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हृदय रोगी पति के विरूद्ध पत्नी द्वारा दर्ज मामला झूठा निकला

हृदय रोगी पति के विरूद्ध पत्नी द्वारा दर्ज मामला झूठा निकला
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- राजेश शुक्ला


न्यायालय से साढ़े छह वर्ष बाद मिली राहत, संघर्ष समूह में की थी शिकायत

ग्वालियर। पत्नी ने विवाह के कुछ समय बाद ही अपने पति और सास-ससुर के खिलाफ पुलिस में यह शिकायत दर्ज करा दी कि वह उसके साथ मारपीट करते हैं और दूसरे व्यक्तियों के साथ गंदा काम करने के लिए बाध्य करते हैं। इस पर पुलिस ने धारा 498 ए, 323 सहपठित धारा 34 के तहत प्रकरण दर्ज किया था। पति ने झूठा आरोप लगाने पर जिला न्यायालय में निजी याचिका दायर की और लगभग साढ़े छह साल तक न्यायिक लड़ाई लड़ने के बाद हृदय रोगी पति को राहत मिली।

न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी एच.सी. पटेल ने झूठा आरोप लगाने वाली महिला और उसके परिजनों के खिलाफ कार्रवाई करने का 17 पेज का आदेश दिया है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता प्रद्युम्न सिंह राजावत के अनुसार प्रद्युम्न सिंह कुशवाह पुत्र मेहम्बर सिंह निवासी दीनदयाल नगर का विवाह नीलम कुशवाह के साथ 2007 में बिना दहेज के सम्पन्न हुआ था। विवाह के तीन माह बाद नीलम और उसके पिता नरेश ने पुलिस थाना महाराजपुरा में मामला दर्ज कराया कि उसका पति प्रद्युम्न, ससुर मेहम्बर सिंह व सास विमलेश परेशान करते हैं और दस लाख रुपए की मांग करते हैं। नहीं लाने पर कहते हैं कि नहीं तो उसे गलत काम करना पड़ेगा और अपने साथ भी नहीं रखेंगे। नीलम ने यह भी आरोप लगाया कि उसके गर्भ में तीन-चार माह का बच्चा था, लेकिन सास विमलेश ने उससे गर्भपात कराने की बात कही थी।

पति को आया हृदयाघात, चिकित्सक ने दी गवाही
थाने में झूठा मामला दर्ज कराने के बाद प्रद्युम्न ने न्यायालय की शरण ली। इस दौरान वादी को मात्र 35 वर्ष की उम्र में हृदयाघात आया।उसका इलाज बिरला हॉस्पीटल, जी.बी. पंत शासकीय अस्पताल दिल्ली और उसके पश्चात वह शासकीय जयारोग्य अस्पताल के डॉ. पुनीत रस्तोगी के यहां इलाजरत रहा। उसने अपनी पत्नी से कहा कि मैं बीमार हूं, घर आ जाओ, लेकिन पत्नी ने उसकी एक नहीं सुनी। न्यायालय में प्रकरण क्रमांक 14561/10 की सुनवाई के दौरान गंभीर आरोप के चलते डॉ. पुनीत रस्तोगी ने गवाही दी कि उसे हृदयाघात आया था, जिसमें उसकी जान भी जा सकती थी।

सास रहती थी लड़कियों के साथ विदेश में
न्यायालय में सुनवाई के दौरान फरियादी ने बताया कि पत्नी ने उसकी माता का नाम भी झूठे प्रकरण में फंसाया है, जबकि वह कई सालों से विदेश में मेरी बहनों के साथ रहती है। कई साक्ष्यों ने अदालत में गवाही दी कि जब प्रद्युम्न अस्पताल में इलाज करवा रहा है तो वह अपनी पत्नी और उसके पिता के साथ मारपीट कैसे कर सकता है। फरियादी के मामा जयसिंह सिकरवार ने अपने न्यायालयीन कथन में यह बताया है कि उसकी हर 10-15 दिन में अपनी भांजी नीलम से बातचीत हुआ करती थी। इस संबंध में बचाव पक्ष का यह तर्क था कि यदि नीलम को आरोपीगण प्रताड़ित करते होते तो वह निश्चित ही अपने मामा को जानकारी देती।

पत्नी के नाम कराई थी 20 लाख की नॉमिनी
न्यायालय में बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि प्रद्युम्न ने अपना बीस लाख रुपए का बीमा कराया था, जिसकी पॉलिसी मैक्स न्यू लाइफ इंश्योरेंस की थी। पॉलिसी में नॉमिनी पत्नी को बनाया था। यदि आरोपी प्रद्युम्न फरियादी नीलम को मारने की नीयत रखता तो वह इतनी अधिक राशि के बीमा का नॉमिनी अपनी पत्नी को नहीं बनाता बल्कि पत्नी का बीमा कराता और स्वयं को नॉमिनी बनाता।

अपराध के आरोप से दोषमुक्त किया
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी एच.सी. पटेल ने कहा कि प्रकरण में अभिलेख पर आए समस्त साक्ष्यों के विवेचन से न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि आरोपी नीलम यह प्रमाणित करने में असफल रही है कि उसके पति व ससुर ने उसके साथ शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित कर क्रूरता का व्यवहार किया। इस कारण अभियुक्त मेहम्बर सिंह, प्रद्युम्न सिंह को धारा 498-ए व 323 सहपठित धारा 34 के अंतर्गत अपराध के आरोप से दोषमुक्त किया जाता है। फरियादी पक्ष ने झूठा मामला दर्ज करने के खिलाफ लड़ाई लड़ रही संघर्ष समूह में भी इसकी शिकायत की थी।

Updated : 25 May 2017 12:00 AM GMT
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