उच्च शिक्षण संस्थानों से आरक्षण को दूर रखा जाए: सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देशहित में उच्च शिक्षा संस्थानों से सभी तरह के आरक्षण को हटा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र सरकार को इसके लिए निष्पक्ष होकर फैसला लेने को कहा है। एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर दुख जताया कि आजादी के 68 सालों बाद भी कुछ विशेषाधिकार नहीं बदले हैं।
जस्टिस दीपक मिश्रा और पीसी पंत की बेंच ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को सुपर-स्पेशिऐलिटी कोर्स में मेरिट को प्रमुख आधार मानकर दाखिला देने के कई रिमांइडर देने के बावजूद ऐसा नहीं हो सका है। बेंच का कहना था कि ऐसे कोर्सों में भी अक्सर योग्यता पर आरक्षण भारी पड़ जाता है।
बेंच ने टिप्पणी की, ‘उम्मीद अब भी उम्मीद ही है…अगर बाकियों से प्रतिस्पर्धा हो तो विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की स्थिति अब भी वही है।’ बेंच ने यह भी कहा कि वह 1988 में सुप्रीम कोर्ट के दिए दो फैसलों से पूरी तरह से सहमत है।
मेडिकल संस्थानों में सुपर-स्पेशिऐलिटी कोर्स में दाखिले में आरक्षण पर दिए इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘कोई आरक्षण नहीं होना चाहिए’ क्योंकि उच्च शिक्षा का स्तर सुधारना देशहित में होगा। इसी के साथ देश के लोगों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता भी सुधरेगी। इन फैसलों में कहा गया था, ‘हमें उम्मीद और भरोसा है कि भारत सरकार और राज्य सरकारें बिना देरी किए इस पर गंभीरता से विचार करेंगी और जरूरी निर्देश जारी किए जाने चाहिए।’
सुप्रीम कोर्ट की 27 साल पुरानी टिप्पणी का हवाला देते हुए बेंच ने कहा कि वह उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण पर केंद्र और राज्यों को यही संदेश देना चाहती है। बेंच ने आगे कहा, ‘हम अन्य लोगों की भावनाओं और इच्छाओं को दोहरा रहे हैं ताकि अधिकारी स्थिति का निष्पक्ष होकर अनुमान लगाएं, स्थिति से सही तरह से पेश आएं और देशहित को प्रमुखता दें।’ बेंच ने कई आदेशों का हवाला देकर सरकारी अधिकारियों को कहा कि छात्रों को विभिन्न तरह की छूट देने से बेस्ट कैंडिडेट की बेस्ट ट्रेनिंग पर भी असर पड़ेगा। कोर्ट ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में सुपर-स्पेशिऐलिटी कोर्स में ऐडमिशन में दी जाने वाली छूट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर यह टिप्पणी की।