प्रभु से मिलने का नाम ही रासलीला

वृन्दावन। प्रभु से मिलन का नाम ही रासलीला है, परमात्मा और जीवात्मा का नृत्य मिलन ही रास है। ब्रजभूमि परमात्मा की प्रेम भूमि है, जहां के कण-कण में कृष्ण हैं।

ये उद्गार श्यामाश्याम चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में मथुरा मार्ग स्थित एक आश्रम पर आयोजित अष्टोत्तरशत श्रीमदभागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ में व्यासपीठ से छबीलेलाल गोस्वामी ने व्यक्त किए। उन्होंने रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुए कहा कि रुक्मिणी चाहती थीं कि प्रभु ही मेरे पति बनें, लेकिन रुक्मिणी का भाई शिशुपाल चाहता था कि उनका विवाह शिशुपाल से हो। भगवान ने रुक्मिणी का हरण कर द्वारिका में जाकर विवाह रचाया।

प्रथमेश गोस्वामी ने कहा कि भोग-विलास का फल इंद्रियों को तृप्त करना नहीं है, बल्कि उसका प्रयोजन केवल जीवन-निर्वाह है। तत्ववेत्ता लोग ज्ञाता और ज्ञेय के भेद से रहित अखंड अद्वितीय सच्चिदानंद स्वरूप ज्ञान को ही तत्व कहते हैं। उसी को कोई ब्रह्म, कोई परमात्मा और कोई भगवान के नाम से पुकारते हैं।इस अवसर पर गायत्रीदेवी गोस्वामी, मीनाक्षी गोस्वामी, सुनील नारंग, कामिनी नारंग, अशोक बहल, विनोद अरोड़ा, मनमोहन शास्त्री, श्रीकांत पांडे, राजेश्वर पांडे, विजय तिवारी, प्रेम, माधव, उमाकांत, रमाकांत आदि उपस्थित थे।

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