चांदनी रात में सजी सुरों की महफिल
अंतर्राष्ट्रीय तीन दिवसीय धु्रपद समारोह का समापन
ग्वालियर। शास्त्रीय संगीत के भिन्न-भिन्न राग का स्वर्ण कर्णपटल पर उतरते ही श्रोताओं का मन मस्तिष्क सागर की अनंत गहरायों को छू गया। ब्रह्मनाद के साधकों ने सुरों की ऐसी बयार चलाई कि ठंडी हवा में गर्माहट दौड़ गई। ख्यातिनाम कलाकारों के गायन-वादन से निकली राग-रागनियों को सुनकर रसिक श्रोता झूम उठे। दूधिया रोशनी से नहाएं ग्वालियर दुर्ग के सहस्त्रबाहु मंदिर परिसर में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय तीन दिवसीय धु्रपद समारोह के अंतिम दिन उत्तरी फिजा से बहकर आने वाली सर्द हवाओं के बीच कलाकारों ने ऐसी प्रस्तुति दी कि फिजा में गर्माहट घुल गई।
अवसर था ग्वालियर दुर्ग के सहस्त्रबाहु सास-बहू मंदिर में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र नागपुर द्वारा मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग, धु्रपद संस्थान, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एवं जिला प्रशासन के सहयोग से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय धु्रपद समारोह का। इसमें बनारस से आए देश के ख्यातिनाम शास्त्रीय संगीत गायक डॉ. राजेश सेंध और औरंगाबाद से आए अफजल हुसैन ने राग मुलतानी में आलाप जोड़ झाला प्रस्तुत किया। ताल चौताल में निबद्ध धु्रपद रचना बंसी धर पिनाक घर गिरधर गंगाधर प्रस्तुत की, तो संगीत रसिक भाव विभोर हो गए। उनके साथ रमेशचन्द्र जोशी ने पखावज पर संगत की। इस अवसर पर साडा अध्यक्ष राकेश जादौन, दक्षिण-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र नागपुर के निदेशक डॉ पीयूष कुमार मुख्य रूप से उपस्थित थे।
साध रे सुरन को...
इसके बाद पं. उदय भवालकर ने जैसे ही राग भूप में अलाप और संगीतमय राग छेड़ा तो श्रोता वाह-वाह कर उठो। उन्होंने करीब आधे घण्टे की अपनी प्रस्तुति से श्रोताओं का मन मोह लिया। उन्होंने शूल ताल में साध रे सुरन को प्रस्तुत किया। उनके साथ पं अखिलेश गुंदेचा ने पखावज पर संगत की।
सुरबहार वादन प्रस्तुत किया
सुर-बहार वादक पुष्पराज कोष्ठी ने राग जोग में आलाप प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने कुछ-कुछ सितार से मिलते इस वाद्ययंत्र पर शास्त्रीय राग बजाए। उन्होंने इसके गत प्रस्तुत की। उनके साथ पं. उद्धवराव शिन्दे आपेगांवकर ने पखावज पर संगत की।
रंग झम बनाएं बसंत के...
समारोह में पं. प्रेमकुमार मलिक ने गायन का ऐसा समां बांधा कि श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठे। उन्होंने आलाप और धमार में होरी की रचना प्रस्तुत की, जिसके बोल थे बृज में देखो धूम मची है...। उन्होंने शूल ताल में वसंत की रचना भी प्रस्तुत की, जिसके बोल थे रंग झम बनाएं बसंत के...।
रंग में आयो तब...
उस्ताद सईदुद्दीन डागर ने राग अद्भुत कल्याण में आलाप लिया। इसके बाद चौताल में बंदिश जब करता रंग में आयो तब ओम नाद प्रकट... प्रस्तुत किया तो घरानेदार गायकी जीवंत हो उठी। उनके साथ पं. अखिलेश गुंदेचा ने पखावज पर संगत की।