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क्या ऐसे ही मरते रहेंगे हमारे नौनिहाल

क्या ऐसे ही मरते रहेंगे हमारे नौनिहाल

हमारे देश में बच्चों के अपहरण और बाद में उनकी निर्मम हत्या के मामले लगातार बढ़ते जाना बेहद चिंता का विषय है। बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश यहां तक कि देश की राजधानी में आए दिन अपहरण की एक नहीं अनेक दिल दहला देने वाली वारदातें सामने आती रहती हैं। परिवारों की आपसी रंजिश का शिकार भी बच्चों को बनाया जाता है और अपहरण और फिर उनकी निर्मम हत्या के मामले लगातार समाचार पत्रों में छपते रहते हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश के ग्वालियर में एक 13 वर्षीय स्कूली छात्र का अपहरण कर उसकी निर्मम हत्या कर दी गई। छात्र को अपराधियों ने जिस समय निशाना बनाया वह बस्ता लेकर ट्यूशन पढऩे जा रहा था।

बाद में उसका शव एक बोरे में बांधकर गटर में फेंक दिया गया। ऐसा ही एक मिलता जुलता मामला उत्तरप्रदेश के मेरठ शहर में सामने आया जहां एक कपड़ा कारोबारी के 11 वर्षीय बालक का अपहरण कर उसकी हत्या कर दी गई। बाद में शव हाथरस से बरामद किया गया। आखिर हमारे देश में बच्चे क्यों सुरक्षित नहीं हैं? क्यों हमारी सरकार इस पर कोई नीति का निर्धारण नहीं करती? बच्चों के लिए काम करने वाला संगठन चाइल्ड राइट्स एंड यू और अलांयस फॉर पीपुल्स ने बच्चों के लापता होने उनके अपहरण पर एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत को लेकर जो कुछ कहा गया है वास्तव में वह हमारे लिए शर्मसार कर देने वाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की राजधानी दिल्ली में 12 से 18 साल उम्र के लडक़े-लड़कियां बड़ी संख्या में गायब होते हैं। कराए गए सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले साल उक्त युवावर्ग के 3715 लड़कियां और 2493 लडक़े गुमशुदा हुए। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बचाई गई बच्चियों से मिली प्रतिक्रिया से जो बात सामने आई है उसके मुताबिक पहले इन किशोरियों का अपहरण किया जाता है और उन्हें देह व्यापार में धकेल दिया जाता है। इतना ही नहीं इन बच्चियों से घरेलू सेविकाओं के रूप में काम कराने का उद्योग भी इस देश में फल फूल रहा है। लडक़ों की बात की जाए तो 2493 लडक़े भी लापता हुए हैं।

गुमशुदा के नाम पर इन बच्चों की रिपोर्ट लिखाई जाती है लेकिन सच तो यह है कि लाभ उठाने की मंशा से इन बच्चों का अपहरण किया जाता है, उन्हें उठा लिया जाता है। 0-8 साल के आयु वर्ग के बच्चों का अपहरण अधिकतर अवैध तरीके से गोद लेने के लिए किया जाता है दोनों ही संस्थाओं अर्थात ‘क्राई’ और ए.पी.आर. ने देश में हजारों की संख्या में गायब हो रहे बच्चों के विषय को लेकर एक जन सुनवाई का भी आयोजन किया। इनमें बच्चों के अभिभावकों का दर्द दिल दहला देने वाला था। अभिभावकों ने साफतौर पर कहा कि लापता या अपहृत हो रहे बच्चों की तलाश सरकार की प्राथमिकता में नहीं है। बात सौ प्रतिशत सच है। ऐसा इस लिए क्योंकि आपसी लाभ के लिए अपहृत किए जा रहे बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करके सब कुछ पुलिस के ऊपर डाल दिया जाता है। बड़ी संख्या में पुलिस ऐसे मामलों का समय रहते पता लगाने में सफल नहीं होती और इस दौरान या तो अपराधी बच्चों को मार देते हैं या फिर बच्चों का गलत आर्थिक दुरुपयोग किया जाता है।

ग्वालियर, मेरठ की घटनाओं में पहले बच्चे का अपहरण किया, पुलिस पता लगाने में नाकामयाब रही तो बच्चे की हत्या कर लाश फेंक दी। ऐसे प्रकरण देश के किसी न किसी शहर में एक से अधिक संख्या में रोजाना घटित होते हैं। क्या हमारे देश का भविष्य ऐसे ही अपराधियों की बलि चढ़ता रहेगा? अब समय आ गया है सरकार इस दिशा में गंभीरता से विचार करे और बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक नीति बनाई जाए, इतना ही नहीं राज्य सरकारों पर भी बाल संरक्षण को लेकर सख्ती बरतने का दबाव बनाया जाए।

Updated : 7 July 2016 12:00 AM GMT
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