चिडिय़ाघर को चिम्पैंजी और गेंडा की जरूरत

हाथी रखने के लिए नहीं है जगह

ग्वालियर। गांधी प्राणी उद्यान चिडिय़ाघर में पिछले तीन-चार सालों में बब्बर शेर, बाघ, तेन्दुआ, हिप्पो, भालू आदि अन्य कई वन्यजीव लाए जा चुके हैं, लेकिन हाथी, गैंडा, जिराफ, जैबरा, लंगूर, चिम्पाजी, मैकाऊ तोता सहित कई ऐसे विलुप्त प्राय: जीव हैं, जिनकी वर्षों से चिडिय़ाघर में जरूरत महसूस की जा रही है, लेकिन नगर निगम प्रशासन ने अभी तक इन वन्यजीवों को लाने के लिए गंभीर प्रयास नहीं किए हैं। हालांकि यहां के चिडिय़ाघरों में हाथी को रखने की अनुमति नहीं है, लेकिन यदि प्रयास किए जाएं तो बांकी के जानवरों को तो लाया ही जा सकता है, जिससे चिडिय़ाघर में निश्चित रूप से सैलानियों की संख्या बढ़ेगी।
हाथी रखने की अनुमति नहीं
ग्वालियर का चिडिय़ाघर करीब 10 से 12 हैक्टेयर क्षेत्र में फैला है, जहां हाथी को आसानी से रखा जा सकता है। यहां सन् 1998-99 तक हाथी रहा भी है, जो मृत्यु को प्राप्त हो गया था, लेकिन उसके बाद से ही इस चिडिय़ाघरों में हाथी रखने की अनुमति नहीं है, जबकि देश के अन्य चिडिय़ाघरों में हाथी को रखने की अनुमति है। इस संबंध में चिडिय़ाघर में आए सैलानियों से चर्चा की तो उनका कहना था कि चिडिय़ाघर में कम से कम एक हाथी तो होना ही चाहिए। सैलानियों का तर्क था कि सर्कस वालों के पास न तो पर्याप्त जगह होती है और न ही जरूरी संसाधन। फिर भी उन्हें हाथी को रखने की अनुमति है, जबकि चिडिय़ाघर में पर्याप्त जगह भी है और जरूरी संसाधन भी। फिर यहां हाथी को रखने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती। इस संबंध में जब वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक राजेश कुमार से बात की तो उनका कहना था कि यह विषय सीधे केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकारण से जुड़ा हुआ है और वन विभाग से इस विषय का कोई लेना देना नहीं है, इसलिए वह इस विषय में कुछ नहीं कह सकते।
गोल्डन फिजेंट व कलिज फिजेंट आएंगे
नगर निगम द्वारा भेजे गए एक प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण ने नैनीताल चिडिय़ाघर से गोल्डन फिजेंट एवं कलिज फिजेंट पक्षी लाने की अनुमति दे दी है। इनके दो-दो जोड़े जनवरी अंत तक या फरवरी के प्रथम सप्ताह में ग्वालियर के चिडिय़ाघर में आ जाएंगे।
लोमड़ी, जंगली सूअर, लंगूर भी आएंगे:- चिडिय़ाघर में लंगूर लाने के प्रयास पिछले दो साल चल रहे हैं। इसके लिए केज बनकर भी तैयार है, लेकिन लंगूर लाने की अनुमति अभी तक नहीं मिल सकी है। बताया गया है कि नगर निगम प्रशासन ने विलासपुर से दो जोड़ा लंगूर, एक जोड़ा लोमड़ी और दो जोड़ा जंगली सूअर लाने के लिए केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण को प्रस्ताव भेजा था, लेकिन अभी तक वहां से स्वीकृति नहीं मिली है।
चिडिय़ाघर में 1995 तक था चिम्पैंजी
चिडिय़ाघर में एक चिम्पाजी 1995-96 तक मौजूद था, लेकिन उम्र पूरी होने से उसकी मृत्यु हो गई थी। बताया गया है कि दिल्ली के चिडिय़ाघर में भी पूर्व में चिम्पाजी थे, लेकिन अब दिल्ली सहित देश के किसी भी चिडिय़ाघर में चिम्पाजी नहीं बचे हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो भारत में चिम्पाजी लगभग विलुप्त हो चुका है।
मादा हिप्पो और हिमालयीन भालू की भी है जरूरत
चिडिय़ाघर में दिल्ली से एक नर हिप्पो लाया गया था। अब इन्दौर से मादा हिप्पो लाने पर विचार चल रहा है। इसी प्रकार यहां एक मादा हिमालयीन भालू भी है, जिसके लिए शिमला से नर हिमालयीन भालू लाने की कवायद चल रही है, ताकि ब्रीडिंग कराकर इनकी वंश वृद्धि की जा सके। ब्रीडिंग के उद्देश्य से नैनीताल से वर्ष 2014 में लाए गए नर-मादा तेन्दुआ के जोड़े को भी केज में एक साथ रखा गया है, लेकिन इनकी वंश वृद्धि नहीं हुई है।

इनका कहना है
लोमड़ी, जंगली सूअर, लंगूर आदि जानवरों को लाने के लिए केन्द्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण को प्रस्ताव भेजा है, जो अभी लम्बित है। चंूकि हाथी को रखने के लिए अतिरिक्त जगह चाहिए, इसलिए यहां के चिडिय़ाघर में हाथी को रखने की अनुमति नहीं है। वहीं गैंड़ा हाथी, जिराफ, जैबरा, चिम्पाजी जैसे विदेशी जानवरों को रखने की भी अनुमति नहीं है। जब नया चिडिय़ाघर बनेगा, तब नगर निगम प्रशासन नए जानवरों को लाने का प्रयास करेगा।
प्रदीप श्रीवास्तव
प्रभारी, गांधी प्राणी उद्यान

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