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कन्हैया ने राक्षसों का वध करने को लिया था देवी का आशीर्वाद

मथुरा। नवरा़ित्र या नव दुर्गों के अवसर पर कन्हैया की नगरी इसलिए देवी नगरी बन जाती है कि श्रीकृष्ण ने कुछ राक्षसों का बध करने के लिए देवी का अशीर्वाद लिया था।

श्रीकृष्ण और बलराम कंस का वध किस प्रकार कर सके इस संबंध में बगुलामुखी मंदिर के सेवायत आचार्य वीरू पंडा के नाम से मशहूर वीरेन्द्र कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि महाशक्ति विद्या और अविद्या के रूप में विराजमान हैं। जहां विद्या रूप में ये प्राणियेां के लिए मोक्ष प्रदायिनी हैं वहीं अविद्या रूप में वे भोग का कारण हैं।

उन्होंने बताया कि श्री मदभागवत में प्रसंग है कि जब दक्ष प्रजापति ने अपने यज्ञ में शिव को आमंत्रित नही किया फिर भी भगवती सती ने जाने का आग्रह किया और रोकने पर वे क्रोधित हुईं। तो उनके विकराल रूप को देखकर भगवान शिव भागने लगे। शिव को भागने से रोकने के लिए दसों दिशाओं में सती ने अपनी अधौभूता दस देवियों को प्रकट किया था। ये दस देवियां काली, तारा, शोडसी, भुवनेश्वरी, त्रिपुरभैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगुलामुखी, मातंगी और कमला महाविद्या के नाम से जानी जाती हैं।

उनका कहना था कि भगवान जब इस धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लेते हैं तो वे प्राणियों में यह भावना पैदा करते हैं कि यदि मनुष्य सच्चे दिल से समर्पित होकर कार्य करे तो वह देवत्व को प्राप्त कर सकता है। इसी के अन्तर्गत भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजभूमि में विभिन्न लीलाएं की थीं। कंस का बध करने के पहले कृष्ण और बलराम ने बगुलामुखी देवी का आशीर्वाद लिया था और फिर कंस टीले पर उनका वध किया था। उन्होंने बड़े विश्वास से कहा कि बगुलामुखी सदा सुखी अर्थात जिसने भी सच्चे मन से देवी की आराधना की, देवी ने उसे कभी निराश नही किया।

कृष्ण की लीला से जुड़े चन्द्रावलि देवी मंदिर के महंत ओम प्रकाश पुजारी ने बताया कि एक बार श्रीकृष्ण की अष्टसखियों में प्रथम सखी के रूप में पहचान बना चुकी चन्द्रावलि के साथ रास करने के लिए द्वापर में श्रीकृष्ण आए तथा जहां पर आज चन्द्रावलि देवी का मंदिर है घनघोर जंगल में वहां रास करने के पहले श्रीकृष्ण ने चन्द्रावलि से कहा कि वे नन्दबाबा से मिलकर अभी आते हैं। नन्दबाबा से बातचीत के दौरान उन्होंने उनको वहां रोक लिया और कहा कि वे उनके साथ व्यालू यानी खाना खाकर जांएगे।

उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण के न आने पर चन्द्रावलि उसी स्थान पर तप के लिए बैठ गई और कहा कि वे तब तक तपस्या करेंगी जब तक श्रीकृष्ण उनके पास नही आएंगे। अपने तप से जब वे भूमि में प्रवेश कर गईं तो आकाशवाणी हुई कि जहां वे तप कर रही हैं उसके ऊपर छत नही डाली जानी चाहिए क्योंकि उनका तप सच्चा है इसलिए उनके ऊपर मौसम का असर नही पड़ेगा।

पुजारी ओम प्रकाश ने बताया कि कलियुग में धर्मिक विचारधारा से जुड़े कुछ वैज्ञानिकों को जब देवी का आशीर्वाद मिला तो कृतज्ञता स्वरूप उन्होंने छत बनवाना शुरू किया किंतु जब भी ऐसा प्रयास हुआ छत गिर जाती है। मंदिर के ऊपर टीन की भी छत नही टिक पाती है और आंधी में वह उड़ जांती है।

देवी चमत्कारों से जुड़ा कैंट का काली मंदिर भी है जो देवी भक्त मुकुन्द राम चौबे नौ घरवाले के स्वप्न की देन है। इसके इतिहास के बारे में वर्तमान महंत दिनेश चतुर्वेदी नौ घरवालों ने बताया कि एक बार मां ने मुकुन्दराम चौबे को स्वप्न दिया कि वे जयपुर जाये और वहां से उन्हें लेकर आएं तथा कैन्ट बिजलीघर के पास उन्हे स्थापित करें। इसके बाद वे जयपुर से माई को लेकर आए और उक्तस्थल पर जब प्राण प्रतिष्ठा हुई तो माँ ने उनकी परीक्षा ली तथा एक समय ऐसा लगा कि बिजली विभाग के अधिकारी इस मंदिर को तोड़ ही देंगे। उस समय माई के चरणों में बैठे मुकुन्दराम के अश्रुधारा बह निकली और माँ ने भक्त की लाज रख ली तथा अधिकारी का ही स्थानान्तरण हो गया।

महंत दिनेश चतुर्वेदी नौ घरवालों ने बताया कि उसके बाद समय समय पर इस मंदिर को तोडऩे के प्रयास हुए पर माई ने अपने भक्त की लाज हमेशा रख ली और या तो माँ के दर्शन के बाद अधिकारी का मन बदल गया या फिर उस पर ऐसी मुसीबत आई कि वह माँ के शरणागत हुआ अथवा उसे इस जिले से अपना बोरिया बिस्तर बांधना ही पड़ा। माई के आशीर्वाद के चमत्कार के कारण वर्तमान में इस मंदिर में दर्शन के लिए शाम से शुरू हुई लाइन देर रात तक समाप्त होने का नाम नही लेती है।
इनके अलावा नरी सेमरी, सांचौली देवी, चामुंडा, चर्चिका, भैंस बहेारा, पथवारी देवी जैसे ब्रज में दर्जनों देवी मंदिर है जो या तो कृष्णलीला से जुड़े हैं या जिनके चमत्कारों के कारण ही देश के कोने कोने से श्रद्धालु ब्रजभूमि की ओर चुम्बक की तरह खिंचे चले आते हैं।

Updated : 5 April 2017 12:00 AM GMT
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