जंगलों में बढ़ा भोजन-पानी का संकट

जंगलों में बढ़ा भोजन-पानी का संकट

प्राकृतिक जल स्त्रोत सूखे, पलायन कर रहे वन्यजीव

ग्वालियर। इस बार समय से पहले ही शुरू हुई भीषण गर्मी के चलते जंगलों में वन्यजीवों के लिए भोजन-पानी का संकट खड़ा हो गया है। घास और वनस्पतियों के साथ प्राकृतिक जल स्त्रोत भी सूख जाने से जंगलों से वन्यजीवों का पलायन शुरू हो गया है। हालांकि वन विभाग जंगलों में पर्याप्त पानी की व्यवस्था करने का दावा कर रहा है, लेकिन जंगलों के आसपास बसे गांवों के ग्रामीणों की मानें तो भोजन व पानी की तलाश में वन्यजीव गांवों में पहुंच रहे हैं।

जानकारी के अनुसार ग्वालियर वन मंडल के अंतर्गत आने वाले जंगलों में हिरण, चीतल, सांभर, चिंकारा, जंगली सूअर, भालू, सियार, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, नीलगाय, खरगोश, नेवला, मोर, गिद्ध, लोमड़ी, बंदर सहित अन्य प्रजातियों के वन्यजीव काफी संख्या में हैं, जो प्राकृतिक जल स्त्रोतों पर निर्भर हैं, लेकिन इस बार भीषण गर्मी जल्दी आ जाने से जंगलों में मौजूद अधिकांश प्राकृतिक जल स्त्रोत अभी से सूख चुके हैं और दूर-दूर तक पानी उपलब्ध नहीं है। हालांकि चुनिंदा स्थानों पर वन विभाग ने छोटे-छोटे तालाब (सांसर) बनवाए हैं, जिनमें टैंकरों से पानी भरने की व्यवस्था की गई है, लेकिन इतने बड़े जंगल में पानी की यह व्यवस्था न के बराबर है।

वन विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार ग्वालियर वन क्षेत्र में किला पहाड़ी क्षेत्र में पांच और ओहदपुर क्षेत्र में आठ सांसर पूर्व से ही बने हुए हैं, जिनमें टैंकरों से पानी भरा जाता है, जो बमुश्किल से दो से तीन दिन ही चलता है। इसके अलावा छौंड़ा और बीलपुरा वन क्षेत्रों में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। इन दोनों वन क्षेत्रों में 10 सांसरों का निर्माण प्रस्तावित है, लेकिन गर्मी शुरू हो जाने के बाद भी अभी तक सांसरों का निर्माण नहीं हो पाया है। इसी प्रकार बेहट वन परिक्षेत्र में भी वन्यजीवों की कमी नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में भी पानी के स्त्रोत नहीं बचे हैं। हालांकि वन विभाग के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि बेहट वन परिक्षेत्र में आमखो, दूधखो, गोबरा, ककरोनिया, भदावना आदि स्थानों पर मौजूद नालों में प्राकृतिक झरना मौजूद हैं, जिनकी साफ-साफाई करा दी गई है, जिससे उक्त झरनों में पानी उपलब्ध है। इसके अलावा बेहट, रनगवां, मानपुरा में वाटर टैंक बने हुए हैं, जिनमें ग्रामीणों की मदद से नियमित रूप से पानी डलवाया जाता है।

सबसे ज्यादा बुरी हालत घाटीगांव उत्तर व घाटीगांव दक्षिण वन परिक्षेत्रों की है, जहां जंगलों में तो क्या गांवों में भी पानी का भारी संकट है। ठीक ऐसी ही स्थिति सोन चिरैया अभयारण्य के घाटीगांव गेमरेंज की भी है। ग्रामीणों के अनुसार इन क्षेत्रों से हिरण प्रजाति के वन्यजीवों के झुंड पानी की तलाश में तिघरा की ओर पलायान करते हुए आए दिन देखे जाते हैं क्योंकि तिघरा गैमरेंज में तिघरा जलाशय सहित अन्य प्राकृतिक जल स्त्रोत मौजूद हैं, जहां पर्याप्त पानी उपलब्ध है।


पानी के अभाव में कैसे बचेंगे मोर

पिछले वर्षो में मई व जून में भीषण गर्मी के दौरान पानी के अभाव में हर साल राष्ट्रीय पक्षी मोरों की सामूहिक मौत के मामले प्रकाश में आते रहे हैं। बावजूद इसके वन विभाग ने मोरों के लिए पानी की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की है। बताया गया है कि हर साल वन विभाग ग्राम पंचायतों की मदद से मोरों के हरवास वाले स्थानों पर भोजन-पानी की व्यवस्था कराता था, लेकिन इस बार ऐसे कोई प्रयास अभी तक नहीं किए गए हैं। ऐसे में मोरों का जीवन संकट में नजर आ रहा है।

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