आज की संपादकीय- मोदी के मंत्र

मोदी के मंत्र

इलाहाबाद में हो रही भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्यकर्ताओं व नेताओं को जो सीख दी है, उसे हर कार्यकर्ता व नेता को अमल करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कार्यकर्ताओं व नेताओं को नसीहत देते हुए कहा है कि भाजपा नेताओं को सेवाभाव, संतुलन, संयम, समन्वय, सकारात्मकता, संवेदना और संवाद को निरंतर बनाए रखना चाहिए। मोदी के इन सात मंत्रों को अमल करने से पार्टी की मजबूती तो बढ़ेगी ही, साथ ही जनता के बीच में पार्टी के प्रति जो छवि बनेगी, वह अन्य पार्टियों के लिए परेशानी का सबब बन जाएगी। प्रधानमंत्री ने जो मंत्र दिए हैं, वह वास्तव में पार्टी की रीढ़ है।

पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी अनुशासित पार्टी के रूप में जानी जाती है। लेकिन इस बीच कुछ लोग बेलगाम भी हुए, ऐसे लोगों के लिए ही मोदी ने इन सात मंत्रों को अमल में लाने की बात कही है। अब जब भाजपा राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर मजबूत होकर उभर रही है और उसके मुकाबले खड़ी कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है तब उसके लिए यह और आवश्यक हो जाता है कि वह अपने को देश के सभी क्षेत्रों और वर्गो की पसंदीदा पार्टी के रूप में उभारे। ऐसा किया जाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कई राज्यों में वोट प्रतिशत के लिहाज से वह अन्य अनेक दलों से कहीं पीछे नजर आती है। पार्टी के नीति-नियंता इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकते कि जिन राज्यों में आमने-सामने के मुकाबले की स्थिति बनती है वहां उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिलती। नि:संदेह सदस्य संख्या के हिसाब से भाजपा यह दावा करने की स्थिति में है कि वह सबसे बड़ा दल है, लेकिन उसे बड़े के साथ बेहतर भी बनना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार अपने काबीना मंत्रियों की समीक्षा बैठक में यह कहते रहे हैं कि मंत्रियों को अपने संसदीय क्षेत्रों में पहुंचकर जनता के बीच संवाद बनाए रखना चाहिए।

मैदानी दौरे करते रहने चाहिए। नरेंद्र मोदी इस तरह की नसीहत कई बार अपने मंत्रियों को समय समय पर देते रहते हैं, इसके पीछे उनका मकसद सिर्फ यही है कि मंत्री कहीं खामोश होकर न बैठ जाए। राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री ने पार्टी नेताओं से यह भी कहा कि सिर्फ नारों से जनमानस का मन नहीं जीता जा सकता। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसकी अनदेखी कोई भी नहीं कर सकता। कई बार जब नारों के अनुरूप धरातल पर काम होता नहीं दिखता तो फिर आकर्षक नारों का असर उल्टा ही होता है। करीब-करीब सभी राजनीतिक दल गुटबाजी की समस्या से जूझते रहते हैं। भाजपा भी इसकी अपवाद नहीं है। यह सही है कि कोई भी दल पूरी तौर पर न तो गुटबाजी से अछूता रह सकता है और न ही अपने नेताओं की अति महत्वाकांक्षा से, लेकिन इतना तो होना ही चाहिए कि आगे बढऩे की होड़ पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाली न हो। इस तरह की होड़ न केवल पार्टी की एकजुटता प्रभावित करती है, बल्कि आम जनता के बीच गलत संदेश भी देती है।

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