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'पिता की प्र्रेरणा' ने सिखा दिया 'कत्थक नृत्य'

कत्थक नृत्यांगना डॉ. सुचित्रा हरमलकर से स्वदेश की बातचीत


अरविन्द माथुर/ग्वालियर। किसी भी क्षेत्र में पारंगत होने के लिए सच्ची लगन, परिश्रम और प्रयास तो आवश्यक हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि जिस विधा में व्यक्ति महारत हासिल करे, उसके लिए उसे ठीक वैसा ही परिवारिक माहौल भी मिला हो। कुछ ऐसा ही संयोग रहा कत्थक नृत्यांगना और प्रशिक्षक डॉ सुचित्रा हरमलकर के साथ। वे बनना चाहती थीं चिकित्सक लेकिन पिता की प्रेरणा ने उन्हें कत्थक नृत्य सिखा दिया।

रायगढ़ घराने की प्रतिष्ठित नृत्यांगना डॉ. सुचित्रा का सपना चिकित्सक बनकर मानव सेवा करना था, लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। इसके चलते उन्होंने मात्र 8 वर्ष की आयु में अपने पिता की इच्छा पर रीवा में नृत्य गुरु ए.टी.वाक्षी से नृत्य की शिक्षा ली। यहीं से उनके नृत्य संगीत का सफर शुरू हो गया और आज वे मप्र सहित देश के अन्य प्रदेशों में आयोजित होने वाले संगीत और नृत्य समारोहों में प्रस्तुतियां देने के साथ ही नृत्य निर्देशन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं। नगर निगम और संस्कार भारती द्वारा आयोजित नवसंवत्सर महोत्सव में प्रस्तुति देने आईं डॉ. हरमलकर ने स्वदेश से चर्चा में अपने इस यादगार सफर के अनुभव साझा करते हुए बताया कि अपने पिता से मिली प्रेरणा के कारण ही वे आज इस मुकाम पर हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि मप्र शासन द्वारा संचालित चक्रधर नृत्य कला केन्द्र में रायगढ़ घराने के पं. कार्तिक रामजी और पं. रामलाल जी से उन्होंने 15 वर्ष की आयु में गुरु-शिष्य परम्परा के तहत शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद अलाउद्दीन अकादमी भोपाल, दिल्ली कत्थक कला केन्द्र आदि से वे जुड़ गईं।
नृत्य, संगीत और कला महोत्सवों में दिखाई प्रतिभा

नृत्य के क्षेत्र में राष्ट्रीय प्रतिभा छात्रवृत्ति प्राप्त डॉ. सुचित्रा ने बताया कि उन्होंने देश-प्रदेश के विख्यात कला महोत्सवों जैसे शरतचन्द्र उत्सव, माण्डू उत्सव, खजुराहो उत्सव,भोज महोत्सव, गोपीकृष्ण स्मृति समारोह, मुम्बई, हैदराबाद, चण्डीगढ़, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, भारत भवन भोपाल में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में प्रस्तुतियां दी हैं। एक अन्य प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि अब तक वे पदमश्री फड़के स्मृति कला सम्मान, श्रंगार मणि मुम्बई आदि से सम्मानित हो चुकी हैं।

इसलिए चुना कत्थक
नृत्य शैली में उन्हों कत्थक को ही क्यों चुना? इस सवाल पर डॉ. सुचित्रा ने कहा कि यह नृत्य की एक आकर्षक शैली है। इसकी भाव भंगिमाएं स्पष्ट कर देती हैं कि कलाकार क्या कहना चाहता है। आधुनिक संगीत और शास्त्रीय संगीत में अंतर के सवाल पर उनका जवाब था कि इस नृत्य-संगीत की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें आज का संगीत हिला भी नहीं सकता।

नृत्य निर्देशन में भी निपुण
नृत्य संगीत में पीएचडी और मप्र संस्कृति परिषद की सदस्य होने के साथ ही शासकीय कन्या महाविद्यालय इन्दौर मं संगीत की विभागाध्यक्ष के रूप में काम कर रहीं श्रीमती हरमलकर इन्दौर में ही कार्तिक कला केन्द्र एकेडमी का संचालन भी करती हैं। उन्होंने बताया कि वे अब तक अपने निर्देशन में गीत रामायण के 100 से अधिक तथा देश की महान नारियों पर आधारित वैले नर्मदा नदी के 40 से अधिक शो विभिन्न स्थानों पर अपने ग्रुप के साथ कर चुकी हंै। इसके साथ ही भगवान कृष्ण की विभिन्न लीलाओं पर आधारित रचनाएं , कृष्णायन की भी अनेक सफल प्रस्तुतियां दें चुकी हैं।

Updated : 8 April 2016 12:00 AM GMT
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