नेत्रहीन दिव्यागों को ब्रेल लिपि दिखा रही पढ़ाई की राह

आगरा। नेत्रहीन दिव्यागों को ब्रेल लिपि पढ़ाई की राह दिखा रही है। किताबों पर उभरे अक्षरों से पढऩे की दिशा दिखा रही इस अनौखी लिपि की शुरुआत देश में साठ साल पहले हुई। छह बिंदुओं के सहारे आज नेत्रहीन अनौखे अक्षरों के सहारे पढऩा सीख रहे हैं, तो ओलम ज्ञान से पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर जीवन जीने की राह तैयार कर रहे हैं। सूरकुटी में तो चार दर्जन से ज्यादा नेत्रहीन छात्र शब्दों के जाल को सीखने में जुटे हैं।

ब्रेल वर्णमाला उभरे शब्दों को छूकर ही पढऩे- लिखने के व्यवहार में लाने की एक पद्धति है। नेत्रहीन इस लिपि का ज्ञान अपनी दुनिया को रोशन करने को करते हैं। इसके उभरे हुए एक डॉट की औसतन ऊंचाई .002 इंच होती है। देश में नेत्रहीनों की पढ़ाई की शुरुआत 1951 के बाद हुई, जब भारतीय अक्षरों को लिखने का काम शुरू हुआ।

सूरकुटी में 58 छात्र सीख रहे अक्षर ज्ञान
कीठम झील में 1976 से संचालित महाकवि सूरदास नेत्रहीन विद्यालय अब तक सैंकड़ों नेत्रहीनों की दुनिया को संवार चुका है। डॉ. सिद्धेश्वर नाथ श्रीवास्तव और फूल सिंह नीरव द्वारा रोपा गया नन्हा पौधा आज आंखों से दिव्यांगों के लिए वट वृक्ष बन चुका है। आज यहां आसपास के तीन नेत्रहीनों के साथ ही 58 छात्र ब्रेल लिपि के जरिये पढऩा सीख रहे हैं। शुरुआत में ऐसे नेत्रहीन को यहां दाखिले के बाद ओलम सिखाई जाती है। ओलम में निपुण होने के बाद ऐसे दिव्यांग ब्रेल लिपि की किताबों के सहारे अक्षरों को पहचानकर बोलना सीखते हैं। ओलम के बाद चिन्ह और गणितीय शब्दों का ज्ञान कराने के बाद पूरी पढ़ाई कराई जाती है। छह बिंदुओं पर पूरी पढ़ाई कराई जाती है। विद्यालय में 2008 से प्रधानाचार्य का दायित्व संभाल रहे महेश कुमार राजपूत बताते हैं, पढ़ाई तो सीखने वाले की प्रवृति पर है। बालपन में निश्शुल्क पढऩे को आने वाले इस पढ़ाई को छह माह में तो बड़ी उम्र वाले अधिकतम इसे एक साल में पूरा कर लेते हैं। विद्यालय में छात्रों सहित शिक्षक और प्रधानाचार्य सभी दिव्यांग हैं।

महंगी हैं किताबें
नेत्रहीनों को साक्षर बनाने वाली किताबें महंगी हैं। यह किताबें केवल देहरादून, दिल्ली में मिलती हैं। एक किताब डेढ़ सौ रुपये से अधिक की होती है। नेत्रहीन उभरे पूरे अक्षर पर अंगुली फेरकर अक्षर को समझने के बाद बोलना सीखता है। किताबें पढऩे के साथ ऐसे दिव्यांगों को स्वरोजगार से जोडऩे के लिए भी यहां खास प्रशिक्षण देने का इंतजाम है।

लुई ब्रेल ने खोजी थी लिपि
नेत्रहीनों को पढऩे की राह दिखा रही ब्रेल लिपि की खोज फ्रांस में जन्मे लुई ब्रेल ने आज से 95 साल पहले की थी। खुद नेत्रहीन लुई ने रायल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइन्ड्स में दाखिला लिया, तो शाही सेना के अंधेरे में संदेश पढऩे की जानकारी हुई। इसके बाद छह बिंदुओं की यह लिपि तैयार की, जिससे नेत्रहीनों को पढऩे की राह तैयार हुई। उस समय केवल अक्षर ज्ञान कराया जाता था, बाद में डॉट शामिल किए गए।

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