जयारोग्य में पहली बार हुआ क्रोनिक आॅस्टिस मलायटिस फीमर आॅपरेशन

जयारोग्य में पहली बार हुआ क्रोनिक आॅस्टिस मलायटिस फीमर आॅपरेशन

चलने-फिरने की आस छोड़ चुकी मासूम बच्ची के पैर को किया ठीक

ग्वालियर/सुजान सिंह। अंचल के सबसे बड़े अस्पताल जयारोग्य चिकित्सालय में प्रतिदिन कई मरीज बेहतर उपचार की आस लेकर पहुंचते है। इसी आस को लेकर एक पिता अपनी बच्ची को उपचार के लिए अस्पताल पहुंचा था। बच्ची के पैर की हड्डी गल जाने के कारण बच्ची चल-फिर नहीं पा रही थी। चूंकि बच्ची का पिता मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह निजी अस्पताल में बच्ची का इलाज सकता, इसलिए वह अपनी बच्ची को चलते-फिरते देखने की आस भी छोड़ चुका था, लेकिन जब वह जयारोग्य अस्पताल में अपनी बच्ची को लेकर पहुंचा और आॅर्थोपेडिक के चिकित्सकों ने बच्ची का आॅपरेशन कर उसका पैर ठीक कर दिया।

जानकारी के अनुसार मुरैना निवासी बलूतन मजदूरी करके अपने घर का भरण-पोषण करता है। उसकी चार वर्षीय बेटी अंजलि के जांघ की हड्डी गल जाने के कारण उसे क्रोनिक आॅस्टिस मलायटिस फीमर नामक बीमारी हो गई थी। अंजलि के पिता अपनी बच्ची के उपचार के लिए इधर-उधर भटकते रहे। मजदूर होने के कारण अंजलि के पिता मुरैना में ही कई चिकित्सकों को दिखाते रहे, लेकिन अंजलि को कोई लाभ नहीं हुआ। वह बुलकुल चल-फिर नहीं पा रही थी। इससे पित ने बच्ची का पैर ठीक होने की आस छोड़ दी थी, लेकिन इसी बीच किसी की सलाह पर बलूतन अपनी बच्ची को दिखाने के लिए जयारोग्य चिकित्सलय पहुंचे और ओपीडी में आॅर्थोपेडिक के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अभिलेख मिश्रा को दिखाया। डॉ. मिश्रा ने बच्ची के पैर के एक्सरे सहित अन्य जांचे करावाने की बात कही। जांच रिपोर्ट में पता चला कि अंजलि को क्रोनिक आॅस्टिस मलायटिस फीमर नामक बीमारी होने के कारण उसके जांघ की हड्डी में गलाव हो गया है। अंजलि की हालत देखकर डॉ. मिश्रा ंने बलूतन को बच्ची का आॅपरेशन कराने की सहाल दी तो उसने अपनी सहमति दे दी। चंूकि इस तरह का आॅपरेशन जयारोग्य अस्पताल में पहले कभी हुआ नहीं था और इस आॅपरेशन के सफल होने की संभावना भी बहुत कम होती है, इसलिए डॉ. मिश्रा ने आर्थोपेडिक विभागाध्यक्ष डॉ. समीर गुप्ता से चर्चा कर पूरा केस बताया और आॅपरेशन प्लान किया। आॅपरेशन में अंजलि के पैर के घुटने से नीचे वाली पतली हड़्डी को निकालकर उसे जांघ की गल चुकी हड्डी की जगह लगाया गया। इसके बाद अंजलि को अस्पताल में लगभग एक सप्ताह भर्ती रखा गया और उसके बाद उसकी छुट्टी करते हुए 24 दिन बाद दिखाने के लिए कहा गया। चिकित्सक के कहने पर जब अंजलि के पिता बच्ची को दिखाने के लिए दोबारा अस्पताल पहुंचे तो बच्ची बिलकुल ठीक थी। इस पर पिता ने चिकित्सक को धन्यवाद भी दिया।

प्रोटीन की कमी के कारण होती है यह बीमारी

क्रोनिक आॅस्टिस मलायटिस फीमर (जांघ की हड्डी में लगाव) प्रोटीन की कमी के कारण होती है। इस बीमारी में हड्डी में इंफेक्शन फैल जाता है और रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इसके साथ ही इंफेक्शन जब ज्यादा बढ़ जाता है तो धीरे-धीरे चलने में परेशानी शुरू हो जाती है।

हड्डी जोड़ने साढ़े तीन माह लगा रहा प्लास्टर

डॉ. अभिलेख मिश्रा ने बताया कि आॅपरेशन के बाद बच्ची की हड्डी ठीक से जोड़ने के लिए करीब साढ़े तीन माह तक के लिए प्लास्टर चढ़ाया गया था। जब बच्ची साढ़े तीन माह बाद प्लास्टर कटवाने आई तो वह समान्य रूप से चल पा रही थी।

निजी अस्पताल में करना पड़ते 30 से 40 हजार खर्च

इस बीमारी का आॅपरेशन अगर किसी निजी अस्पताल में किया जाता तो 30 से 40 हजार रुपए तक खर्च करना पड़ते। लेकिन अंजलि के पिता के पास गरीबी रेखा का कार्ड था, इसलिए उसका आॅपरेशन जयारोग्य में नि:शुल्क किया गया।

इन्होने कहा

इस तरह के आॅपरेशन बहुत ही कम सफल होते हैं, इसलिए आॅपरेशन करने से पहले बच्ची के पिता को सारी बातें बताई गई थीं, लेकिन अब बच्ची बिलकुल ठीक है और चलने-फिरने में भी उसे कोई परेशानी नहीं हो रही है।


डॉ. अभिलेख मिश्रा
असिस्टेंट प्रोफेसर, आॅर्थोपेडिक

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