नहीं हैं मोर, फिर भी है मोर बाजार

नहीं हैं मोर, फिर भी है मोर बाजार

नहीं हैं मोर, फिर भी है मोर बाजार

अरुण शर्मा/ग्वालियर


आज हम आपको शहर के हृदयस्थल महाराज बाड़ा से सटे मोर बाजार का भ्रमण कराएंगे। यह बाजार लगभग अस्सी से सौ वर्ष पुराना है। कभी यहां मोर के पंख मिला करते थे ,इसी कारण इसका नाम मोर बाजार पड़ गया। समय के साथ बाजार का विस्तार हुआ और आज यहां मावा, कपड़ा, हलवाई एवं किराना आदि की दुकानें हैं।


महाराजबाड़ा से सटे मोर बाजार में कभी मोर के पंखो का व्यापार होता था। इसलिए इसका नाम उस समय मोर बाजार रखा गया था। हालांकि इस बाजार में ही स्थित एक गली का नाम अब भी मोरों केे नाम पर ही मोर गली है, लेकिन यहां मोर नहीं दिखाई देतीं। इस गली में जहां सोने-चांदी का कारोबार होता है तो मोर बाजार में मुख्य रूप से मावा की दुकानें हैं।

आकार में यह बाजार बहुत ही छोटा है। यहां मात्र 40 -50 दुकानें ही हैं। इसका इतिहास 80 से 100 वर्ष पुराना है। इस बाजार में स्थित मोर गली में कभी बहुत अधिक संख्या में मोर हुआ करती थीं। इन मोरों द्वारा छोड़े गए पंखों का इस बाजार में कारोबार किया जाता था। तभी से इस बाजार का नाम मोर बाजार पड़ गया। यहां लोग पहले पशुओं की सजावट एवं धार्मिक कार्यों के लिए मोर के पंख खरीदने आते थे। लेकिन अब यहां न तो मोर हैं ना ही उनके पंख,वर्तमान में इस गली में सोने-चांदी का कारोबार होता है।

प्रतिदिन होता है लगभग 50 लाख का कारोबार
मोर बाजार मुख्य रूप से महाराजबाड़ा,जनकगंज, दाना ओली, गांधी मार्केट, नया सराफा एवं चावड़ी बाजार आदि से जुड़ा हुआ है। यहां प्रतिदिन 40 से 50 लाख का कारोबार होता है। यहां वर्तमान में कपड़े, स्वर्ण आभूषण, हलवाई, आटा-मैंदा-सूजी, नमकीन, मेडिकल, हार्डवेयर एवं ड्रेस मटेरियल आदि की दुकानें हैं।
मुख्य समस्या है पार्किंग
मोर बाजार में मुख्य समस्या पार्किंग की है। यहां ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां वाहनों को पार्क किया जा सके। इसके चलते लोग कहीं भी वाहन खड़े कर देते हैं। त्योहार के समय यह समस्या काफी विकराल रूप ले लेती है।

यहां का मावा प्रसिद्ध था
कुछ वर्ष पहले तक मोर बाजार का मावा पूरे अंचल में बहुत प्रसिद्ध होता था। उस समय दीपावली, होली, जन्माष्टमी एवं रक्षाबंधन पर यहां मावा खरीदने के लिए लोगों की जबरदस्त भीड़ होती थी। लोगोंं को मावा लेने के लिए काफी देर तक इंतजार करना पड़ता था। दुकानदारों के पास ग्राहक से बात करने तक के लिए समय नहीं होता था, लेकिन अब यहां मावा कारोबार बहुत ही कम हो गया। व्यापारियों के अनुसार अब बहुत ही कम लोग यहां मावा खरीदने आते हैं।

यह समस्या भी हैं
* मोर बाजार में मात्र एक ही शौचालय है।
* वाहन पार्क करने के लिए महाराज बाड़ा तक जाना होता है।
* यहां पीने के पानी की सुचारू व्यवस्था नहीं है।
* हाथ ठेलों के कारण यातायात बाधित होता है।

इस बाजार में पहले मोर पंख ही बिकते थे। जिससे इसका नाम मोर बाजार हो गया। यहा बहुत छोटा बाजार है। यहां दुकानों की संख्या भी बहुत कम है।

उदय सिंघल
मावा कारोबारी

मोर बाजार में पार्किंग आदि की सुचारू व्यवस्था होनी चाहिए, जिससे यहां वाहनों को ठीक प्रकार से खड़ा किया जा सके। इस बाजार में मावा की बिक्री भी बहुत कम हो गई है

राकेश कन्नोजिया
मावा कारोबारी

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