दौर 'गमों' का नहीं 'गुनने' का है- अतुल तारे
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दौर 'गमों' का नहीं 'गुनने' का है
अतुल तारे
प्रदेश के ताजे-ताजे पूर्व मंत्री बाबूलाल गौर के फोटो सफेद सफारी एवं टोपी पहने क्रिकेट की पिच पर अकसर देखे गए हैं। क्रिकेट के विश्व विख्यात बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने जब खेल से संन्यास लेने का निर्णय लिया, तब उनसे सवाल किया गया था आप तो इतना अच्छा अभी खेल रहे हैं फिर संन्यास क्यों? सुनील गावस्कर का जवाब था कि मैं अपने संन्यास के समय यही सवाल सुनना चाह रहा था, अभी क्यों? लिखने की आवश्यकता नहीं कि बल्लेबाजी करते हुए फोटो सेशन कराते समय जीवन का यह मूल मंत्र उन्होंने कभी ठीक से याद शायद नहीं किया होगा। किया होता तो उन्हें नानाजी देशमुख भी याद आते, जिन्होंने सक्रीय राजनीति से तब संन्यास लिया जब लोग उन्होंने 60 साल का ऊर्जावान युवा कह रहे थे और अपने जीवन के लगभग उत्तरार्ध के पड़ाव पर उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान जैसा प्रकल्प देश को दिया।
आज सुनील गावस्कर को न केवल खेल जगत अपितु सारा देश सम्मान के साथ याद करता है। ठीक इसी प्रकार नानाजी देशमुख आज समाज जीवन में एक प्रेरणा पुंज है। यह अवसर श्री बाबूलाल गौर के पास भी था और सरताज सिंह के पास भी। और उन सब वरिष्ठ नेताओं के पास भविष्य में भी है कि वे आने वाले कल के लिए, भविष्य के लिए स्वयं का स्थान रिक्त कर एक आदरणीय अतीत का स्थान ग्रहण करें। यह सच है कि श्री गौर भाजपा के वरिष्ठतम नेता है। लागातार एक ही विधानसभा से चुनाव जीतकर उन्होंने स्वयं की लोकप्रियता प्रमाणित की है। प्रशासनिक क्षमता के भी वे धनी है। आज स्वदेश को दी एक विशेष भेंट में उन्होंने स्वयं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्वयंसेवक बताते हुए प्रदेश में बेरोजगारी की हालत में इधर से उधर परेशान हो रहे कांग्रेसी दिग्गजों को भी एक संदेश दे दिया है कि वे दिन में सपने देखना बंद करें। बहरहाल, भाजपा के वरिष्ठ नेतृत्व ने उम्र के आधार पर दो वरिष्ठ मंत्रियों से इस्तीफे लेकर एक संदेश देने का प्रयास किया है। यह बहस का विषय हो सकता है कि अचानक क्यों? यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि फिर टिकिट ही क्यों दिया? पर आज जो राजनीतिक परिदृश्य है, आज जो परिवेश है और आज ही क्यों, यह दर्शन तो त्रेता युग में दशरथ ने भी दर्पण देखते हुए दिया था कि अब और नहीं। भारतीय जनता पार्टी तो यूं भी भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित एक राजनीतिक दल है। उम्र 75 हो या 80 या फिर 60, यह कोई सरकारी नौकरी नहीं है
यह बहस का विषय हो सकता है कि अचानक क्यों? यह भी सवाल खड़े हो रहे हैं कि फिर टिकिट ही क्यों दिया? पर आज जो राजनीतिक परिदृश्य है, आज जो परिवेश है और आज ही क्यों, यह दर्शन तो त्रेता युग में दशरथ ने भी दर्पण देखते हुए दिया था कि अब और नहीं। भारतीय जनता पार्टी तो यूं भी भारतीय जीवन मूल्यों पर आधारित एक राजनीतिक दल है। उम्र 75 हो या 80 या फिर 60, यह कोई सरकारी नौकरी नहीं है कि इस पैमाने पर राजनेता अपनी जन्मतिथि के प्रमाणीकरण के लिए अंकसूची दिखाने लगे। यह एक संदेश है कि नई पीढ़ी नई सोच के लिए वर्तमान स्वयं अतीत बने, कारण वह स्वयं भी कभी किसी के लिए अतीत का निमित्त बना ही था। हां यह अवश्य है कि पार्टी नेतृत्व जब एक नीति के आधार पर निर्णय ले तो वह निरपेक्ष न केवल हो बल्कि दिखाई भी दे। निगम मण्डलों में, संगठन में अपवाद स्वरूप ही सही ऐसी जो नियुक्तियां हुई हैं, विचारणीय है।
यद्यपि यह स्वागत योग्य है कि दोनों ही वरिष्ठ नेताओं ने नेतृत्व के आदेश का मान रखा है। पर अच्छा होता आदेश की प्रतीक्षा ही न करनी पड़ती। वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी को अपने परिश्रम से सींचा है और पार्टी ने भी इन वरिष्ठ नेताओं को यश सम्मान पर्याप्त दिया है, यही नहीं पार्टी ने कतिपय प्रसंगों में अप्रिय एवं अवांछित बयानों से स्वयं को असहज पाते हुए भी उनके प्रति पर्याप्त संयम भी दिखाया है। अत: आज यह निर्णय व्यक्तिगत लिहाज से उन्हें भले ही अप्रिय लग रहा हो पर भविष्य में कार्यकर्ता उन्हें एक प्रेरणा एवं आदर्श के रूप में स्मरण करें, अत: सूचना क्रांति के युग में उन्हें वाणी संयम पर अतिरिक्त सतर्कता रखने की आवश्यकता है कारण उनके हवाले से जो आ रहा है या दिखाया जा रहा है वह उनकी प्रतिष्ठा को बढ़ा नहीं रहा। अत: यह दौर गमों का नहीं है, यह दौर राष्ट्र निर्माण का है, गुनने का है और वे मुस्कुराते हुए नई पीढ़ी के पीठ पर हाथ रख कर उनका मार्गदर्शन करे और एक आदर्श प्रस्तुत करें, यही अपेक्षा पार्टी के बुजुर्ग नेता ऐसा करेंगे भी ऐसा विश्वास है।