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हिन्दुत्व एक जीवन शैली


देश के शीर्ष न्यायालय द्वारा चुनावों में धर्म के इस्तेमाल पर रोक लगाने संबंधी जो निर्णय दिया है वह देश के राजनीतिक क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। अच्छी बात यह है कि उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय ऐसे समय आया है जब पांच राज्यों के चुनाव सिर पर हैं। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण तो उत्तरप्रदेश के चुनाव हैं जहां समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस जैसे राजनीतिक दल धर्म, जाति, भाषा, संप्रदाय जैसे विषयों को लेकर जनता के बीच भ्रम फैलाते रहे हैं। इस निर्णय के बाद समाज में विभेद पैदा करने, वैमनस्यता फैलाने वाले ऐसे राजनीतिक दलों की कथित गतिविधियों पर लगाम लगेगी। उच्चतम न्यायालय की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तीन के मुकाबले चार के बहुमत से जो व्यवस्था दी है उसमें जहां हिन्दुत्व की व्याख्या को स्पष्ट किया है साथ ही यह भी साफ कर दिया है कि चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है इसमें धर्म की कोई भूमिका नहीं है। अपनी इस टिप्पणी के साथ ही उच्चतम न्यायालय ने यह भी साफ कर दिया कि हिन्दुत्व के नाम पर वोट मांगने को हिन्दू-धर्म के नाम पर वोट मांगना नहीं माना जा सकता।

यहां बताना उपयुक्त होगा कि चुनाव में धर्म के इस्तेमाल से संबंधित विचारार्थ याचिकाओं में 1995 में हिन्दुत्व को लेकर किए फैसले पर भी पुन: विचार करने की बात कही गई थी। इसे उच्चतम न्यायालय ने सिरे से खारिज करते हुए साफ कर दिया कि वह हिन्दुत्व से जुड़े 1995 के फैसले पर फिर से विचार नहीं करेगा। उल्लेखनीय है कि 1995 में उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने हिन्दुत्व को जीवनशैली बताया था। न्यायालय ने कहा था कि हिन्दुत्व के नाम पर वोट मांगने को हिन्दू धर्म के नाम पर वोट मांगना नहीं माना जा सकता। गौरतलब है कि 1992 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव हुए थे, उस समय वहां के नेता मनोहर जोशी ने बयान दिया था कि महाराष्ट्र को वे पहला हिन्दू राज्य बनाएंगे जिस पर इस देश के छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी और हिन्दुत्व विरोधी शक्तियों ने छाती पीट-पीटकर विधवा विलाप शुरु कर दिया था, नतीजा यह हुआ था कि 1995 में मुम्बई हाईकोर्ट ने उक्त चुनाव को रद्द कर दिया था। बाद में यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंचा था जहां जस्टिस जेएस वर्मा की बेंच ने फैसला दिया था कि ‘हिन्दुत्व’ एक जीवनशैली है, इसे हिन्दू धर्म के साथ नहीं जोड़ा जा सकता, इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने मुम्बई हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया था। इस प्रकार सोमवार को एक बार पुन: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिन्दुत्व पर 1995 के फैसले को ही कायम रखने की बात कही है। यह निश्चित ही उन तत्वों के लिए बड़ा झटका भी कहा जा सकता है जो हिन्दुत्व और उसमें निहित महान परम्पराओं का वैचारिक, राजनीतिक विरोध करते रहे हैं। जहां तक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनावों में धर्म के इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात है वह भी इस देश की राजनीति के लिए बेहद महत्वपूर्ण बात है। सर्वविदित है कि चुनावों के समय कुछ विशेष राजनीतिक दलों द्वारा दल विशेष के समर्थन और विरोध में फतवा जारी करने जैसे हथकंडे अपनाकर धर्म के गलत इस्तेमाल के मामले सामने आते रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय से निश्चित ही इस तरह की भ्रमित करने वाली गतिविधियों पर लगाम लगेगी।

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Updated : 4 Jan 2017 12:00 AM GMT
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