बीस साल से कर रहे हैं गौसेवा
एक सैकड़ा गायों को प्रतिदिन खिलाते हैं चारा
ग्वालियर। एक सदी पहले तक भारत में जहां इंसानों से ज्यादा संख्या में गाय होती थीं, लेकिन आज हालत यह है कि गायों की संख्या तेजी से कम हो रही है। पहले लगभग हर घर में एक गाय पाली जाती थी और उसकी देखभाल भी परिवार के सदस्य की तरह होती थी, लेकिन आज हालात यह है कि जो लोग अपने घरों में गाय को पालते भी हैं, वह जब तक गाय दूध देती है, तब तक उसका पालन-पोषण करते हैं और दूध देना बंद करते ही उसे भगा देते हैं, लेकिन ऐसे हालातों में जनकताल स्थित मंदिर पर सेवाभावी लोगों द्वारा दिए जाने वाले दान के जरिए एक सैकड़ा से अधिक गायों को पाला जा रहा है। इनमें से 80 प्रतिशत गाय ऐसी हैं, जो दूध नहीं देती हैं।
जनकताल स्थित मंदिर के मंहत बाबा कमलनाथ ने बताया कि वह करीब पच्चीस साल पहले जनकताल पर आए थे। बीस साल पहले वहां पर कुछ भूखी-प्यासी गायों को विचरते देखा तो उनके मन में सेवा भाव उत्पन्न हुआ। इसके बाद उन्होंने भूखी गायों को चारा खिलाना और उनके लिए पानी का इंतजाम करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे गायों की संख्या बढ़ती गई और आज गायों की करीब एक सैकड़ा के करीब पहुंच चुकी है।
गुप्त दान से बनी गौशाला
बाबा ने बताया कि मंदिर पर आने वाले भक्तजनों ने जब गायों की सेवा होती देखी तो उन्होंने भी धीरे-धीरे गायों की सेवा कार्य के लिए दान देना शुरू कर दिया। कभी कोई भक्त भूसे की व्यवस्था कर देता है तो कोई भक्त चूनी व पीना आदि की।
गौशाला में नहीं है कोई खूंटा
जनकताल स्थित गौशाला में एक भी खूंटा नहीं है, जहां गायों को बांधा जाता हो। गाय वहां पर स्वच्छंद रूप से विचरण करती हैं, साथ ही हरियाली अधिक होने के कारण वहां पर इतनी भीषण गर्मी में भी छांव रहती है।
पहाड़ों पर चरने जाती हैं हरियाली
जनकताल के आसपास पहाडिय़ां और चारों और खुली जगह है, साथ ही पहाड़ों पर आज भी हरियाली और पेड-पौधे हैं, जिन्हें चरने के लिए गाय दोपहर में पहाड़ों पर चली जाती हैं।
अन्य पशु पक्षियों की भी होती है देखरेख
मंहत कमलनाथ ने बताया कि यहां गायों के साथ 15 बम्दर भी हैं, जिन्हें प्रतिदिन चना और फल आदि का भोजन दिया जाता है। साथ ही कई प्रकार के पक्षी भी हैं, जिनमें विशेष रूप से मोर, तोता, कबूतर, गौरेया आदि हैं। इन पक्षियों के लिए यहां पर विशेष रूप से दाना डाला जाता है।