आतंकियों के सहयोगी रोहिंग्याई और उनके हमदर्द

बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या भारत के सिर पर खड़ी ही है कि रोहिंग्याइयों मुस्लिमों का एक नया विषय भारत के समक्ष चुनौती बनकर आ गया है। रोहिंग्या मुस्लिम 12वीं सदी के शुरूआती दशक में म्यांमार के रखाइन इलाके में आकर बस गया था किंतु स्थानीय बौद्ध बहुसंख्यक समुदाय से वह कभी सामंजस्य नहीं बैठा पाया, फलस्वरूप उन्हें आज भी देश का बौद्ध समाज नहीं अपना पा रहा है। 2012 में रखाइन में कुछ सुरक्षाकर्मियों की हत्या के बाद रोहिंग्या और सुरक्षाकर्मियों के बीच व्यापक हिंसा भड़क गई थी तबसे यह विभाजनकारी रेखा और गहरी हो गई। इसके बाद से ही म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों व बर्मा के बौद्ध समुदाय में संघर्ष जारी है। हाल ही में 25 अगस्त को रोहिंग्या मुसलमानों ने बर्मा की पुलिस पर हमला कर दिया, इस लड़ाई में कई पुलिस वाले घायल हुए, इस हिंसा से म्यांमार के हालात अत्यंत खराब हो गए, फलस्वरूप पूर्व से चल रहा संघर्ष और अधिक तीव्र हो गया। भारत में अवैध रूप से घुस आये चालीस हजार रोहिंग्याई मुस्लिमों के निर्वासन को लेकर भारत सरकार ने भी कार्यवाही प्रारम्भ कर दी है। रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस म्यांमार भेजने के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल भी कर दिया है। सरकार को ये खुफिया जानकारी मिली है कि कुछ रोहिंग्या आतंकी संगठनों के साथ मिले हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि ये मौलिक अधिकारों के तहत नहीं आता है। ये संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत नहीं आता है। इसके बाद पूरे देश में रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर जामा मस्जिद दिल्ली के शाही इमाम ने ऐसा बेसुरा राग छेड़ा है कि पूरे देश के अनेकों जिला व तहसील मुख्यालयों पर भोले भाले मुस्लिम बंधुओं ने ज्ञापन देने व रोहिंग्याइयों को भारत से निर्वासित न करने की अपील की झड़ी लगा दी है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में जबकि हिंदू व मुस्लिम समाज में कई तरह के वैचारिक अवरोध-गतिरोध पूर्व से ही बड़ी संख्या में विद्यमान हैं तब मुस्लिम समाज को भी चाहिए कि वह इस राष्ट्र की मुख्यधारा में सम्मिलित होने हेतु पूर्व के विभाजक विषयों को शनै: शनै: समाप्त करें व नए मतभेद न उभरने दें, किन्तु जो हो रहा है वह इसके ठीक विपरीत है। देश का सामान्य मुस्लिम समाज कुछ कट्टरपंथी व अवसरवादी मुस्लिम नेताओं की घटिया राजनीति का शिकार हो जाता है व भारत की हिंदू-मुस्लिम समरसता के नए अवसरों के उपजने में बाधक बन जाता है। आतंकियों का खिलौना बन गए रोहिंग्याइयों के भारत से निर्वासन का विरोध करना इस कड़ी का ही नया आयाम है।
