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कमलनाथ और सिंधिया में आगे कौन?

भोपाल। प्रदेश के शहडोल और नेपानगर उपचुनाव में चारों खाने चित होने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ पता नहीं अब आगे क्या गुल खिला रहे हैं? बताया जाता है कि उनके नजदीकी सज्जन सिंह वर्मा ने कमलनाथ समर्थकों के साथ एक गुप्त बैठक कर मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव को बदलने की जरूरत बताई है। हालांकि श्री यादव के विकल्प को लेकर फिलहाल कांग्रेसियों के पास माकूल जवाब नहीं है। ले-देकर प्रदेश में कांग्रेस के पास चार-पांच ही नेता हैं जिन पर विचार किया जा सकता है। जिनमें कांतिलाल भूरिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी पर पहले ही दांव लगाया जा चुका है। हाल के दिनों में लगता नहीं कि पार्टी इन दोनों नेताओं पर फिर से विचार करे। कांग्रेस का बंटाधार करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने खुद ही चुनाव लडऩे से अलग कर रखा है।

ऐसे में कमलनाथ और लोकसभा में कांग्रेस के सचेतक ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ही बात आकर रुक जाती है। तब कमलनाथ और सिंधिया में कौन बेहतर विकल्प हो सकता है? यह लाख टके का सवाल है। इसका उत्तर दो तरह से हो सकता है। एक, जिस तरह अलग-अलग मंचों से सिंधिया बोल रहे है और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी से उनकी बढ़ रही नजदीकियों से अनुमान लगाना कठिन नहीं कि सिंधिया प्रदेश कांग्रेस के अगले चेहरा बनें। देर-सबेर यह फैसला तो होना ही है भले ही फिर पंजाब और उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के बाद हो। इसके इतर, ऐसे कई नेता हैं जो इस पद को पाने की कतार में खुद को आगे किए हुए है । इंदौर से शोभा ओझा, दिल्ली में बेहद सक्रियता बढ़ाए हुए हैं । वे कई मंचों से महत्वाकांक्षा भी जाहिर करती रही है। फिर चाहे वे जनाधार वाली नेत्री नहीं हो। काबिलियत में सत्यव्रत चतुर्वेदी इस कतार के अगले नेता माने जा रहे है पर उनके साथ भी यही दिक्कत है कि वे सब को साथ लेकर नहीं चल सकते।

दूसरे, अगर कमलनाथ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का कोई काट निकालें, तो उनका पलड़ा भारी हो सकता है। शहडोल उपचुनाव में वे बाजी मार सकते थे। उनके पास निश्चित तौर पर जिताऊ उम्मीदार थी लेकिन वे न तो मौके को भुना सके और न ही दूसरी कतार के नेताओं के साथ एकजुटता दिखा पाए। सिंधिया जरूर सक्रिय नजर आए पर प्रचार के अंतिम दिनों तक संदेश कुछ इस तरह गया। कांग्रेस में अपनी-अपनी ढ़पली, अपना-अपना राग। कमलनाथ जमीन से जुड़े नेता जरूर माने जाते है पर, उनकी पंच सितारा तहजीब भी छिपी नहीं है। वे प्रचार के दिनों में लजीज खाना, पंच सितारा होटल के रंग-ढंग दिखाते रहे। अन्य शौक भी लोगों की नजर में खटकते रहे। इके विपरीत मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जमीन पर चलने वाले एक आम कार्यकर्ता की तरह काम करने वाले नेता है। वेे जब चाहें जरूरत के हिसाब से खुद को समायोजित कर लेते हैं। यही खूबी उनकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है।

एक समय लगने भी लगा था कि शहडोल उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह काफी आगे निकल चुकी है तब जाकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने चुनाव की कमान अपने हाथ में ली। उनका अथक परिश्रम बताता है कि वह अंदर से कितने मजबूत और दृढ़इच्छा शक्ति वाले व्यक्ति होंगे कि विपरीत परिस्थितियों में भी लोहा मनवाने का मादा रखते हैं। श्री चौहान गांवों की धूल फांकने के आदी है। उन्होंने धड़ाधड़ जनसभाएं रोड शो किए, क्या कोई कांग्रेसी इतनी मेहनत कर सकता है? जाब खुद ही मिल जाएगा।

चलिए, बीती बात बिसार कर आगे की सुध लेते है। वो यह कि शहडोल और नेपानगर के बाद भिंड जिले की अटेर सीट से विधायक सत्यदेव कटारे के निधन से खाली हुई सीट और ज्ञान सिंह के इस्तीफा देने के बाद बांधवगढ़ विधानसभा सीट के लिए होने वाले उपचुनाव में एक और मौका कांग्रेस के पास है। संभवत: यह मौका मार्च के अंतिम या अप्रैल के पहले सप्ताह में आए। तब फिर दो-दो हाथ करने का मौका होगा तब देखना होगा कि कमलनाथ फिर कैसा दम दिखाते है?या ऐेसे ही ढ़ाके के तीन पात वाला मामला रहने वाला है।

Updated : 2 Dec 2016 12:00 AM GMT
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