मत दो अपनी जान रणभूमि के योद्धा!

भारतीय सेना के शौर्य पर सारा देश गर्व करता रहा है। चाहे युद्ध हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा, सेना ने अपने दायित्वों का बखूबी निर्वाह किया है। इसके विपरीत सैनिकों में बढ़ता तनाव अब सारे देश के लिए चिंता का विषय है। फौजी आत्महत्याएं कर रहे हैं। वे आपस में ही एक-दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त करने लगे हैं। ये क्या हो रहा है ? अगर बात सिर्फ 2014 से अब तक की हो तो 330 सैनिकों ने खुदकुशी कर ली है। एक दर्जन मामले ऐसे भी सामने आए, जब किसी सैनिक ने अपने साथी या साथियों को गोलियों से भून डाला। साल 2014 में दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में एक जवान ने अपने ही चार साथियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। मारे गए फौजियों में एक जेसीओ (सूबेदार मेजर) और तीन जवान थे। दरअसल उस भयावह घटना का कारण ड्यूटी को लेकर इनमें हुई झड़प को बताया गया था।
कांटो भरी जिंदगी

निश्चित रूप से फौजी का जीवन बेहद कठोर और कांटों भरा होता है। सेना की नौकरी में लंबे समय तक घर-परिवार से दूर रहकर काम करने के कारण तनाव के हालात पैदा हो रहे हैं। पर,इस समस्या का हल खोजने की किस स्तर पर कोशिशें हुईं ? क्या जवानों को ‘तनाव प्रबंधन’विशेषज्ञों के विचार सुनाए जाते हैं। कहने वाले कहते हैं कि देश के प्रहरी आध्यात्मिक जीवन शैली अपनाकर अपनी शारीरिक-मानसिक क्षमताओं का विकास कर सकते हैं। वे तनाव से मुक्ति पा सकते हैं। सैनिकों को तनाव से मुक्ति दिलवाने के लिहाज से कुछ कोशिशें तो हो रही हैं, पर लगता है कि अब भी इस लिहाज से व्यापक कदम उठाने की जरूरत है। फौजियों को बताए जाने की आवश्यकता है कि तनाव एक धीमा जहर है, जो व्यक्ति के व्यवहार में हताशा, निराशा, चिंता, क्षोभ के रूप में दिखाई देता है। यह एक बहुत बड़ी समस्या है, जो केवल जिम्मेदारियों के बढ़ने से नहीं, जीवन के प्रति हमारी अज्ञानता और उपेक्षा से जुड़ी है।अध्यात्म के मार्ग पर चलकर जवान तनाव से बच सकते हैं। बेहतर होगा कि सीमा पर तैनात जवानों को ध्यान, योग-निद्रा, संगीत, उपासना-प्रार्थना, स्वाध्याय के महत्व को समझाया जाए।

330 ने की आत्महत्या

बेशक,अपने को विश्व शक्ति होने का दावा करने वाले देश को शोभा नहीं देता कि वहां का रक्षा क्षेत्र इतने संकट में हो। इस बीच,खुदकुशी को लेकर एक राय ये भी है कि ये एक तरह की मानसिकता होती है। कुछ लोग विपरीत परिस्थितियों में रहने के बाद भी नहीं टूटते। कुछ कठोर हालातों का सामना नहीं कर पाते और आत्महत्या कर लेते हैं। ताजा मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, 2014 से लेकर अब तक 330 सैनिकों ने आत्म हत्या कीं। इन सभी के कारणों का गहनता से अध्ययन कर लिया जाना चाहिए। भारतीय सेना के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है। उसे उन कारणों का पता अवश्य लगाना होगा ताकि सेना के जवान खुदकुशी ना करें और अपने साथियों की ही जान के प्यासे ना हो जाएं। खुदकुशी करने वाले फौजी कौन हैं? क्या ये वही हैं, जो सीमावर्ती इलाकों में देश विरोधी तत्वों से लोहा ले रहे हैं? क्या सैनिकों के ऊपर काम का बोझ बहुत अधिक है? क्या उन्हें समय पर घर जाने के लिए अवकाश मिलने में कठिनाई होती है? वजहें तो हैं,जिसके कारण फौजी इतने बड़े फैसले ले लेते हैं? एक कारण तो साफ है कि अपने घऱ से सैकड़ों-हजारों मील दूर जाकर नौकरी करने के चलते पारिवारिक स्तर पर कठिनाइयां तो आती होंगी। जाहिर सी बात है कि परिवार के किसी सदस्य की बीमारी-लाचारी के दौरान ये सैनिक परेशान हो जाते होंगे, पर दूरी के कारण कुछ भी करने की स्थिति में नहीं होते होंगे? लेकिन क्या सेना में भर्ती होने से पहले उन्हें मालूम नहीं होता कि उन्हें अपने घर के आसपास की पोस्टिंग नहीं मिल सकती है। अगर कभी मिले तो ये संयोग ही है। उन्हें ये भी जानना-समझना होगा कि सिर्फ सैनिक ही घऱ से दूर रहकर नौकरी नहीं कर रहे। कई दूसरे लोग तो विपरीत हालातों में विदेशों में जाकर भी नौकरी करते हैं।