रोहिंग्याई मुसलमानों की समस्या के अन्तरराष्ट्रीय स्वरूप या बांग्लादेशी स्वरूप को हम छोड़ दें और प्रथमत: केवल भारत के संदर्भ में इसकी चर्चा करें तो हमें कई ऐसे भारत विरोधी तथ्य मिलते हैं जो रोहिंग्याइयों को भारत से वापस भेज देने के पक्ष में एक बड़ा वातावरण बनाते हैं। आज स्थिति यह है कि कश्मीर में रह रहे दस हजार रोहिंग्याइयों ने अपनी आरसा नामक मिलीटेंट आर्मी बना ली है जो अरब देशों से फंडिंग ले रही है और कश्मीर व अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में नित नए अपराध कर रही है। रोहिंग्याई आतंकी संगठन आरसा का दुरूपयोग कश्मीरी अलगाववादी संगठन बड़े पैमाने पर कर रहे हैं व मजबूर व दीन हीन रोहिंग्याइयों का उपयोग मानव बम के रूप में करने की तैयारियां कर रहे हैं। उधर नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला ने इस विषय में बर्मा की चैम्पियन आफ डेमोक्रेसी मानी जाने वाली आंग सान सू ची की कड़ी आलोचना तो कर दी है किंतु अपने ही देश पाकिस्तान की सरकार से वे रोहिंग्याइयों को शरण देने की व्यवस्थित अपील तक नहीं कर पा रहीं हैं। मलाला को चाहिए कि वे पहले अपने देश पाकिस्तान में रोहिंग्याइयों को शरण देने हेतु वातावरण निर्मित करें तब अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार के परामर्श देने का कार्य करें। शाही इमाम के बहकावे में आकर रोहिंग्याइयों को भारत से निर्वासित न करने की अपील करने वाले भारतीय मुस्लिम बंधुओं को यह भी देखना चाहिए कि वे उन लोगों की मदद की बात कर रहें हैं जिनके विषय में अलकायदा जैसे घोषित आतंकवादी संगठन ने नरेंद्र मोदी सरकार की इस विषय पर आलोचना की है। अलकायदा ने मोदी सरकार को चुनौती देते हुए कहा है कि मोदी सरकार रोहिंग्याइयों को देश से बाहर निकाल कर दिखाए। यहां यह भी एक विषय है कि इमाम ने अपनी सदा की दुष्प्रवृत्ति के अनुरूप इस विषय को अनावश्यक ही हिंदू मुसलमान का विषय बना दिया है। मुस्लिम बंधुओं को आज यह विचार करना ही होगा कि उनका समाज क्यों समय समय पर देशविरोधी अभियानों व आव्हानों का हिस्सा बन जाता है। मुस्लिम स्वयं विचार करें कि शाही इमाम के आव्हान पर देश में मस्जिदों से जिला कलेक्टरों को रोहिंग्याइयों के पक्ष में जिस प्रकार के ज्ञापन दिलवाए जा रहे हैं और उन्हें भारत से निर्वासित न करने की अपीलें की जा रही हैं उनका शेष भारतीय समाज व राष्ट्रीय एकता पर क्या प्रभाव होगा। मुस्लिम समाज को अपनी बुद्धि विवेक को जांचना होगा कि आखिर किस षड्यंत्र के तहत वे आज ऐसे लोगों का समर्थन करने सड़कों पर उतर आये हैं जिनका अलकायदा के दुर्दांत संगठन आसुह से, अकामुल मुजाहिदीन से व लश्कर से स्पष्ट सम्बन्ध व सहयोग हो गया है। रोहिंग्याई इन आतंकी संगठनों से सीधे तौर पर जुड़ कर प्रतिदिन इस देश में आपराधिक गतिविधियां कर रहे हैं! रोहिंग्याइयों का दिन प्रतिदिन घातक व देशविरोधी उपयोग आतंकवादी कर रहे हैं। आज भारत में रोहिंग्याई और कुछ नहीं बल्कि आतंकवादियों के उपयोग की एक बेहद सस्ती विस्फोटक सामग्री मात्र बनकर रह गयें हैं, उनकी वकालत एक सभ्य व संभ्रात समाज कैसे कर सकता है?
