जेल से बदले की भावना से नहीं, बदलकर जाना
जेल से बदले की भावना से नहीं, बदलकर जाना
ग्वालियर। कारागार अंग्रेजों के जमाने मे होता था। अब तो यह सुधारगृह है। यहां से जब निकलकर जाओ, तो बदले की भावना से नहीं बल्कि बदलकर जाना। यह बात रविवार को मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने केन्द्रीय सेन्ट्रल जेल में हजारों कैदियों को संबोधित करते हुए कही।
मुनिश्री ने कहा कि सारे अपराधों की जड़ शराब है। जेल में सत्य अहिंसा की लड़ाई के लिए कुछ लोगा गांधी जैसे बन जाते हैं। कुछ लोग पुलिस द्वारा पकड़ कर अपराध के कारण लाए जाते हैं। कुछ साधु-संत लोग अपराधियों को सुधारने के लिए बुलाए जाते हैं और पुलिस व जेलर साहब जैसे कुछ लोग जेल में रहते हैं। जेल एक है पर चारों प्रकार के लोगों की अनभूति अलग-अलग है। जेल में कैदियों को कुछ करना नहीं पड़ता है। यदि वे अपराध वृत्ति को त्याग कर भविष्य में अच्छे कार्य का संकल्प लेकर भगवान की भक्ति करते हैं, तो जेल से क्या संसार रूपी जेल से भी मुक्ति मिल जाएगी।
मुनिश्री ने कहा कि अपना जीवन तोते के सामान बनाओ। जब तोता अपना पिंजरा खुला देखकर उड़ जाता है और पुन: वापस नहीं आता है। उसी तरह आप सभी अपराध की दुनिया से निकल कर अपने माता-पिता की सेवा करो। जेल से छूटने के बाद बदले की भावना नहीं रखना, बल्कि अपने आप को बदलने की भावना रखना।
जैन मूर्ति के दर्शन किए
मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ससंघ ने केद्रीय जेल परिसर में रखी भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के दर्शन किए। मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ससंघ का परिचय पं शशिकांत शास्त्री ने दिया। जेल अधीक्षक नरेन्द्र प्रताप सिंह एवं जेलर योगेश शर्मा ने मुनिश्री के चरणों में श्रीफल भेंटकर आशीर्वाद लिया।