तीन साल में जर्जर हुआ करोड़ों का पारसेन बांध

तीन साल में जर्जर हुआ करोड़ों का पारसेन बांध
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ग्वालियर। मुरार ग्रामीण क्षेत्र के पारसेन सहित अन्य करीब दो दर्जन से अधिक गांवों के सैकड़ों किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराने हेतु करीब 6-7 करोड़ रुपये लागत से बनाया गया पारसेन बांध जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। करीब एक सैकड़ा से अधिक छोटे बड़े सुरागों से निरंतर पानी के रिसाव के कारण बांध भर ही नहीं पाता है।

उल्लेखनीय है कि पारसेन के ऊपरी क्षेत्र से बहकर भिण्ड जिले के गोहद बांध तक पानी पहुंचने वाली नहर पर करीब एक दशक पूर्व बांध प्रस्तावित हुआ था। वर्तमान में केन्द्रीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने इसका भूमिपूजन किया था। भूमिपूजन के बाद लगभग 5 साल तक जल संसाधन विभाग इसका काम शुरू नहीं कर पाया था। 10 अप्रेल 2012 को इस बांध का काम ठेकेदार को मिला तथा 22 मई 2014 को बांध निर्माण कार्य पूरा कर इसे जल संसाधन विभाग को सौंप दिया गया। खास बात यह रही कि करोड़ों की लागत से बनकर तैयार हुए इस बांध के निर्माण पूरा होने से अब तक नहरों के माध्यम से पानी किसानों के खेतों तक नहीं पहुंच सका है। जबकि निर्माण के बाद से ही इस बांध की मुख्य दीवार में लीकेज के फब्वारे निकलने लगे। परिणाम यह हुआ कि बारिश का हजारों एमसीएफटी पानी इस बांध में एकत्रित नहीं होकर इन लीकेज से होकर बर्वाद हो रहा है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बारिश में जितना पानी बांध में एकत्रित होता है उससे कहीं अधिक पानी तो पारसेन गांव के ताल में जुट जाता है। जल संसाधन विभाग के अधिकारी पारसेन बांध के संबंध में वास्तविक जानकारी देने से बच रहे हैं। पारसेन बांध की कुल लागत भी अधिकारी बताना नहीं चाहते। मुख्य अभियंता इसकी लागत करीब 6-7 करोड़ बता रहे हैं, वहीं बांध निर्माण कराने वाले तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओ) ए.के.दुबे इसकी लागत 3 करोड़ 49 लाख बता रहे हैं।

नहर तक नहीं पहुंचा एक बूंद पानी

भुगतान पूरा लेकर अधूरा काम छोड़ भागा ठेकेदार

बिना बने हुआ एप्रोच रोड का भुगतान

पारसेन बांध पर एवं इसके दोनों ओर नहरों पर एप्रोच रोड प्रस्तावित थी। एसडीओ श्री दुबे के अनुसार एक तरफ की नहर निर्माण को निरस्त कर दिया गया था। जबकि दूसरी ओर की नहर लगभग एक किमी बनाई गई। बांध के तल वाले हिस्से को सीसी से पक्का किया जाना था, लेकिन बिना निर्माण कार्य कराए इसका भुगतान कर दिया गया।

बांध के बीच से निकल रहे हैं पशु

पारसेन बांध की गहराई और जल संग्रहण की स्थिति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि बारिश के मौसम में इन दिनों इसके दोनों कैचमेंट क्षेत्रों से लगातार पानी बहकर बांध में पहुंच रहा है। यह पानी लगातार फूटी हुई दीवार से फब्वारों के रूप में बहकर बर्वाद भी हो रहा है। लेकिन पानी दोनों ओर बनी नहरों के बाल्वों तक भी नहीं पहुंच पा रहा है। गांवों की गाय और भैसों को इस बांध के सर्वाधिक जल भराव वाले स्थान मुख्य दीवार के पास से निकलते देखा जा सकता है।

क्या घटाई गई बांध की ऊंचाई?

पारसेन बांध को लेकर स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि बांध की ऊंचाई पहले 7 मीटर की जानी थी। लेकिन बांध से लगी क्रेसर आधारित काले पत्थर की खदानों को डूब एवं जल भराव क्षेत्र से बचाने के लिए इस बांध की मुख्य दीवार की ऊंचाई को घटा दिया गया। हालांकि जल संसाधन विभाग के अधिकारी इस संबंध में कुछ भी कहने से बच रहे हैं। ग्रामीणों की बात सटीक भी लगती है क्योंकि बांध में जल भराव क्षेत्र से 500 मीटर से भी कम दूरी पर रामनिवास शर्मा नामक खनन ठेकेदार द्वारा काले पत्थर के लिए उत्खनन कार्य आरंभ किया जा रहा है। जबकि इसी पहाड़ी पर करीब आधा दर्जन खदानें पहले से संचालित हैं।

इनका कहना है

‘पारसेन बांध की गुणवत्ता को लेकर हुई शिकायत की जांच प्रमुख अभियंता द्वारा कराई जा रही है। वरिष्ठ अधिकारी की इस जांच से पहले मेरे द्वारा कार्रवाई करना उचित नहीं। बांध की स्थिति और इसके निर्माण कार्य से संबंधित दस्तावेज देखने के बाद ही इसके संबंध में कुछ बता सकूंगा। ’

एन.पी.कोरी
मुख्य अभियंता जल संसाधन विभाग
(यमुना कछार) ग्वालियर

‘पारसेन बांध को अच्छी गुणवत्ता के साथ एवं बहुत कम लागत में निर्माण कराया गया। इसके लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने मुझे शाबासी दी थी। हल्का-फुलका रिसाब हर बांध में होता है जो संधारण से ठीक हो जाता है। बांध से लिफ्ट कर क्षेत्र के कई गांवों को पानी मिलता है। ’

ए.के.दुबे , तत्कालीन एसडीओ जल संसाधन विभाग ग्वालियर

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