भाजपा की ओर भगदड़: कारण और परिणाम
उत्तर प्रदेश के विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रमुख और साधारण कार्यकर्ताओं की भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने की होड़ से यह आभास अब स्पष्ट होने लगा है कि मतदाताओं की रूझान क्या है। केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से जिस प्रकार भ्रष्टाचार के समाचारों पर विराम लगा है और जनसाधारण के लिए योजनाओं की शुरूआत हुई है। उससे एक बात अवाम में पैठ कर गई है कि यदि सुशासन चाहिए तो भारतीय जनता पार्टी को राज्यों की भी सत्ता सौंपनी चाहिए। क्षेत्रीय दलों के शासनकाल में राज्यों में कुशासन से जैसी अराजकता फैली है, और केंद्र में लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी जिस प्रकार से भ्रष्टाचार का पर्याय बन गई है। उससे आम आदमी के लिए सुविधा शुल्क या पहुंच और पहचान के बिना शासकीय अनुकूलता ही नहीं अपितु अपराधियों के चंगुल से मुक्ति पाना असंभव हो गया है। बाहुबलियों का सहारा और सत्ता से सम्पन्नता की होड़ के साथ समाज को जातीय, उपजातीय और सम्प्रदाय को मुद्दा बनाकर जो विघटन किया जा रहा है, उसने कुशासन की पराकाष्ठा कर दिया है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले पंद्रह वर्षों से ऐसे तत्वों का शासन है जो सत्ता को शासकों की सम्पन्नता और माध्यम बनाकर लुभावनी घोषणाओं की छतरी से ढककर लूट मचाए हुए हैं। उसके सामने ऐसे ही तत्वों का विकल्प चुनने की असहायता का अंत लोकसभा चुनाव के बाद हुआ। भाजपा एक ऐसे विकल्प के रूप में सामने आई जिसने अवाम में यह विश्वास पैदा किया है कि कुशासन से मुक्ति मिल सकती है। एक लंबे अर्से से राजनीतिक सेवा भावना और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता आचरणीय शुचिता से दूर होती गई ओर उसमें लिप्त लोगों के लिए ‘लोकलाज’ जैसी शब्दावली का कोई महत्व नहीं रह गया है। इसलिए कानून की निरंतर बढ़ती कठोरता के बावजूद दल बदल का नया नया रिकार्ड बन रहा है। जब तक यह कानून नहीं था दलीय निष्ठा और सैद्धांतिक प्रतिबद्धता का प्रभाव लोकलाज से राजनीति करने वालों को प्रभावित करता रहा है, लेकिन ज्यों-ज्यों कानूनी कठोरता बढ़ती गई, नैतिकता का ह्रास होता गया तथा राजनीति करने वालों ने दलबदल करने में निहायत बेशर्मी अख्तियार कर ली है।
राजनीतिक शुचिता के लिए विचारों की अभिव्यक्ति की कमी नहीं है लेकिन आचरण में उसका कोई प्रभाव नहीं होने का कारण बनी कांग्रेस के भीतर निजी महत्वाकांक्षा के लिए नेतृत्व द्वारा लिया जाने वाला निर्णय। चीनी हमले से जनसाधारण ही नहीं अपितु सहयोगियों की निगाह में उतर गए। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुत्री के लिए रास्ता सुगम करने हेतु जिस कामराज योजना को अंजाम देकर समर्पित कांग्रेसियों को ठिकाने लगाया तथा इंदिरा गांधी के सत्ता में बने रहने के लिए कांग्रेस का विभाजन कराया उसने व्यक्तिपरक राजनीतिक चलन के लिए मार्ग प्रशस्त किया। कांग्रेस में व्यक्तिपरक चलन और पारिवारिक उत्तराधिकार के कारण ही क्षेत्रीय दलों का व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से जन्म हुआ। आज देश के कुछ राज्य हंै जहां इस महत्वाकांक्षा के अनुरूप राजनीतिक संगठन न खड़ा हो। बहुत से राज्यों में ऐसे ही दलों की सत्ता है जो स्वेच्छाचारिता के कारण आम आदमी के लिए मुसीबत का कारण बनी हुई है जिसमें निहित स्वार्थी तत्वों को पनपने का अवसर मिल रहा है। उत्तर प्रदेश इस मानसिकता का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। यहां