उत्तराखंड राष्ट्रपति शासन: हाईकोर्ट ने कहा- हर फैसले की हो सकती है समीक्षा
उत्तराखंड राष्ट्रपति शासन: हाईकोर्ट ने कहा- हर फैसले की हो सकती है समीक्षा
नई दिल्ली | उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के मामले में मंगलवार को नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। केंद्र ने आज हाईकोर्ट में दलील दी कि राष्ट्रपति के आदेश में कोर्ट को दखल का अधिकार नहीं है। जिस पर हाईकोर्ट ने केंद्र की खिंचाई करते हुए कहा कि हर फैसले की समीक्षा हो सकती है। ऐसा कुछ भी नहीं है जो न्यायिक समीक्षा के दायरे में न हो। राष्ट्रपति के आदेश कोई 'राजाज्ञा' नहीं, राष्ट्रपति भी तलब हो सकते हैं।
हाईकोर्ट ने सवाल किया कि क्या आर्थिक भ्रष्टाचार प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का आधार बन सकता है? संयुक्त खंडपीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से ये सवाल पूछा। खंडपीठ ने कहा ऐसा होने लगा तो देश में बहुत कम सरकारें पांच साल तक चल पाएंगी। इस मामले में बुधवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।
गौर हो कि निवर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में केंद्र सरकार को भी पक्ष बनाया गया है। हरीश रावत कोर्ट के निर्देश पर अपना जवाब पहले ही दाखिल कर चुके हैं। दो जजो की बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई थी। केंद्र सरकार को भी इस मामले में जवाब देना है।
राज्य में राष्ट्रपति शासन और विनियोग विधेयक अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर मंगलवार को अटॉर्नी जनरल रोहतगी ने स्पीकर की कार्यशैली को दल विशेष को मदद करने वाला बताया। उन्होंने कहा कि स्पीकर की कार्यशैली और भ्रष्टाचार के चलते प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया है। इस पर पीठ ने टिप्पणी की कि आर्थिक भ्रष्टाचार के मामलों में 356 का उपयोग होने लगा तो देश में बहुत कम सरकारें ही पांच साल तक रह पाएंगी।
गौर हो कि हाईकोर्ट की दो जजो की बेंच ने उत्तराखंड विधानसभा में 31 मार्च को सिंगल बेंच का बहुमत साबित करने का आदेश स्थगित कर दिया था और छह अप्रैल को मामले की सुनवाई निश्चित की थी। राज्य के बजट पर मतदान के मामले 18 मार्च को कांग्रेस के 9 विधायकों ने विद्रोह कर दिया था। तब राज्यपाल ने हरीश रावत को 28 मार्च तक सदन में बहुमत साबित करने को कहा था लेकिन केंद्र ने 27 मार्च को ही बहुमत साबित करने से पहले राष्ट्रपति शासन लगा दिया जबकि स्पीकर ने इसके पहले ही कांग्रेस के बागियों की दलबदल कानून के तहत विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी। हालांकि ये मामला अभी कोर्ट में विचाराधीन है।