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देहात की परंपराओं में छुपा है भारत का इतिहास

राष्ट्रीय युवा इतिहासकार संगोष्ठी का शुभारंभ

ग्वालियर। किसी भी क्षेत्र से जुड़े इतिहासकार भारत को पहले जानें, फिर मानें, इसके बाद भारत के बनें फिर भारत को बनाएं। अर्थात पश्चिमी दृष्टिकोण से व्याख्या कर एवं आधे-अधूरे मन से भारत का इतिहास नहीं लिखा जा सकता। भारत के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखकर ही इतिहास संकलन का कार्य करें। इतिहास लेखन से पूर्व देहात का इतिहास जानें। गांव-देहात के संगीत, कला, लोककला, समाज, जाति, पर्व, परंपराओं के इतिहास के महत्व को समझा जाए, इसके बाद ही भारत के वास्तविक इतिहास का लेखन संभव है।

यह बात अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य मधुभाई कुलकर्णी ने जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संयुक्त तत्वावधान में जीवाजी विश्वविद्यालय के गालव सभागार में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय युवा इतिहासकार संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कही। भारत के इतिहास से जुड़ी मेघालय और हॉफलांग की जनजातियों की परंपराओं के उदाहरण और खजुराहो की शिल्पकला की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि खजुराहो की अनैतिक दिखने वाली चित्रकला में तत्कालीन भारतीय शासकों की विलासिता नहीं बल्कि वास्तविक जीवनदृष्टि छुपी हुई है। चित्रों के माध्यम से मन के घोड़े को नियंत्रित करने की विधि दर्शायी गई है। बताया गया है कि अगर मन पर संयम रखकर इसे आध्यात्म में लगाओगे तो यह भटकेगा नहीं, तभी मंदिर के अंदर बैठा भगवान मिलेगा।

अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य हरिभाऊ वझे ने अपने उद्बोधन में कहा कि युवा ऐतिहासिक घटनाओं को लिखने के लिए अपने रक्त की स्याही देनी होगी। राष्ट्र के पुनर्निर्माण कार्य से जुड़ें। संकल्प करें कि भारत की सही पहचान दुनिया को दिखाएंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास लेखन की योजना स्पष्ट है। हमारा हिन्दू जीवन दर्शन है। उसके प्रकाश में हम इतिहास लेखन करें। हम पूर्वजों के इतिहास का अध्ययन करें। उन्होंने बताया कि इतिहासकारों ने तय किया है कि पहले आठ हजार सालों का इतिहास लिखेंगे। जीवाजी विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता शुक्ला ने कहा कि इस दो दिवसीय संगोष्ठी में युवा भारत के वास्तविक इतिहास पर विचार और मंथन कर इतिहास लेखन करेंगे। इससे नई पीढ़ी को पाठ्यक्रमों में भारत का वास्तविक इतिहास जानने को मिलेगा। कार्यक्रम में अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए प्रख्यात इतिहासकार सतीश चन्द्र मित्तल ने कहा कि भारत में ईस्टइंडिया कंपनी ने ईसाईयत तो माक्र्सवादी चिंतन की धारा ने ेअपने विचारों को थोपने का प्रयास किया।

माक्र्स ने हमेशा नकारात्मक इतिहास का स्वरूप हमारे सामने रखा। आज इतिहास ठीक ढंग से लिखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संगोष्ठी में भारतीय इतिहास पर गंभीरता से चिंतन करें। प्रश्न मन में उठें तो पूछें, यहां से प्रश्नों का समाधान लेकर ही लौटें। अंत में जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय सचिव प्रो. आनंद मिश्र ने कार्यकर्ता परिचय कराया। कार्यक्रम का आरंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती और भगवान गणेश की प्रतिमाओं पर दीप प्रज्वलन से हुआ। सरस्वती वंदना एवं गणेश वंदना छात्रा प्रियांशी चतुर्वेदी ने प्रस्तुत की। संकल्प वाचन डॉ. गिरिश भाई ठाकर ने किया। अतिथि परिचय डॉ. आनंद मिश्र ने कराया। मंच संचालन डॉ. ओम जी उपाध्याय ने किया। आभार अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के संगठन मंत्री बालमुकुंद पाण्डे ने किया। उद्घाटन सत्र का समापन वंदेमातरम् गायन के साथ किया गया।

Updated : 20 March 2016 12:00 AM GMT
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