आपका क्या होगा जनाबे आली...?

यह कांग्रेस का दुर्भाग्य है, जब भी उनके युवराज यानि श्री राहुल गांधी ने अपनी सक्रियता दिखाई है, पार्टी को नुकसान ही हुआ है। राजनीति में अवसर को तलाशना भी एक महत्वपूर्ण उपक्रम है। 11 सितम्बर विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण तिथि है। सन् 1893 में शिकागो में स्वामी विवेकानन्द ने अपना विश्व प्रसिद्ध भाषण इसी दिन दिया था। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाषण की 125 वीं साल गिरह को एक अवसर के रूप में देखा और देश के युवाओं से सीधा संवाद किया। 11 सितम्बर को श्री राहुल गांधी कहां थे पता नहीं चला, संभवत: हवा में होंगे पर 12 सितम्बर को वे अमेरिका में दिखाई दिए और वहां के युवाओं से कहा कि मैं प्रधानमंत्री बनने को तैयार हूं यह देश ऐसे ही चलता है।
श्री राहुल गांधी से कई बार व्यक्तिगत तौर पर गहरी सहानुभूति भी होती है। विख्यात हास्य लेखक स्व. शरद जोशी ने लिखा था कि संजय गांधी जबरदस्त नेता थे पर राजीव गांधी जबरदस्ती नेता हैं। आज शरद जोशी हमारे बीच नहीं हैं, वे राहुल गांधी के विषय में क्या कहते आकलन किया जा सकता है। श्री राहुल गांधी नियमित अंतराल से विदेश जाते हैं। देश की संसद में वह केन्द्र सरकार पर आरोप लगाते हैं उन्हें सुरक्षा नहीं दी जाती पर विदेश में वह सुरक्षा लेने से इनकार करते हंै। वे देश की सर्वाधिक पुरानी एवं दशकों तक देश पर शासन करने वाली पार्टी के एवं दशकों तक ही शासन करने वाले एक मात्र परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। वे देश के सांसद हैं। देशवासी भले ही उम्मीद खो चुके हों, पर उनकी मां श्रीमती सोनिया गांधी जो कि पार्टी की प्रमुख भी हैं, एक सपना दिन रात देख रही हैं कि उनका बेटा पहले पार्टी की कमान संभाले फिर देश की। पर श्री राहुल गांधी का क्या कीजिएगा? वे कहते हैं यह देश तो ऐसे ही चलेगा आप मेरे पीछे मत पड़िए। वे यह भी कहते हैं कि वंशवाद कहां नहीं है? अपनी बात की पुष्टि के लिए वे अखिलेश यादव का भी नाम लेते हैं और अभिषेक बच्चन का। वे अम्बानी का भी जिक्र करते हैं पर इनफोसिस का। राहुल गांधी के वक्तव्यों को काटने के लिए ज्यादा मेहनत करने की या उन पर ऊर्जा खर्च करने की आवश्यकता नहीं है। ये सारी बातें ही हास्यास्पद एवं मनोरंजन से अधिक कुछ नहीं है। गौर करने वाली बात सिर्फ इतनी है कि ठीक एक दिन पहले 67 साल के युवा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के युवाओं से एक मित्र का रिश्ता बनाकर राष्ट्र निर्माण के लिए उनसे सीधा संवाद करते हैं उसके दूसरे दिन एक 47 साल का बुजुर्ग राहुल गांधी बर्कले (अमेरिका) में युवाओं से कहता है कि भारत तो ऐसे ही चलेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगभग 55 मिनिट का उद्बोधन अपने आप में अद्भुत है। वे देश के युवाओं को मिट्टी से जोड़ते हैं। वे देश के युवाओं को अनुशासन का मित्रवत पाठ भी पढ़ाते हैं, वहीं मजाकिया अंदाज में रोज डे पर भी गपशप करते हैं। वे देश का स्वर्णिम अतीत याद भी करते हैं और उसके प्रति आत्म मुग्ध होकर बैठने के खतरे के प्रति आगाह भी। वे महिलाओं के प्रति भोगवादी नजरिए की कटु आलोचना भी करते हैं, वहीं देश के वंचित वर्ग को वंदेमातरम कहने का पहला हक भी प्रदान करते हैं। श्री मोदी की युवाओं से संवाद स्थापित करने की यह शैली देश के युवाओं को उनके प्रति दीवाना बना रही है, यह 11 सितम्बर को देश ने फिर अनुभव किया। राहुल गांधी की नरेन्द्र मोदी से तुलना का कोई अर्थ नहीं है। पर जब स्वयं राहुल गांधी देश से हजारों किलोमीटर दूर यह घोषणा करते हैं कि हां मैं प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हूं। तब चिंता होती है, जिस दल के नेतृत्व में देश ने आजादी की लड़ाई लड़ी आज किस हद तक दुर्दशा की कगार पर है। प्रधानमंत्री बनने का निर्णय व्यक्तिगत निर्णय का विषय नहीं है, प्रधानमंत्री कौन बनेगा यह देश की जनता तय करती है और देश की जनता देख रही है कि जिस दल पर उसने सर्वाधिक भरोसा कर एक छत्र शासन करने का भार सौंपा उसने देश को आज किन-किन चुनौतियों और समस्याओं का घर बना दिया।
बेशक एक राजनीतिक दल के नाते कांग्रेस को यह सपना देखने का हक है कि वह देश पर फिर शासन करे। लेकिन आज जब कांग्रेस देश का प्रमुख विपक्षी दल है, ऐसे में वह अपने युनानुकूल एवं समयानुकूल कर्तव्यों के पाठ को पढ़ें और अपने नेता से कहे कि वह आखिर क्यों अनावश्यक अप्रासंगिक तर्कहीन एवं निहायत गैर जिम्मेदाराना बयान देकर पार्टी को रसातल पर ले जाने के लिए आमादा है। देश तो ऐसे ही चलेगा कहने वाले राहुल गांधी को चाहिए कि पहले वह देश है क्या यह समझें। एक कोशिश उनके दादाजी और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी की थी पर उनकी भारत एक खोज कहीं-कहीं पश्चिमी चश्मे से अधिक थी। स्व. राजीव गांधी को यह समय ही नहीं मिला। इसलिए राहुल गांधी देश को समझेंगे तो ध्यान आएगा कि वह तो चल नहीं दौड़ रहा है पर आपका क्या होगा जनाबे आली?
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