माया ही ईश्वर के मार्ग में बाधाएं पैदा करती है: स्वामी बज्रानंद

शिवपुरी। बिनेगा आश्रम के संत बज्रानंद जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा सबका जीवन संस्कारों पर आधारित होता है और मन उस पर आधारित है, हमारा मन इंद्रियों को समेट कर ईश्वर चिंतन कराता है। सुख का निर्माता है। आत्मा और परमात्मा एक ही है पर दिखते नहीं है। शरीर के लिए भोजन से तृप्ति होती है तो परमात्मा के लिए चिंतन से ही तृप्ति होती है, आत्मा की खुराक हमारे पास है ईश्वर की खुराक महात्माओं के पास होती है।

ईश्वर प्राप्ति के बाद शास्त्र बने हैं उन्हें पढऩे से परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग हमें मिलता है। संसार में सब तरीके के गुरु मिले हमारी समस्या वहीं की वहीं रहीं। विधाता ने जो आपके भाग में लिखा है वह तो भोगना ही पड़ेगा और अपने कर्तव्यों का पालन भी करना पड़ेगा। सुख-दु:ख तो सभी के साथ होते हैं ईश्वर को छोड़कर ऐसा कुछ नहीं है जिसमें सुख शांति मिल सके। सबमें महान परमात्मा जिसे सदैैव याद करते रहना चाहिए। आत्मा की तृप्ति परमात्मा से ही होती है।
बज्रानंद महाराज कहते हैं जब तक हमारे अंदर सतत्व नहीं आएगा तब तक ज्ञान की धारा नहीं बहेगी।

मन के अंदर के कीटाणु तब सुख ही शेष बचेगा। अच्छे विचारों से हम अच्छी जिंदगी जी सकते हैं अच्छे मार्ग में चलने वाले हमेशा सबका भला सोचते हैं। रात दिन सुख के लिए साधन जुटाते हैं वह भी दु:ख का कारण हैं। संस्कारों का निर्माता तो मन होता है। किसी के अवगुणों का न देखकर अपने लक्ष्य की ओर देखना चाहिए। दु:ख और सुख पाप और मोक्ष है। माया ईश्वर के मार्ग में अनेक बाधाएं पैदा करती है। स्वभाव हमेशा एक-सा नहीं होता। समय के चलते स्वभाव में परिवर्तन लाना चाहिए हम यदि ईश्वर के प्रति श्रद्धाभाव रखेंगे। ईश्वर को तो हमने नहीं देखा किन्तु हमारे गुरु को तो देखा हैं। ईश्वर यदि हमारा मार्गदर्शन करने लगे तो समझो हम पर गुरु की कृपा होने लगी हैं। साधक की क्षमता अनुसार ईश्वर हमें फल देता हैं। जिन इच्छाओं की हम आशा करते हैं जीते हैं उन्हें लेकर वह भी तो नष्ट होती है। सुख देवताओं को दुर्लभ हैं वह भी हमें मिलता और नष्ट हो जाता है। प्रभु के मार्ग में चलने वाला बीच कभी नष्ट नहीं होता राजा महाराज भी ईश्वर की प्राप्ति के लिए वनों में गए थे।

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