भारत में रह रहे चालीस हजार रोहिंग्याई मुसलमानों के संदर्भ में भारत सरकार स्पष्ट कर चुकी है कि इन्हें देश में शरण नहीं दी जायेगी और इन्हें देश से निकाला जायेगा। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि जम्मू-कश्मीर सहित देश के आठ राज्यों में फैल चुके रोहिंग्याई मुसलमान देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक खतरा बन चुके हैं। अलकायदा सहित विभिन्न आतंकवादी संगठनों से मदद पा रहे ये रोहिंग्याई कई देशविरोधी गतिविधियों में व्याप्त होते जा रहे हैं व स्पष्टत: देश विरोधी अपराधों में रंगे हाथों पकड़े भी जा रहे हैं। भारत ने इन रोहिंग्याइयों के भारत प्रवेश को रोकने के लिए भारत-म्यांमार सीमा पर चौकसी बढ़ा दी है। सीमा पर सरकार ने इनके विरुद्ध रेड अलर्ट भी जारी किया है। प्रश्न यह आता है कि विभिन्न दुर्दांत आतंकवादी संगठनों से मदद पा रहे रोहिंग्याइयों के लिए भारत के मुसलमान क्यों इतनी वेदना व्यक्त कर रहे हैं? पहले दिल्ली के शाही इमाम फिर पंजाब के उलेमा और फिर पूरे देश के मुल्ला मौलवी देश भर में रोहिंग्याइयों के पक्ष में ज्ञापन देकर अपीलें कर रहे हैं, उसके पीछे क्या कारण है? भारतीय मुस्लिमों को शाही इमाम बुखारी ने जिस प्रकार रोहिंग्याइयों के पक्ष में अपना हथियार बनाया है और भारतीय मुस्लिम भी बड़े ही भोलेपन से इमाम के हथियार बन भी गयें हैं वस्तुत: यही वह तथ्य है जो भारत के सामाजिक तानेबाने में मतभेद के तार उत्पन्न करता है। दिल्ली में हो रही अपने बेटे की ताजपोशी में भारतीय प्रधानमंत्री को नजरअंदाज कर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को आमंत्रित कर अलगाव व विभाजन रेखा खीचने वाले शाही इमाम की इस विषय पर आलोचना उस समय भारतीय मुस्लिम बंधुओं ने भी जी भर के की थी। शाही इमाम जैसी चिंता रोहिंग्याइ मुस्लिमों की कर रहें हैं वैसी चिंता की शतांश चिंता भी वे कश्मीरी पंडितों के लिए कभी कर पाए हैं? यह भी घोषित तथ्य है कि सैकड़ों भारतीय सामाजिक व राष्ट्रीय समस्याओं के समय चुप्पी धरे रहने वाले शाही इमाम एकाएक रोहिंग्याइयों के विषय में राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय हो गयें हैं।
शाही इमाम व भोलेपन में उनके पीछे खड़े हो गए अन्य भारतीय मुस्लिम बंधुओं को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि भारतीय समाज अब ऐसे लोगों को सुनने समझने के मूड में कतई नहीं है जो अन्य भारतीय राष्ट्रीय व सामाजिक समस्याओं पर तो चुप्पी धरे रहते हैं किंतु आतंकवादी संगठनों के सहयोग से भारत में घुस आये, फल फूल रहे व भारत में अपराध कर रहे रोहिंग्याइयों का समर्थन कर रहे हैं। शाही इमाम व अन्य मुस्लिम उलेमाओं ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि वे भारत में रह रहे चालीस हजार रोहिंग्याइयों को भारत में ही रहने दें व उन्हें निर्वासित न करें क्योंकि भारत की हजारों वर्षों की परम्परा लोगों को शरण देने की रही है। उल्लेखनीय है कि इस सम्बन्ध में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजीजू पहले ही यह स्पष्ट कर चुके हैं कि रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं, भारतीय नागरिक नहीं हैं, इसलिए वे ऐसी किसी चीज के हकदार नहीं हैं, जिसका कि कोई आम भारतीय नागरिक हकदार है। उन्होंने रोहिंग्या मुस्लिमों के निर्वासन पर संसद में दिए गए अपने बयान में स्पष्ट कहा है कि रोहिंग्या लोगों को निकालना पूरी तरह से कानूनी स्थिति पर आधारित है। उन्होंने कहा, रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं और कानून के मुताबिक- उन्हें निर्वासित होना है, इसलिए हमने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे रोहिंग्या मुस्लिमों की पहचान के लिए कार्यबल गठित करें और उनके निर्वासन की प्रक्रिया शुरू करें। भारतीय मुस्लिमों को भी चाहिए कि वे राष्ट्रहित में आतंकियों के सहयोगी बन रहे रोहिंग्याइयों को भारत में बसाने की मांग करना बंद करें व एक देशभक्त भारतीय होने का परिचय दें।