योगी को मिला तगड़ा झटका !

योगी को मिला तगड़ा झटका !

लखनऊ: सीएम बनने के बाद से ही योगी आदित्यनाथ तेज रफ्तार के साथ अपनी तरह की राजनीति पूरे यूपी में लागू करते जा रहे थे, लेकिन रविवार (03 सितंबर) का मोदी कैबिनेट विस्तार उनके लिए बडा स्पीड ब्रेकर साबित हुआ है। कैबिनेट विस्तार के जरिए पीएम नरेंद्र मोदी ने योगी को साफ संकेत दिया है। उन्होंने योगी के धुर विरोधी शिव प्रताप शुक्ल को केंद्र में मंत्री बनाकर उन्हें तगड़ा झटका दे दिया है।

शिव प्रताप शुक्ल को मंत्री बनाकर नरेंद्र मोदी ने सबसे महत्वपूर्ण राज्य में जातिगत समीकरण के बैलेंस को भी संभालने की कोशिश की है। शिव प्रताप शुक्ल खुद गोरखपुर से आते हैं और पार्टी में ब्राह्मणों के एक प्रभावी चेहरे को तौर पर देखे जाते हैं। मोदी ने कैबिनेट से कलराज मिश्र को हटाया है। लिहाजा उनकी जगह एक ब्राह्मण चेहरा जरूरी था।

शिव प्रताप शुक्ल ने लगातार चार बार विधानसभा का चुनाव जीता। वो 1989, 1991, 1993 और 1996 में एमएलए और यूपी में मंत्री भी रहे। योगी ने अपने सियासी वर्चस्व कायम करने के लिए शिव प्रताप के खिलाफ अपना प्रत्याशी खड़ा करके उन्हें चुनाव हरवाया था।
यहीं से दोनों के बीच सियासी अदावत शुरू होगी। शिव प्रताप शुक्ल भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रत्याशी थे। योगी आदित्यनाथ ने हिंदु युवा वाहिनी के टिकट पर राधे मोहन अग्रवाल को उममीदवार बना उनकी राह में रोड़े खड़े कर दिए और उन्हें हरा दिया।

सीएम योगी ने शिव प्रताप शुक्ल की पूरी सियासत गोरखपुर से खत्म कर दी थी। वो बीजेपी में साइड लाइन कर दिए गए थे, लेकिन पार्टी के प्रति उन्होंने अपनी वफादारी नहीं छोड़ी। नरेंद्र मोदी जब 2014 में पीएम बने, तो शिव प्रताप शुक्ल का 14 साल के बाद सियासी पुनरुद्धार हुआ। वो राज्यसभा सदस्य बने और अब मंत्री बन गए हैं।

रायबरेली में 5 ब्राह्मणों की हत्या से ब्राह्मणों में बीजेपी के प्रति नाराजगी और भी बढ़ गई। इसीलिए ब्राह्मण अपने आपको ठगा हुआ महसूस करने लगा था। ऐसे में मोदी ने शिव प्रताप शुक्ल को अपनी कैबिनेट में जगह देकर कई संदेश दिए हैं। योगी आदित्यनाथ ब्राहम्णों के विरोधी माने जाते हैं।

शिव प्रताप शुक्ल ने राज्य मंत्री पद की शपथ लेने के बाद कहा कि वह मोदी कैबिनेट में जगह पाकर खुश हैं। पीएम मोदी उन्हें आगे जो भी जिम्मेदारी देंगे, उसका वह पूरी ईमानदारी और लगन से निर्वहन करेंगे। शिव प्रताप ने कहा कि मुझे कहा गया है कि अरुण जेटली के साथ रहना है। उनके नेतृत्व में काम करना है।



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