दरकता राष्ट्रद्रोहियों का कुचक्र
भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में देश का सुनहरा भविष्य गढ़ सकने वाले होनहार छात्रों को सुनहरे राजनीतिक भविष्य का झूठा सपना दिखा एवं मोहजाल में फंसाकर राष्ट्रद्रोही कम्युनिस्ट और पाकिस्तानी सपोले इन छात्रों को देशद्रोही बना रहे हैं। भारत में जातिवाद और भेदभाव को बढ़ावा देने वाला कपोलकल्पित परिदृष्य छात्रों के मन में तैयार कर हिन्दुओं के बीच फूट डालकर आपस में लड़ाने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। आज पूरा विश्व मानता है कि भारत विश्व की सबसे तेजी से विकासपथ पर बढ़ती शक्ति है और भारत ही विश्व का नेतृत्व करने वाला है। इसका कारण भारत की वह तेजस्वी युवा तरुणायी है, जिसने कड़े परिश्रम, तीक्ष्ण बुद्धि और लगन से शिक्षा ग्रहण कर खुद के साथ-साथ भारत का भविष्य भी गढऩे का संकल्प मन में लेकर इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश लिया है। राष्ट्रद्रोही ताकतें अब तक छद्म युद्धों के माध्यम से एवं प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अब तक की सरकारों पर दबाव बनाकर अपने हित की नीतियां और योजनाएं बनवाकर करवाकर लाभ लेती रहीं और राष्ट्र के विरुद्ध षड्यंत्र रचती रहीं, देश को कमजोर करती रहीं। आजादी के बाद से ही हिन्दुस्तान की जड़ों में मट्ठा डालने का काम इन शक्तियों ने किया। जो काम अंग्रेज नहीं कर सके, वह इन राष्ट्रद्रोही शक्तियों ने कर दिखाया। कांग्रेस की सरकारों पर दबाव बनाकर इन्होंने राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर के शिक्षा मण्डलों और विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों से ऐसे विषयों और विषय वस्तु को विलोपित करा दिया, जिससे वास्तविक बौद्धिक, सामाजिक और नीतिगत आर्थिक विकास की शिक्षा मिल पाती तथा स्व विवेक से अपना जीवन पथ निर्धारित करने वाले राष्ट्रभक्त नागरिक तैयार होते। हिन्दुस्तान का इतिहास उठाकर देखें तो ऐसे महापुरुषों और शोधकर्ताओं से भरा पड़ा है, जिनके मार्ग का अनुशरण करके आज भारत विश्व में अपनी शिक्षा प्रणाली और श्रेष्ठता का लोहा मनवा सकता था। इसके विपरीत पाठ्यक्रमों में भारत को छोड़ अन्य विभिन्न देशों के कई ऐसे वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को महानतम् और प्रेरणास्रोत के रूप में बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया गया जो भारतीय शोधों को ही अपनी भाषा में और नई साज-सज्जा के साथ प्रस्तुत करते रहे। हिन्दुस्तान के गौरवशाली इतिहास और राष्ट्रभक्तों को पूरी तरह पाठ्यक्रमों से विलोपित कर दिया गया। कुछ महापुरुषों को पाठ्यक्रम में स्थान मिला भी तो उनके महानता की जय-जयकार तो लेखनीबद्ध की गई लेकिन उनकी महानता के उस सूत्र को विलोपित कर दिया गया, जिससे छात्र प्रेरणा लेकर उस महान व्यक्तित्व के रास्ते पर आगे चलने का प्रयास करते। हिन्दुस्तान में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद जब द्रेशद्रोहियों के कुचक्र को तोडऩे की शुरूआत हुई तो इनमें हड़कंप मच गया। पहले सांप्रदायिक अराजकता का माहौल बनाकर सरकार को बदनाम करने की कोशिश की गई। इस माहौल को तैयार करने में उन कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो पिछली सरकारों का दोहन कर देश की जनता की पसीने की कमाई खैरात में लूटते और अपनी दुकानें चलाते रहे। मोदी की सरकार बनते ही इनकी दुकानों पर ताले लगा दिए गए। देश की जनता ने अराजकता की बात को अस्वीकार कर इस कुचक्र को असफल कर दिया। इसके बाद कम्युनिष्ट नीचता की हदों तक उतर गए और हिन्दुओं को ही जातिवाद के नाम पर आपस में लड़ाने का षड्यंत्र रच डाला। इसकी शुरुआत हैदराबाद विश्वविद्यालय से की गई। कम्युनिस्टों के बहकावे पर राष्ट्रद्रोहियों का साथ देने पर होनहार छात्र रोहित को आत्मग्लानि हुई और उसने आत्महत्या कर ली। इससे भी इनका पेट नहीं भरा तो दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में कन्हैया नामक छात्र के कंधे पर रख कर बंदूक चलाई गई। वास्तविकता यही है कि जेएनयू की लड़ाई कन्हैया बनाम अभाविप, सवर्ण बनाम अजा/अजजा वर्ण नहीं बल्कि देशद्रोही कम्युनिस्ट बनाम राष्ट्रभक्तों की है। कांग्रेसी सरकारों में कम्युनिस्टों ने विश्वविद्यालयों पर कब्जाकर जिस राष्ट्रद्रोही खरपतवार का बीजारोपण किया है, राष्ट्रप्रेमी जनता अब उसे पीकने नहीं देगी। जातियों के आधार पर देश को तोडऩे के षड्यंत्र का भी भंडाफोड़ हो चुका है। शिक्षा के मंदिरों से राष्ट्रद्रोहियों के सफाए और राष्ट्रभक्त तैयार करने के लिए मोदी सरकार संकल्पित है। देश की जनता के सुझाव पर हर स्तर के पाठ्यक्रमों में बड़ा परिवर्तन दिखाई पडऩे वाला है। जो देश के नागरिक को उज्जवल भविष्य भी देगा और राष्ट्रभक्त भी पैदा करेगा। इसके बाद विश्वविद्यालयों से राष्ट्रद्रोही नहीं बल्कि राष्ट्रभक्त कन्हैया निकलेंगे।