर छूट को तीन लाख किया जा सकता है लेकिन जीवन मूल्य जिस ऊँचाई तक पहुंच गया है उसे देखते हुए अपेक्षा इससे अधिक की है।

अर्थशास्त्री और सांसद सुब्रमण्यम स्वामी तो आयकर से देश को मुक्त करने की बात कह चुके हैं। हालांकि इसकी संभावना न के बराबर है। मुद्रा स्फीति का जो हाल है उससे महंगाई का ताना-बाना भी लोगों के पकड़ के बाहर है। सवाल छूट का नहीं सवाल समावेशी विकास का है। रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य और सुरक्षा समेत जितने भी बुनियादी मुद्दे हैं उनका हल कितना होगा, इसे अभी कहना कठिन है पर सरकार यह दावा जरूर कर सकती है कि बजट में सभी को ध्यान में रखा गया है। उल्लेखनीय है कि नवम्बर 2016 से सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का क्रियान्वयन कर रही है इसके तहत 80 करोड़ से अधिक लोगों को खाद्यान्न की आपूर्ति भारी सब्सिडी वाली दरों पर 1 से 3 रुपए किलो में की जाती है। इस बार उम्मीद है कि इसमें दस प्रतिशत वृद्धि की जायेगी, परन्तु आगामी वर्ष में सब्सिडी लेने वालों की मात्रा यदि बढ़ जाती है तो मामला जस का तस रहेगा। दो टूक यह भी है कि सरकार राजकोषीय घाटे को पाटना चाहती है।

वर्ष 2017 आर्थिक तौर पर काफी अड़चन भरा रहा है। साफ है कि अभी आर्थिक पथ चिकना नहीं बन पाया है। ऐसे में आगामी बजट सभी की उम्मीदों पर खरा उतरेगा यह देखने पर ही पता चलेगा। जिस प्रकार जीएसटी संग्रह दर तेजी से गिर रही है जो संग्रह जुलाई में 95 हजार करोड़ था वह दिसम्बर आते-आते 80 हजार करोड़ के आस-पास हो गया। सम्भव है कि इसका असर भी आगामी बजट का आधार बनेगा। हालांकि बजट किसी एक वजह से तैयार नहीं होते पर सभी कारण बजट पर बिना असर डाले रहते नहीं है। विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की कोशिश बजट में हो सकती है ताकि गिरती जीडीपी से राहत मिले। इतना ही नहीं कई मामलों में सरकार आर्थिक ढिलाई बरत सकती है ताकि लोग स्वरोजगार की ओर आकर्षित हों और देश बेरोजगारी से राहत पाये। मसलन स्टार्टअप एण्ड स्टैण्डअप जैसे कई कार्यक्रमों को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जा सकता है। सभी जानते हैं मध्यम वर्ग में सबसे ज्यादा वेतनभोगी तबका आता है। बड़ी राहत देने को लेकर सरकार इस पर इसलिए सक्रिय हो सकती है क्योंकि वर्ष 2018-19 आगामी लोकसभा चुनाव के लिए भी बड़े मायने रखता है। साथ ही बजट से सरकारी वर्ग भी खुशा रहे, ऐसी कोशिश भी वित्त मंत्री जरूर करेंगे।

वित्त मंत्री अरूण जेटली के लिए बजट इसलिए भी आसान नहीं होगा क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर बीते वर्ष कई प्रयोग किये गये हैं और आगामी वर्ष पर इसके प्रभाव को रोक पाना पूरी तरह आसान नहीं है। कारोबारी माहौल में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। विकास में रूकावट बनने वाले आर्थिक नियमों को ढीला किया जा सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था को देखते हुए भी बजट को तुलनात्मक सघन बनाये जाने की उम्मीद है। अभी हाल ही में सरकार ने फैसला लिया है कि फुटकर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सौ फीसदी रहेगा। जाहिर है खुदरा व्यापारियों को एफडीआई से राहत दी गयी है। तेल के मामले में भी सरकार का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं है। गैस पर मिलने वाली सब्सिडी भी धीरे-धीरे सरकार समाप्त कर रही है। 31 मार्च, 2018 तक इसे पूरी तरह समाप्त करने की पूरी उम्मीद है। जिस तरह सरकार आर्थिक नीतियों को सुदृढ़ करने की कोशिश कर रही है उससे साफ है कि कुछ की शिकायत बरकरार रहेगी। कृषि निर्यात नीति को बिना मजबूत किये किसानों की हालत सुधरेगी इस पर सवाल बना रहेगा और यह तभी सम्भव है जब उत्पादन बढ़ेगा और उत्पादन भी तभी हो सकेगा जब किसानों को सभी सुविधायें मुहैया करायी जायेंगी जिसका बीते सात दशकों से अभाव बरकरार रहा है। खास यह भी है कि छुपी बेरोजगारी भी खेती-बाड़ी में खूब है और मौसमी बेरोजगारी भी। इससे निपट पाना भी सरकार के लिए क्या आगामी बजट में कुछ उपाय होंगे। सम्भव है कि बजट से उम्मीद जगे पर पूरी कितनी होगी कहना कठिन है। यद्यपि सरकार इन दिनों आर्थिक सुधार को लेकर जोखिम वाले कदम उठा रही है पर मूलभूत मुद्दों पर बहुत कुछ हुआ है शायद ही लोग सहमत होंगे। बड़े उद्योगों को भी बजट से प्रभावित करना रहेगा। गौरतलब है कि 30 प्रतिशत कर को 25 प्रतिशत करने का निर्णय सरकार दो साल पहले ही ले चुकी है। फिलहाल आगामी 1 फरवरी को पेश होने वाले बजट पर सभी की दृष्टि रहेगी। दो टूक यह भी है कि जिसकी समाज में जितनी आर्थिक भूमिका है उतनी राहत तो चाहेगा पर समझना तो यह भी है कि देश लोक कल्याणकारी है, ऐसे में सभी के जीवन को बजट छूकर गुजरे तो ही अच्छा कहा जायेगा।

- सुशील कुमार सिंह

Updated : 19 Jan 2018 12:00 AM GMT
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