भारत माता सबकी मां हैं...
कवि गोष्ठी में कवियों ने पढ़ी रचनायें
मऊरानीपुर। अनामिका साहित्य संस्था की कवि गोष्ठी श्याम क्लीनिक के कक्ष में हुयी। अध्यक्षता वीरेंद्र शर्मा ने की। जिसकी शुरूआत अवधबिहारी सूरौठिया की रचना रेशम की कोपीनों को फिर अपनाउंगा, जग रीति बनाउंगा से हुयी। महेंद्र तिवारी ने कहा भारत माता सबकी मां है, और पिता जैसा हिमाला है। फिर क्यों राजनीति के चक्कर में तू इतना मतवाला है। संदीप गुप्त ने शेर पढा, इस कदर मत सता जिंदगी, हो गयी क्या खता जिंदगी। ढूंढता फिर रहा हंू, तुझे अपना दे दे पता जिंदगी। मु0 एहसान ने पढ़ा सियासत के आगे निकलना पढेगा, बहुत हो चुका अब बदलना पडेगा। हास्य कवि ह्दयनाथ चतुर्वेदी ने कुछ इस तरह होली खेली- जिसे सनक सवार हुयी, हो गोली की, वो क्या समझेगा रंगरेली होली की, क्या बात कहें हम होली की क रामात भंग की होली की, हमें न याद रही फटे पजामे की , उन्हें खिसकती चोली की। व्यंकार हरीमोहन सरावगी ने रचना पढी- रंग भी बसंती हैं, भंग भी बसंती हैं, अंग-अंग भी बसंती हैं, नंग-नंग भये, अंग-ढंग से ढके रहे, अनंग तंग करवे कौ ढंग भी बसंती है। डा0 एसबीएल पाण्डेय ने गीत सुनाया- मन बहुत है उदास कोई क्या करें, तुम नहीं हो पास, कोई क्या करें, जिसको पतझर ही सदा प्रियवर लगे, फिर भला मधुमास बोलो क्या करे। शायर प्रो0 सतीशकुमार ने शेर पढा- खुशनुमा माहौल होगा, ईद ओ होली का यहां, अपने-अपने दायरे से आके बाहर देखिये। ओम बबेले ने सुनाया- प्रियवर इस बेरंग समय में कैसें खेलें होली, बाहर सूखा, भीतर सूखा, सूखी मुंह में बोली। गोष्ठी में घनश्यामदास विश्वारी, डा0 केएमएल चउदा, जयप्रकाश गंगेले, भगवानदास सेठ, नारायणदास साहू, कैलाश नारायण दीक्षित, गौतम गुप्ता आदि मौजूद रहे।