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'उड़ता पंजाब' पर विवाद

'उड़ता पंजाब' पर विवाद

पंजाब में मादक पदार्थो की समस्या को लेकर बनाई गई फिल्म 'उड़ता पंजाब' विवादों में घिर गई है। इसे लेकर बॉलीवुड और सेंसर बोर्ड आमने-सामने आ गए हैं। फिल्म से काटे गए 89 दृश्यों को लेकर फिल्म निर्माता बॉम्बे हाईकोर्ट चले गए हैं। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने निर्माता अनुराग कश्यप पर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने फिल्म में आम आदमी पार्टी का पैसा लगाया है। वहीं फिल्म को चर्चित कराने के लिए फिल्म निर्माता श्री कश्यप इस मामले को तूल दे रहे हैं।

उधर निहलानी पर पलटवार करते हुए अनुराग ने उन पर आरोप लगाया है कि सेंसर बोर्ड ने कथित रूप से फिल्म में 89 जगह काट-छांट करते हुए शीर्षक एवं फिल्म से पंजाब शब्द हटाया है यह निंदनीय है। ऐसा करते हुए एक व्यक्ति अपनी नैतिकता पूरी फिल्म इण्डस्ट्रीज पर थोप रहा है। उधर निहलानी का कहना है कि फिल्म 89 फीसदी पंजाबी में है। वहीं इसमें पंजाब के 70 प्रतिशत लोगों को ड्रग्स लेते हुए दिखाया गया है। इस प्रकार एक समुदाय विशेष की छवि को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया गया है। फिल्म के दृश्य काटने का फैसला पैनल के सभी सदस्यों द्वारा सामूहिक रूप से किया गया है। हमने नियमों के अनुसार ही फिल्म के दृश्य काटे हैं। बहरहाल इस मामले में उठा सेंसर बोर्ड की भूमिका का मुद्दा और भी अहम् है। अफसोसजनक है कि इसे लेकर देश मेें आज तक सहमति नहीं बन सकी है। वर्ष 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने इससे जुड़े प्रश्नों पर विचार करने के लिए जस्टिस मुकुल मुदगल समिति का गठन किया था। लेकिन उसकी सिफारिशें किसी काम नहीं आईं और धूल फांकती रहीं। वहीं पिछले वर्ष एनडीए सरकार ने श्याम बेनेगल समिति बनाई जो कि अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी है। इस बीच सूचना और प्रसारण मंत्री अरुण जेटली और राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह ने इस मामले को लेकर उत्साहजनक बयान दिए हैं।

उनके वक्तव्यों का सार यह था कि सेंसर बोर्ड को सर्टिफिकेशन बोर्ड की तरह काम करना चाहिए। अर्थात उसका काम फिल्मों में काटछांट करना नहीं बल्कि उनकी श्रेणी तय करने तक ही सीमित होना चाहिए। उसे सिर्फ यह तय करना चाहिए कि किस फिल्म को किस उम्र तक के लोग देख सकते हैं। बाकी सबकुछ दर्शकों के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। संभवत: बेनेगल समिति ने भी यही राय जताई है। यदि सेंसर बोर्ड इस सिद्धांत पर कार्य करता तो उड़ता पंजाब को लेकर कोई विवाद खड़ा नहीं होता। पंजाब में ड्रग्स की समस्या भयावह रूप ले चुकी है यह जगजाहिर है। क्या सामाजिक समस्याओं पर फिल्में नहीं बनानी चाहिए। ऐसी फिल्मों से किसी समाज, समुदाय या राज्य की बदनामी होती है यह तर्क बेतुका और बेवुनियाद है। ऐसी समस्याओं का स्थायी हल यही है कि बेनेगल समिति की रिपोर्ट पर शीघ्र ही अंतिम फैसला लेकर उसकी सिफारिशें लागू करते हुए उसे नया रूप दें।

Updated : 10 Jun 2016 12:00 AM GMT
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