इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनंत सूत्र बांधा जाता है। मान्यता है कि जब पाण्डव जुएं में अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदी के साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनंत सूत्र धारण किया। अनंत चतुर्दशी-व्रत के प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है और इस दिन अनंत के रूप में श्री हरि विष्णु की पूजा की गई। रक्षाबंधन की राखी के समान ही एक अनंत राखी होती है, जो रूई या रेशम के कुंकुम से रंगे धागे होते हैं और उनमें चौदह गांठे होती हैं। ये 14 गांठें, 14 लोक को निरूपित करते हैं और इस धागे को उन लोगों ने अपने हाथ में बांधा, जिन्होंने आज अनंत चतुदर्शी का व्रत रखा। पुरुषों ने इस अनंत धागे को अपने दाएं हाथ में बांधा तथा स्त्रियां इसे अपने बाएं हाथ में धारण किया।
अनंत चतुर्दशी के दिन ही गणपति-विसर्जन के धार्मिक समारोह भी आयोजित हुए। यह लगातार 10 दिन के गणेश-उत्सव का समापन दिवस कहलाता है और इस दिन घरों, पाण्डालों आदि से भगवान गणपति की प्रतिमा को जल में विसर्जित किया गया। अनंत चतुर्दशी का पर्व हिन्दुओं के साथ-साथ जैन समाज के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का इस दिन समापन होता है। जैन अनुयायियों ने कई स्थानों पर इस दिन श्रीजी की शोभायात्रा निकाली और भगवान का जलाभिषेक किया।