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दिव्य-चेतना का बोध कराता है मां शैलपुत्री का स्वरूप

दिव्य-चेतना का बोध कराता है मां शैलपुत्री का स्वरूप
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दिव्य-चेतना का बोध कराता है मां शैलपुत्री का स्वरूप

नवरात्र का शुभारंभ मां शैलपुत्री की उपासना व ध्यान से किया जाता है। मां के प्रथम स्वरूप का ध्यान हमें दिव्य-चेतना का बोध कराता है। उनका श्वेत स्वरूप हमें पतित-कलुषित जीवन से मुक्ति प्रदान करते हुए पवित्र जीवन जीने की कला सिखाता है। मां का दैदीप्यमान मुखमंडल हमें सृजनात्मक कार्यो में प्रवृत्त कर शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक आलोक की ओर अग्रसर करता है।

मां के दाहिने हाथ में त्रिशूल हमारे त्रितापों (दैहिक, दैविक व भौतिक ताप) का नाश करके कठिन संघर्षो में भी आशा व विश्वास बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान करता है। बाएं हाथ में कमल का पुष्प हमें काम, क्रोध, मद, लोभ जैसे पंक रूपी दुर्गुणों से उबारकर उत्कृष्टतम जीवनशैली अपनाने का संदेश प्रदान करता है। मां वृषभ पर आरूढ़ हैं। वृषभ अर्थात धर्म। कर्तव्यों को पूरा करना ही हमारा धर्म है, मां हमें यह बोध कराती हैं।

मां शैलपुत्री गिरिराज हिमवान की पुत्री हैं। मान्यता है कि अपने पूर्वजन्म में ये दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। इनका विवाह भगवान शिव से हुआ। दक्ष ने एक यज्ञ के आयोजन में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया। इस अपमान से क्षुब्ध होकर सती ने योगाग्नि द्वारा उस रूप को भस्म कर दिया। वही सती अगले जन्म में हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्मीं। इन्हें पार्वती के नाम से भी जाना जाता है, जो शंकर जी की अद्र्धागिनी बनीं।
ध्यान मंत्र:-
वंदे वांछित लाभाम चंद्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥

Updated : 8 April 2016 12:00 AM GMT
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