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साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को न्याय कब मिलेगा?

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को न्याय कब मिलेगा?

वि.के. डांगे

दि. 28.05.16 के समाचार पत्रों में समाचार प्रकाशित है कि दिलीप पाटीदार की गुमशुदगी/खो जाना के संबंध में विशेष अदालत ने महाराष्ट्र एटीएस के सहायक आयुक्त व एक निरीक्षक के नाम गिरफ्तारी आदेश दिए हंै। किसी बंदी का पुलिस हिरासत से गायब हो कर लापता होना मामूली बात नहीं है, यह अदालत ने माना है। आखिर इस प्रकरण में उपरोक्त आदेश से महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, यह तथ्य निर्विवाद है।

इसी तरह का दूसरा प्रकरण साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का है, उसे मालेगांव विस्फोट मामले में एनआईए ने निर्दोष माना है, परन्तु एटीएस महाराष्ट्र ने या महाराष्ट्र पुलिस ने उसके साथ शारीरिक व मानसिक रूप से दुव्र्यवहार कर जो अन्याय किया, उसका न्यायिक स्तर पर परिमार्जन होना चाहिए। दिलीप पाटीदार व प्रज्ञा ठाकुर के प्रकरणों में मुख्य अंतर यही है कि एक लापता है व दूसरा सारी यंत्रणाएं भुगत कर जीवित है व उपस्थित है। जिस थाने में प्रज्ञा ठाकुर को रखा गया, वहां उसको शारीरिक व मानसिक रूप से कई तरह से पीड़ा दी गई। जिसका स्वाभाविक परिणाम हम प्रज्ञा ठाकुर की वर्तमान शारीरिक व मानसिक स्थिति से देख रहे हैं। साध्वी ने इस दुव्यर्वहार के विरुद्ध एक शपथ पत्र न्यायालय में भी घटना के बाद प्रस्तुत किया, परन्तु उस शपथ पत्र पर न्यायालय ने कौन सी कार्रवाई की, यह अब तक ज्ञात नहीं है। इस शपथ में उस थाने के तेरह कर्मचारियों के विरुद्ध शिकायत की है। मानसिक यंत्रणा में साध्वी का चार बार नार्को टेस्ट किया गया। इतने बार टेस्ट करने की आवश्यकता क्या थी। यह टेस्ट की अनुमति देने वाले अधिकारियों, डाक्टरों ने क्यों नहीं पूछा यह महत्वपूर्ण है।

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के प्रकरण में इस बात की अनदेखी की गई कि यदि गिरफ्तार करने वाले के अधिकार होते हैं तो गिरफ्तार किए हुए व्यक्ति के भी कुछ अधिकार होते हैं। गिरफ्तार व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक हानि पहुंचाना भी अपराध ही है। यह प्रकरण इतना प्रसिद्ध हुआ कि भारतीय महिला आयोग की अध्यक्षा ने तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को इसकी रिपोर्ट दी, परन्तु इस विषय में आगे क्या कार्रवाई हुई यह अज्ञात है। कुल मिलाकर बात यह है कि जिन्होंने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को पीड़़ा दी, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस स्थिति को देख लगता है कि इस देश के हिन्दू संगठन, सब कुछ प्रज्ञा ठाकुर के भाग्य पर छोड़कर चुप बैठे हैं।

उन्हें चाहिए कि वह इस प्रकरण को न्यायालय/राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री जैसे बिन्दु तक प्रभावी ढंग से ले जाएं, ताकि साध्वी को न्याय मिल सके। यह न सोचें कि सारे विस्फोटो के प्रकरणों का निपटारा होने के बाद इसका भी निपटारा हो जाएगा, क्योंकि साध्वी का स्वास्थ्य खराब है व उनकी मृत्यु यदि होती है तो इस प्रकरण का महत्वपूर्ण गवाह याने साध्वी स्वयं प्रकरण से हट जाएगा। जो कि न्याय प्राप्त करना और कठिन कर देगा। अत: हिन्दू व अन्य मानवाधिकार संगठनों से आग्रह है कि वे इश संबंध में उचित कदम जल्दी से जल्दी उठाए।

Updated : 4 Jun 2016 12:00 AM GMT
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