इंतजार अब अमित शाह की टीम का- प्रमोद पचौरी

इंतजार अब अमित शाह की टीम का- प्रमोद पचौरी
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इंतजार अब अमित शाह की टीम का

* मोदी ने किए सारे अनुमान धराशायी
* संगठन में भी होंगे कई चांैकाने वाले चेहरे

प्रमोद पचौरी/नई दिल्ली। पिछले दिनों पांच जून को हुए मोदी मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर समूचा मीडिया जगत फिर से गच्चा खा गया। तमाम अनुमान धरे के धरे रह गए। सारतत्व निकला तो सिर्फ मोदी-अमितशाह की जुगलबंदी का। रेडियो पर मन की बात करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात जानना वाकई टेढ़ी खीर है। इस फेरबदल के साथ यह साबित हो गया है कि मोदी लीक पर चलने वालों में से नहीं।

वे हर बार कुछ नया प्रयोग लेकर आते हैं। उनका शिगूफा हिट हो ही जाता है। वर्तमान का फेरबदल बहुत कुछ भविष्य की उम्मीदों को लेकर ऊंचे पायदान पर खड़ा है। पर फिर भी सवाल तो उठता ही है कि इस फेरबदल के क्या मायने समझे जाएं? हालांकि भाजपा अध्यक्ष जल्द ही एक-दो दिन में संगठन को विस्तार देने वाले हैं। इसके लिए वे पूरी शिद्दत के साथ जुट गए हैं। वे चेहरों को तौल रहे हैं। प्रमुख चेहरों में उम्मीदें तलाश रहे हैं। संभावनाएं तलाश रहे हैं। सलाह-मशविरा कर रहे हैं। फीडबैक ले रहे हैं। सर्वे करवा रहे हैं। संगठन में विस्तार हो जाने के बाद ही खाका पूरी तरह से स्पष्ट हो पाएगा कि भाजपा किस नए कलेवर के साथ उतरने वाली है। फेरबदल के बाद जिन चेहरों को लेकर सबसे ज्यादा अगर चर्चा है तो उनमें स्मृति ईरानी व रामशंकर कठेरिया का नाम राजनीतिक विश्लेषकों की जुबान पर है। कहा जा रहा है कि दोनों के प्रभाव को कम किया गया है। अगर ऐसा समझा जा रहा है तो यह भूल है। क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर यही वो दो चेहरे हैं जिनके इर्दगिर्द राजनीति घूमने वाली है। जाहिर है स्मृति ईरानी और कठेरिया खास जिम्मेदारी के साथ उतरेंगे।

बाकी योगी आदित्यनाथ, वरुण गांधी, राजबीर सिंह ये सब शतरंज के मोहरे हैं जिनका राजनीतिक प्रयोग किया जाना है। यह देखना दिलचस्प है कि आखिर भाजपा आलाकमान किस तरह इन्हें पत्तों की तरह फेंटते हैं, यह संगठन विस्तार के बाद साफ हो जाएगा।

अनुप्रिया पटेल को राज्यमंत्री बनाया जाना एक तरह से सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। क्या नीतीश कुमार बिहार का प्रयोग उत्तर प्रदेश में नहीं दोहराएंगे। कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए अनुप्रिया तुरुप का पत्ता साबित होंगी। लेकिन इस कवायद ने अपना दल में बवाल पैदा कर दिया है। बताया जा रहा है कृष्णा पटेल इस निर्णय से बेहद खफा हंै और सबक सिखाने के लिए नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यू से गठबंधन का मन बना रही है। अगर ऐसा होता है तो अनुप्रिया का क्या होगा? अगर अपना दल भाजपा से गठबंधन तोड़ता है तब क्या अनुप्रिया भाजपा में जाएंगी? या नया अपना दल बनाएंगी। ऐसे में अपना दल के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगेंगे। वैसे शुक्रवार शाम तक अपना दल भाजपा से नाता तोडऩे का फरमान जारी कर सकता है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ कृष्णा पटेल की बात से संकेत मिल रहे हैं कि जनता दलयू के साथ बात अंतिम दौर में पहुंच चुकी है। इसी बीच भाजपा के अंदर से खबर चल रही है कि मंत्रिमंडल में राजबीर व योगी आदित्यनाथ को शामिल नहीं करने पर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह खासे नाराज बताए जाते हैं। खतरे को टालने के लिए प्रदेश प्रभारी ओपी माथुर व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष केपी मौर्य दोनों को राजस्थान भेजा गया है। भाजपा ने अनुप्रिया पर दांव चलकर न केवल नीतीश पर काबू पाने की कोशिश की है बल्कि अनुप्रिया के कंधों पर ओबीसी वोट बैंक को भाजपा के पाले में लाने की जिम्मेदारी डाल दी है। इसी तरह महेंद्रनाथ पाण्डेय को लेकर ब्राह्मण वोट बैंक साधने की कोशिश है। फिर रही बात ठाकुर लाबी को साधने की सो इसके लिए अकेले राजनाथ सिंह ही काफी हैं। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश भाजपा ब्राह्मण, ठाकुर, ओबीसी व दलित फेक्टर के सहारे दांव चलने जा रही है। ब्राह्मण लाबी में कलराज मिश्रा और महेंद्रनाथ जोर लगाएंगे। वहीं अनुप्रिया अपना दल में मजबूत होकर उभरेंगी। पर वरुण और योगी आदित्य नाथ का क्या होगा? क्या इन्हें संगठन में असरदार पद मिलेगा? तब क्या वरुण और योगी महासचिव बनेंगे? या अलग-अलग खास भूमिका में उतरेंगे? ये कुछ अनबूझे सवाल हैं जो उठते रहेंगे। कब तक? जब तक कि संगठन में विस्तार नहीं हो जाता।

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