उत्तराखण्ड सीमा पर चीनी घुसपैठ
उत्तराखण्ड सीमा पर चीनी घुसपैठ
भारत के दोनों पड़ोसी देश हमेशा से ही हमारे साथ विश्वासघात करते रहे हैं, फिर चाहें वह चीन हो या पाकिस्तान। जब भी हमने इनके साथ मधुर सम्बन्ध बनाने का प्रयास अथवा दोस्ताना व्यवहार किया तब-तब यहां की हुकूमतों ने हमारी पीठ में छुरा घोंपने की कोशिश की है। एक ओर जहां पाकिस्तान हमेशा से कश्मीर का राग अलापता रहा है तो चीन का प्रयास हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण करने का रहा है। हालांकि हर बार इन्हें भारत के सामने नतमस्मक होना पड़ा है लेकिन फिर भी यह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। इसी क्रम में अपनी मक्कारी का एक और उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस बार चीन ने उत्तराखण्ड सीमा में घुसपैठ के प्रयास शुरू कर दिए हैं।
उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के अनुसार पिछले कुछ दिनों में सीमा पर चीन की सक्रियता काफी बढ़ गई है। इसकी जानकारी राज्य सरकार की ओर से केन्द्र के साथ ही सेना को भी दे दी गई है। इतना ही नहीं इस दौरान चीनी और भारतीय सैनिक लगभग एक घंटे तक आमने-सामने होकर मोर्चा संभाले रहे। इसमें एक और चिंता की बात यह भी है कि हाल ही में लेह इलाके में चीन की ओर से आ रहे जासूसी वाले फोन कॉल्स में आईएसआई की मिलीभगत का भी खुलासा हुआ था। इस दौरान सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी जासूसों ने भारतीय सेना की गतिविधियों और उसकी सीमा पर पोजीशन की जानकारी प्राप्त करने के लिए स्थानीय ग्रामीणों को फोन कर स्वयं को भारतीय सेना का अधिकारी बताया था। चीन की इन हरकतों में उसके साथ आईएसआई भी पूरी तरह सक्रिय है। वहीं उत्तर-पूर्व से लगी सीमा पर भी चीन समय-समय पर घुसपैठ के प्रयास करता रहा है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड की लगभग 350 किलोमीटर की सीमा चीन से मिलती है। हालांकि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री द्वारा दी गई जानकारी के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने बुधवार को आईटीबीपी प्रमुख कृष्णा चौधरी को तलब किया। उधर बल के महानिदेशक ने केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू से मिलकर उन्हें सिलसिलेवार पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी।
गृह मंत्रालय के अनुसार चीन की यह हरकत गंभीर अतिक्रमण का मामला नहीं है। हालांकि इस दौरान चीनी हैलीकॉप्टर के सीमा पर उड़ान भरने के मामले को मंत्रालय ने गंभीरता से लिया है। भारत और चीन के बीच विवादित क्षेत्रों को लेकर 1957 में दोनों देशों ने 80 वर्ग किलोमीटर के इस क्षेत्र को विवादित असैन्य क्षेत्र मान लिया, 1958 में इस इलाके में सेना न भेजने पर सहमति बन गई। हालांकि इसके बाद से दोनों देशों के चरवाहे इस क्षेत्र का उपयोग करते हैं लेकिन इस बीच भी चीन द्वारा भारतीयों को वहां से वापस भेजने की शिकायतें आती रहीं हैं। कुल मिलाकर दोनों पड़ोसी देश चाहें वह चीन हो या पाकिस्तान इनसे भारत को सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि यह हमेशा से ही भारत के साथ दोस्ती की बात कर विश्वासघात करते रहे हैं। सीमा पर इन देशों द्वारा घुसपैठ और ऐसी बेजा हरकतें यह बताती हैं कि इनका विश्वास नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी तय है कि मौका पडऩे पर भारत इन्हें सबक सिखाना भी जानता है, लेकिन फिर भी सावधानी रखना इस समस्या से निपटने का सही हल है।