पिछले अनेक वर्षों से जिन दो पक्षों का वर्चस्व बना हुआ है उनके मुखियाओं की सम्पन्नता इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि सत्ता से सम्पनता के फलस्वरूप किस प्रकार की लूट मची है। इस लूट से उत्पन्न अंतरकलह जहां क्षेत्रीय दलों को और विघटित होने के रूप में प्रगट होता है वहीं बाप-बेटे तक में संघर्ष करा बैठा है। देश के प्रमुख दलों में कांग्रेस के कितने टुकड़े हो चुके हैं, इसका हिसाब लगाना कठिन अवश्य है लेकिन यह अनुमान लगाना अब सम्भव है कि देश की यह सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी किस तीव्रता से विसर्जन की दिशा में बढ़ रही है। सैद्धांतिक प्रतिबद्धता के लिए अभी भी मान्यता प्राप्त साम्यवादी पार्टी भी अनेक टुकड़ों में बंट गई है। लेकिन प्रभावहीन होते जाने के कारण उनकी मंचीय एकता दिखाई पड़ जाती है। समाजवादी पार्टी व्यक्तिगत अहं की त्रुटि के लिए पहले आम चुनाव के बाद ही विभाजित हो गई। उसके कितने विभाजन हुए और किस-किस नाम से उसका पुनर्जन्म हुआ इसकी गणना करने में काफी मशक्कत करना पड़ेगी। उसका विघटन का क्रम अभी जारी है। डाक्टर भीमराव अम्बेडकर ने दलित चेतना को जागृतकर समाज के निर्बल वर्ग को सबल बनाने के लिए जिस रिपब्लिकन पार्टी का गठन किया था, उसके भी कई टुकड़े व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के कारण हो चुके हैं तथा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए वे वैचारिक प्रतिबद्धता को तिलांजलि देने में क्षण भर का भी विलम्ब नहीं करते।
भारतीय जनता पार्टी एक ऐसा राजनीतिक संगठन है जो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के अतिरेक से सबसे कम प्रभावित है। जनसंघ के समय से लेकर भाजपा के केंद्र में सत्तारूढ़ होने तक अनेक महत्वपूर्ण पदाधिकारियों जिनमें पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष भी शामिल रहे हैं, समय-समय पर पार्टी को चोट पहुंचाते हुए किनारा किया। कुछ अन्य दलों में गए और कुछ ने पार्टी बनाई। लेकिन उनको राजनीतिक अस्तित्व कभी संज्ञान योग्य नहीं बना। अनेक चुनावी चढ़ाव उतार के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का संगठनात्मक ढांचा सुदृढ़ रहा। यही कारण है कि सैद्धांतिक आस्था की भिन्नता के बावजूद व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए राजनीति करने वालों के लिए वह सदा अनुकूल दिखाई पड़ती रही। आज की राजनीतिक स्थिति में भाजपा का कोई विकल्प नहीं है। प्रधानमंत्री के शासन करने के रवैय्ये और रचनात्मक योजनाओं तथा आत्मविश्वास ने विश्वभर में भारत का मान बढ़ाया है। देश के अवाम में उसके लिए बढ़ती अनुकूलता का स्वाभाविक परिणाम है। विभिन्न राजनीतिक दलों में व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति का पोषण असंभव समझकर पोषण के लिए भाजपा में भगदड़। भाजपा का आम कार्यकर्ता तत्वों को अपने खेमें में आने देने से उसे परहेज नहीं है। लेकिन यदि ऐसे निजी हित चिंतन की राजनीति करने वालों का पार्टी की दशा और दिशा निर्धारित करने में प्रभाव दिखाई पड़ेगा तो निष्ठा और प्रतिबद्धता की स्थिति यथावत बनी नहीं रह सकेगी। यह ठीक है कि विभिन्न राजनीतिक दलों से भाजपा में भगदड़ उसकी चुनावी सफलता के स्पष्ट संकेत दे रहे हैं। इसके लिए सबका साथ और सबका विकास की विश्वसनीयता स्थापित करनी होगी। इसके लिए सबको पार्टी में लेने में तो कोई हर्ज नहीं है लेकिन सभी को स्थापित करने की कोशिश से उसकी छवि को आघात पहुंच सकता है।