दो किमी दूर रेलवे हॉस्पिटल से बुलवाना पड़ता है चिकित्सक, रेलवे स्टेशन पर चिकित्सा सुविधा नहीं
ग्वालियर। रेल यात्रा के दौरान यात्री का थोड़ा भी स्वास्थ बिगड़े तो ग्वालियर रेलवे स्टेशन से दो किमी दूर स्थित रेलवे हॉस्पिटल से चिकित्सक को बुलाना पड़ता है। रेलवे स्टेशन पर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि अस्वस्थ यात्री को तुरंत चिकित्सकीय सुविधा मिल सके। पिछले रेलवे बजट में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने ए-1 श्रेणी के स्टेशनों पर चिकित्सक और दवाइयों के इंतजाम की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक मेडिकल स्टोर खोलने की पॉलिसी लागू नहीं हो पाई और न ही चिकित्सकों की नियमित नियुक्ति हो पाई ।
हालत ज्यादा खराब होने पर टीटीई या रेलवे कंट्रोल रूम से संपर्क करने पर यात्रियों को मदद तो मिलेगी, लेकिन वो भी बस काम चलाऊ। चिकित्सा सुविधा के नाम पर स्टेशन पर एक मात्र छोटा फस्ट ऐड बाक्स पैनल रुप में रखा गया है। सूत्रों की मानें तो फस्ट ऐड बाक्स में रुई रहती है,तो बैंडेज गायब रहता है। जख्मी यात्री का प्राथमिक उपचार करने के लिए कोई कर्मी भी उपलब्ध नहीं रहता है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि हादसा होने पर समीप में कोई अस्पताल नहीं है जहां जख्मी को तत्काल इलाज मिल सके। जख्मी की सूचना मिलने पर स्टेशन प्रबंधक जीआरपी को मेमो देता है,तब जाकर जख्मी को अस्पताल पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू होती है। स्टेशन से रेलवे अस्पताल की दूरी तीन किलोमीटर है। उधर जीआरपी द्वारा एम्बुलेंस के अभाव में निजी वाहनों से जख्मी को अस्पताल पहुंचाया जाता है। इस दौरान कई घायलों की सांसें भी टूट जाती हैं। यात्रियों का कहना है कि आमदनी और यात्रियों की संख्या के अनुरूप यहां रेलवे की ओर से कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गयी है। इसके चलते कई घायल यात्रियों की जान तक चली गई है।
यह है रेलवे का नियम
रेलवे अस्पताल के चिकित्सक को स्टेशन पर पहुंचकर यात्रियों का इलाज करना होता है। इसके लिए यात्री टीटीई या रेलवे हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क कर सकता है। नियम के मुताबिक कंट्रोल रूम सीधे रेलवे अस्पताल को संपर्क कर ट्रेन, सीट और समय की जानकारी देता है। जिसके बाद अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर चिकित्सक को स्टेशन पर मौजूद होना पड़ता है।
रेलवे की खामियां
*स्टेशन पर रेलवे हॉस्पिटल का कोई चिकित्सक तैनात नहीं रहता।
* स्टेशन प्रभारी या अन्य स्टाफ ही यात्रियों को दवा उपलब्ध करवा पाते हैं।
*रेलवे अस्पताल में सिर्फ एक चिकित्सक ही नियमित है, बाकी अनुबंध पर हैं।
* नियमित चिकित्सक को 24 घंटे सेवा देनी होती है, लेकिन वह सिर्फ 4 से 5 घंटे ही सेवा दे रहे हैं।
* स्वास्थ्य सुविधा की जानकारी न तो ट्रेन में मिलती है, न ही स्टेशन पर।