बिजली कम्पनी में ई-सर्विस बुक पॉलिसी लागू करने की तैयारी

बिजली कम्पनी में ई-सर्विस बुक पॉलिसी लागू करने की तैयारी

-विद्युत फैडरेशन ने किया विरोध, कहा इससे निजता के मौलिक अधिकारों का हनन होगा

ग्वालियर।
मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी ई-सर्विस बुक पॉलिसी लागू करने की तैयारी कर रही है। कम्पनी के भोपाल और ग्वालियर दोनों रीजनों में इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। म.प्र. विद्युत कर्मचारी संघ फैडरेशन ने इसका विरोध किया है। फैडरेशन ने 20 वर्ष पूर्व से पदस्थ स्थाई व नियमित कर्मचारियों की निजी जानकारियां एकत्रित कर ई-सर्विस बुक पॉलिसी लागू करने की प्रक्रिया को निजता के मौलिक अधिकारों का हनन बताया है।

विद्युत फैडरेशन के जोनल सचिव एस.के. जायसवाल एवं कर्मचारी प्रतिनिधि मनोज भार्गव ने मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कम्पनी के प्रबंध संचालक को पत्र लिखकर कहा है कि हाल ही में इंग्लेण्ड के हैल्थ केयर सर्विस संस्थान पर सायबर अटैक हो गया था। ऐसा बिजली कम्पनी में नहीं होगा। इसकी क्या गारंटी है, जबकि बिजली कम्पनी के पास कोई हाईटेक्नोलॉजी नहीं है, जिससे कर्मचारियों के जीपीएफ, ईपीएफ, बैंक खाता, आधार, मोबाइल, नम्बर, ई-मेल आईडी आदि के सार्वजनिक दुरुपयोग को रोका जा सके। सायबर लॉ क्राइम के परिप्रेक्ष्य में इस बात की क्या गारंटी होगी कि एन्टी वायरस के कारण कर्मचारियों के ई-सर्विस बुक संबंधी डाटा की प्रायवेसी भंग नहीं होगी।

कर्मचारी प्रतिनिधियों का कहना है कि ई-सर्विस बुक प्रक्रिया से कर्मचारियों के निजी जीवन में झांकने की खुली छूट मिलेगी, जिससे यह जानकारी ऐसे लोगों तक पहुंचेगी, जो इसके लिए उपयुक्त नहीं हैं। निजता विधेयक के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय ने भी व्यक्तिगत जीवन में घुसने के राज्य के निरपेक्ष अधिकार पर लगाम लगाई है, इसलिए ई-सर्विस बुक को डिजीटल करते समय ऐसी प्रक्रिया अपनाई जाना चाहिए, जिससे निजता के कानून का हनन न हो। अत: ई-सर्विस बुक को डिजीटल करने की प्रक्रिया को फिलहाल व्यापक हित में रोका जाए और पहले ऐसे ठोस उपाय किए जाएं, जिससे कर्मचारियों की निजता सुरक्षित बनी रहे।

पुराने दस्तावेजों में लग चुकी है दीमक

विद्युत फैडरेशन का कहना है कि जब प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की वर्तमान में प्रचलित सर्विस बुक को उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय प्रमाणित मानता है। ऐसे में ई-सर्विस बुक की अचानक संरचना किया जाना समझ से परे है। इसके अलावा कई ऐसे मामले भी जानकारी में आए हैं कि म.प्र. विद्युत मंडल के समय 30 वर्ष पहले से मस्टर पर रखे गए कर्मचारियों के 30 से 35 साल पुराने दस्तावेजों में या तो दीमक लग चुकी है या वे क्षतिग्रस्त हो गए हैं। उन दस्तावेजों को बिजली कम्पनी द्वारा अचानक मांगे जाने से कर्मचारियों के समक्ष अड़चन पैदा हो गई है और उन्हें जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए 20 से 30 साल तक म.प्र. विद्युत मंडल में सेवारत रहे कर्मचारियों से मूल निवास का प्रमाण-पत्र अचानक मांगा जा रहा है, जो हास्यास्पद है।

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