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निजी स्कूलों ने फिर मचाई लूट,नहीं चला रहे एनसीईआरटी की किताबें

निजी स्कूलों ने फिर मचाई लूट,नहीं चला रहे एनसीईआरटी की किताबें
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-जहां स्कूल बताएं वहीं से लेनी होंगी किताबें और गणवेश
-विद्यालयों की तानाशाही से अभिभावक परेशान

ग्वालियर| किताबों के नाम पर शहर के निजी स्कूलों ने इस साल लूट मचानी शुरू कर दी है। किताबें इतनी महंगी हैं कि खरीदने में अभिभावकों के पसीने छूट रहे हैं। अभिभावकों के मुताबिक इस बार किताबें 25 प्रतिशत तक महंगी हंै। पिछले साल पाठ््यक्रम सामग्री करीब तीन हजार रुपए की आई थी। अब चार हजार रुपए की आ रही है।

कमीशन का खेल ऐसा कि पहले से तय विक्रेताओं के यहां ही पाठ््यक्रम सामग्री उपलब्ध हैं। अधिकांश निजी स्कूलों द्वारा कक्षा एक से 8 वीं तक के कोर्स में अधिकांश किताबें निजी प्रकाशकों की चलाई जाती हैं। किताबों की संख्या भी इतनी रहती है कि बस्ते का वजन संभालना बच्चों के लिए परेशानी होती है। इसके अलावा कुछ स्कूल तो बच्चों की किताबों को पालकों सहित प्रशासन की नजर से बचाने के लिए स्कूलों में ही जमा करा लेते हैं। बच्चों को स्कूल में ही किताबें दी जाती हंै और वहीं वापस ले ली जाती हैं। खास बात यह है कि प्रशासन सहित शिक्षा विभाग भी स्कूलों की इस मनमानी से वाकिफ है, किंतु इसके बावजूद प्रभावी कार्रवाई सामने नहीं आती। कोर्स की किताबें, गणवेश, स्टेशनरी सहित अन्य सामग्री स्कूलों द्वारा तय चुनिंदा दुकानों पर ही मिलेगी। मजबूरी में अभिभावकों को मनमानी रकम चुकाकर खरीदारी करनी पड़ती है। इसमें खास बात यह होती है कि मनमाने दामों पर मिलने वाली सामग्री की वास्तविक कीमत से काफी कम होती है, किंतु अभिभावकों को लागत से कई गुना ज्यादा कीमत में खरीदी करनी पड़ती है। अगर स्कूलों की तानाशाही पर लगाम लगे तो कोर्स 400 से 900 रुपए में ही आए। किंतु वर्तमान में स्कूलों द्वारा चयनित किताबें व अन्य सामग्री चुनिंदा दुकानों से लेने पर 2 हजार से 4 हजार रुपए तक चुकाना पड़ता है। इसके अलावा भी स्कूल में वर्षभर चलने वाली गतिविधियों के नाम पर अभिभावकों को सालभर मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है।

कम नहीं हो रहा बस्ते का बोझ
स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी हर साल बस्ते का बोझ कम करने की बात करते हैं, लेकिन स्थिति इसके उलट है। प्राइमरी तक के छात्रों को ही करीब डेढ़ दर्जन किताबें लेनी पड़ रही हैं। कई किताबें साढ़े 300 रुपए की हैं। नौवीं कक्षा की किताब 600 रुपए की है। अभिभावक रवींद्र कुमार बताते हैं कि इतनी किताबों का कोई मतलब नहीं है। कुछ किताबें तो साल में एकाध बार ही पढ़ाई जाती है।

सीबीएसई स्कूलों में नहीं है एनसीईआरटी की किताबें
पेरेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुधीर सप्रा बताते हैं कि छोटी कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें नहीं पढ़ाई जा रही। कई स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों के साथ निजी प्रकाशकों की किताबें लगाई जा रही हैं। कुछ स्कूल 3 अप्रैल से भी खुल रहे हैं। जबकि सीबीएसई की गाइड लाइन के अनुसार सीबीएसई स्कूलों में सिर्फ एनसीईआरटी की पुस्तकों से पढ़ाया जाना है। लेकिन निजी स्कूल के संचालक एनसीईआरटी की पुस्तकों का इस्तेमाल सिर्फ नाम के लिए कर रहे हैं।

किताबों की करीब 50 से अधिक दुकानें
दाखिले शुरू होते ही किताबों की खरीद भी बढ़ जाती है। अप्रैल माह में ही 10 से 15 करोड़ रुपए की किताबों की खरीदी यहां हो जाती है। शहर में किताबों की लगभग 50 के करीब दुकानें हैं। कुछ पुस्तक विक्रेता महज सरकारी किताबें ही रखते हैं तो कई पुस्तक विक्रेताओं के पास निजी प्रकाशकों की विभिन्न स्कूलों में लगने वाली किताबें उपलब्ध हैं। फिलहाल नए सत्र में दाखिले को लेकर अभिभावकों में चिंता बनी हुई है।

इनका कहना है
स्कूलों से किसी भी प्रकार की शिकायत आती है तो जांच कराई जाती है, अगर जांच में स्कूल में गड़बड़ी पाई जाती है तो सख्त कार्रवाई की जाती है। हमारे पास कोई शिकायत आएगी तो हम जरूर कार्रवाई करेंगे।

विकास जोशी
जिला शिक्षा अधिकारी

Updated : 2 April 2017 12:00 AM GMT
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