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दीपावली पर अंतर्मन को बनाएं प्रकाशवान

दीपावली पर अंतर्मन को बनाएं प्रकाशवान
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- सुधांशु द्विवेदी

प्रकाश पर्व दीपावली समृद्धि, संपन्नता तथा खुशहाली का प्रतीक है। दीपावली के पावन अवसर पर अंतर्मन को निर्मल एवं निर्विकार बनाने का संकल्प भी लिया जाना चाहिए। आज देश व समाज में परिस्थितियां काफी हद तक विषम हैं।

मानवीय मूल्यों एवं श्रेष्ठ सरोकारों की जगह स्वार्थ एवं छल-कपट की मनोवृत्ति का बोलबाला सा होता जा रहा है। बाजारवाद एवं भौतिकतावाद के इस दौर में आर्थिक समृद्धि को ही अपनी श्रेष्ठता का एकमात्र पैमाना माना जा रहा है। ऐसे में फिर व्यक्तित्व व इंसानियत से जुड़े अन्य पहलुओं का नजरअंदाज होना तो स्वाभाविक ही है। देश और समाज में कतिपय दूषित एवं कलुषित मनोवृत्ति के लोगों द्वारा नफरत, जातीय एवं सांप्रदायिक वैमनस्य के माध्यम से सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने की साजिश जैसी रची जा रही है। देश में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, नक्सलवाद, उन्माद तथा मानवता व राष्ट्र को कमजोर करने वाली अन्य समस्याओं एवं मुद्दों के समाधान की दिशा में कारगर प्रयासों के अभाव के कारण देश की स्थिति भी चिंताजनक है। जिनके हाथों में व्यवस्था को दुरूस्त करने की महती जिम्मेदारी है, वह कर्तव्यविमुख से हो गये हैं। उधर, उन्हें उलाहना देने वालों की मन: स्थिति ऐसी है कि वह अपने स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं करना चाहते तथा सिर्फ जिम्मेदारों से ही जिम्मेदारियों के निर्वहन की उम्मीद कर रहे हैं। ऐसे में दीपावली के पावन अवसर पर राष्ट्र एवं समाज हित में स्वप्रेरित एवं स्वस्फूर्त ढंग से अपनी अग्रणी भूमिका निभाने का संकल्प लेने की जरूरत है। देश में खासकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आये दिन बहस छिड़ती रहती है। आंदोलन होते रहते हैं तो फिर उन्हीं आंदोलनों के विफल होने का दृश्य भी सामने आता है। ऐसे में देश एवं समाज में ऐसा वातावरण निर्मित किये जाने की आवश्यकता है कि हर व्यक्ति अपने आप में इस बात का संकल्प ले कि हम पूर्णत: ईमानदार रहेंगे तथा हम जिस भी भूमिका या जिस भी स्तर पर हैं, हम वहां अपने हिस्से का काम पूरी ईमानदारी से करेंगे। हम भले ही दूसरों को ईमानदार न बना सकें या दूसरों के लिए आदर्श नहीं बन सकें लेकिन दुनिया की कोई भी ताकत हमें ईमानदारी के पथ से विचलित नहीं कर सकती।

अगर सभी देशवासी शुद्ध अंत:करण से ऐसा संकल्प लेंगे तो फिर देश में भ्रष्टाचार, सामाजिक व आर्थिक भेदभाव व विपन्नता का संपूर्ण सफाया होने में देर नहीं लगेगी। ऐसी सोच स्वस्फूर्त व स्वप्रेरित ढंग से विकसित होना आवश्यक है। देश की राजनीतिक बिरादरी के लोग हों या गैर राजनीतिक लोग, उन्हें दूसरों के लिए उपदेशक बनने के बजाय खुद उपासक बनकर समाज में श्रेष्ठ व अनुकरणीय आदर्शों की स्थापना करनी होगी, क्यों कि पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे। कहने का तात्पर्य यह है कि समस्याओं, विडंबनाओं और अन्य परिस्थितिजन्य विषंगतियों को लेकर दूसरों को उपदेश देने वाले तथा उलाहना देने वाले लोग तो बहुतायत में मिल जाएंगे। इसके विपरीत स्वयं आगे आकर अपनी जिम्मेदारियां समझने एवं धारणा के अनुरूप खुद आचरण करने वाले लोग विरले ही होते हैं। ऐसे में आवश्यक है कि देश के हर खास व आम व्यक्ति को राष्ट्रीयत्व व अपनी जिम्मेदारियों का बोध हो तथा वह कर्तव्य निर्वहन के मामले में दूसरों का मुंह ताकने के बजाय खुद अग्रणी बनें।

देश में हमेशा ही संवैधानिक अधिकारों और हक की दुहाई दी जाती है लेकिन संवैधानिक कर्तव्यों की चिंता शायद ही किसी को रहती हो। ऐसे में लोगों का रवैया अगर अपने कर्तव्यों के प्रति दायित्वबोध से युक्त होगा तो फिर उन्हें अपने अधिकारों की प्राप्ति या संरक्षण के लिए अतिरिक्त या अतिरंजित प्रयासों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। लोग अपने कर्तव्य पूरे करेंगे तो अधिकारों की प्राप्ति व संरक्षण स्वयमेव होता जायेगा। फिर कहीं भी बेकारी, बेरोजगारी, भुखमरी, सामाजिक एवं आर्थिक भेदभाव की कोई समस्या नहीं रहेगी। देश में मानवीय मूल्यों का संरक्षण, संवर्धन एवं विकास बड़े पैमाने पर होगा। ऐसे पावन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक है कि दीपावली के पावन पर्व पर छल, कपट, झूठ, पाखंड से दूर रहने का संकल्प लेकर अंतर्मन को प्रकाशवान बनाया जाए।

Updated : 19 Oct 2017 12:00 AM GMT
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