अमेरिका के हालात

ये भी बताना जरूरी है कि सैनिकों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के मामले में सिर्फ भारत का ही नाम नहीं आता। अमेरिका में भी सैनिक आत्म हत्या करते हैं। इराक की जंग से पहले औसत हर साल एक लाख में 12 अमेरिकी सैनिक आत्महत्याएं कर रहे थे। हालांकि इराक के साथ सन 2004 में हुई जंग के पश्चात खुदकुशी करने वाले अमेरिकी सैनिकों का आंकड़ा बढ़ गया। ये अगले पांच साल में दो गुना हो गया। अमेरिका में सेना से रिटायर हो गए अफसर भी खुदकुशी कर रहे हैं। भारत में इस तरह की कतई स्थिति नहीं है। भारत में रिटायर हो चुके फौजी खुदकुशी नहीं करते। अगर बात ब्रिटेन की करें, तो वहां पर हर दो हफ्ते में एक सैनिक अपनी जीवनलीला को समाप्त कर रहा है। बाकी देशों में भी कमोबेश यही हालात होंगे।

छोटी उम्र में नौकरी

मेरे अपने अध्ययन से सैनिकों के आत्महत्या के कारणों के कुछ अहम निष्कर्ष सामने आ रहे हैं। उदाहरण के रूप में फौजी बहुत छोटी उम्र में सेना की नौकरी में चला जाता है। उस समय वो 20-21 साल का होता है। तब तक उसके माता-पिता परिवार को देख रहे होते हैं। इसलिए शुरुआती वर्षों में तो उसे घर की कोई चिंता नहीं रहती। वक्त गुजरने के साथ उसकी पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे जैसे मामले उसकी गैर-मौजदूगी में तय होने लगते हैं। इसके चलते वह बहुत तनाव में रहने लगता है। ये तनाव ही फौजियों की मौत का कारण बनता है। यहां पर एक बिन्दु को रखना चाहता हूं कि सेना में अफसर तो कभी-कभार ही खुदकुशी करते हैं। अधिकतर खुदखुशी करने वाले मामले फौजियों से जुड़े रहते हैं। एक और पक्ष की तरफ ध्यान नहीं जाता। होता ये है कि फौजी की जब शादी होती है, तब उसकी उम्र बीसेक साल होती है। पांच-छह साल सेना की नौकरी करने के बाद उसकी शादी होती तो उसके लिए अपने को एडजेस्ट करना कठिन हो जाता है। शादी से पहले तो उसके माता-पिता ने घर को संभाला होता है। शादी के बाद उसका भी अपना परिवार बन जाता है। उसे पत्नी को देखना होता है। पत्नी की भी उससे अपेक्षाएं रहती हैं कि वो उसके साथ कुछ खास मौकों पर रहे। ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले फौजियों को इस स्थिति से खासतौर पर दो-चार होना पड़ता है। फौजी जब बीच-बीच में घर जाने के लिए छुट्टी मांगता है और उसकी छुट्टी की अर्जी किसी कारणवश खारिज हो जाती है तो वो बागी हो जाता है। वो अपनी बंदूक से अपने साथी का कत्ल करने से भी नहीं चूकता। दरअसल सीमावर्ती इलाकों में और जहां सेना देश विरोधी तत्वों से लोहा ले रही होती है, वहां पर सैनिकों का दिल बहलाने का कोई साधन नहीं होता। कोई मनोरंजन का जरिया नहीं होता। जरा सोचिए उन सैनिकों के बारे में। रूह कांप जाती है। उत्तर प्रदेश का रहने वाला कोई फौजी जब मणिपुर के सुदूर भाग में अपने घऱ से कोई अप्रिय खबर पाता है तो वो कितना विचलित हो जाता होगा। जरा सोचिए उस पर क्या गुजरती होगी, जब उसे छुट्टी नहीं मिलती। सरकार और फौज को फौजियों में खुदकुशी और आपस में ही खून बहाने के बढ़ते मामलों के कारणों और उनके हल तलाशने ही होंगे।

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