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कड़वी खबरों के बीच पंजाब में कांग्रेस ने जगाई उम्मीद की किरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी-अमित शाह की आंधी में एक-एक करके गिरते जा रहे कांग्रेस के विकेट के पतन का सिलसिला पंजाब में रुका है। पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी (आआप) की सरकार बनाने की सभी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। उसने पूर्व मुख्यमंत्री केप्टन अरमिंदर सिंह के नेतृत्व में 77 सीटें जीतकर आआप के सामने एक तरह से लक्ष्मण रेखा खींचकर हिदायत दे दी कि बस यहां से और आगे नहीं। पंजाब में मुकाबला त्रिकोणीय था लेकिन सत्ता में पहुंचने की प्रतियोगिता कांग्रेस और आआप में बराबर की थी। सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ बने इस माहौल में आआप को 20 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन (शिरोमणि अकाली दल-भाजपा)केवल 18 सीटें ही निकाल पाया जिसमें भाजपा की तीन सीटें शामिल हैं।

राज्य में चार फरवरी को मतदान हआ था, 1145 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। 117 सीटों वाले इस हृदय प्रदेश में 1.98 करोड़ मतदाताओं ने 76.69 प्रतिशत मतदान किया था। अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू की जुगलबंदी ने आआप की उन तमाम बड़बोली भविष्यवाणियों पर विराम लगा दिया। जिसमें आआप नेता शेखचिल्ली की तरह सत्ता में आने के बड़े-बड़े दावे कर रहे थे । आआप को इन परिणामों से समझ आया होगा कि उन्हें दिल्ली से इतर सुदूर राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए कैडर वेस पार्टी बनना होगा। केवल अराजकता, हो-हल्ला करने मात्र से बात नहीं बनेगी। यहां-वहां से इकट्ठा होकर चुनाव में प्रचार करने भर से चुनाव नहीं जीते जाते। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कम से कम पंजाब में अमरिंदर सिंह व नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर जो रणनीति बनाई, कारगर रही। अमरिंदर सिंह को बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार जबकि नवजोत सिंह की भूमिका सामने न लाकर उन्हें केवल मेनहत करने के लिए कहा गया। अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह की मांद में घुसकर उन्हें चुनावी रण में ललकार कर उन्हें घेरने की योजना बड़ी कारगर रही। इसके अलावा सिद्धू ने पंजाब के सभी क्षेत्रों में जाकर कांग्रेस के लिए डटकर प्रचार किया था। उनकी मेहनत निश्चित रूप से रंग लाई। उनकी उपस्थिति से कांग्रेस के चुनाव परिणामों में चार चांद लग गए।

पंजाब में सत्ता परिवर्तन होते ही उसके समीपवर्ती राज्यों में खास असर पड़ता है खासकर दिल्ली में सिख बाहुल्य इलाकों में पंजाबियों की रणनीति बदलने लगती है। दिल्ली में शीशमहल, रकाबगंज, बंगला साहिब जैसे गुुरुद्वारों में पंजाब का असर सीधे तौर पर देखा जाता है। दिल्ली सिखगुरु द्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) एक तरह से अमृतसर से ही संचालित होती है जो सिख समाज में बेहद असरदार मानी जाती है।

Updated : 12 March 2017 12:00 AM GMT
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