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हड़ताली कर्मचारी और रिक्शेवाला - एक लघुकथा

हड़ताली कर्मचारी और रिक्शेवाला - एक लघुकथा
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*मनोज कुमार शर्मा '"एडवोकेट"

रिक्शेवाला बड़ी देर से हड़ताली कर्मचारियों को देख रहा था जो टेंट लगाए वेतनमान बढ़ाए जाने की मांग सरकार से कर रहे थे आज हड़ताल का 10वां दिन था। सभी बात कर रहे थे कि आज शायद कर्मचारियों की मांगें मान ली जाएंगी। रिक्शेवाला इस उम्मीद में खड़ा था कि कोई हड़ताली कर्मचारी उसके रिक्शे में बैठ जाए तो उसको भी कुछ मिल जाए जिससे वह अपने बच्चों के लिए आटा दाल ले जा सके। तभी शोर हुआ और खबर आयी कि सरकार ने कर्मचारियों की सभी मांगें मान लीं, सभी कर्मचारियों को अगले माह से बढ़ा हुआ वेतन मिलेगा।

मतलब हड़ताल खत्म। सभी कर्मचारी एक-दूसरे को बधाई देने लगे। वह अपने वेतन का हिसाब लगाने लगे उनको अब बढ़े हुए वेतनमान में प्रतिमाह 10 हजार अधिक मिला करेंगे। वह खुश हो गए और घर के लिए चल दिए। वह रिक्शेवाले के पास पहुंचे और उसे अपने घर का पता बताकर रिक्शे में बैठ गए। रास्ते में वह बढ़े हुए वेतन की गुदगुदाहट महसूस करते रहे। जब उनका घर आया और रिक्शेवाले ने कहा कि साहब आपका घर आ गया तब उनकी तन्द्रा भंग हुई। उन्होंने 10 रुपये निकालकर रिक्शेवाले को दिए लेकिन रिक्शेवाले ने कहा साहब अब महंगाई बढ़ गई है इस कारण अब 10 नहीं 12 रुपये दीजिए। उन्होंने घूरकर रिक्शेवाले को देखा और बोले-क्या मतलब तुम्हारा, महंगाई बढ़ गई है तो क्या हुआ दूरी तो नहीं बढ़ी? महंगाई बढ़ गई है तो हमें लूट लोगे। मैं 12 रुपये नहीं दूंगा ये लो 10 रुपये और वह रिक्शेवाले को 10 का नोट थमाकर बड़बड़ाते हुए अपने घर चले गए। क्या जमाना आ गया है जब मन चाहा पैसे बढ़ा दिए।

रिक्शेवाला उनको जाते हुए देखता रहा और सोचने लगा, आप लोग तो सरकार से हड़ताल करके अपना वेतन बढ़वा लेते हो हम गरीब तो हड़ताल भी नहीं कर सकते यदि हड़ताल की तो शाम को ही बच्चों को क्या खिलाएंगे और यदि हड़ताल करें भी तो किसके खिलाफ, हमारी सुनने वाला है कौन?

Updated : 14 Sep 2016 12:00 AM GMT
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