जनमानस
अम्बेडकर भी आरक्षण के पक्ष में नहीं थे
इसे करने में सक्षम है, भारत के अनेक सम्प्रदायों के संत जिनके लाखों की संख्या में अनुयायी हैं, उन्हें अपनी आध्यात्मिक साधना छोड़कर राष्ट्र साधना करना होगी और बहुत कुम्भ मेलों पर दिखने वाली अपनी ईगो से मुक्ति पाकर जिस प्रकार इस्लाम में तबलीगी जमात घूमती है उसी प्रकार उन्हें भी प्रत्येक हिन्दू जो उनके अनुयायी हैं के घर जाकर उन्हें इस बात के लिए प्रेरित करना है कि वे अपनी जातियों को भूल जाएं। वे यह मानकर चलें कि वे केवल हिन्दू है और सभी हिन्दुओं में रोटी-बेटी का संबंध करने के लिए प्रेरित करें। उन्हें यह सिखाएं कि समाज में कोई ऊंचा-नीचा नहीं होता। समाज एक प्रकार का शरीर है, शरीर का प्रत्येक अंग अपने स्थान पर उपयोगी है, किसी भी अंग के खण्डित होने पर शरीर अपंग हो जाता है, उसी प्रकार समाज का प्रत्येक वर्ग (जाति) उपयोगी है और उसके टूटने से समाज भी अपंग हो जाता है। उद्योगपति सम्मिलित हंै, उनका यह प्रयास है कि सम्पर्क भाषा हेतु विकास करती भाषा को निकालकर फूट पैदा करने वाली और सांस्कृतिक रूप से लोगों को बिगाडऩे वाली विदेशी भाषा को स्थापित करें। इसीलिए वे इस प्रयास में है कि पढ़ाई की दुकानें खुलवाकर विदेशी भाषा को मातृभाषा में बदला जाए। इससे भी आगामी समय में आपसी संघर्ष की संभावना है। जहां तक आरक्षण का प्रश्न है, जिन्हें आरक्षण का देवता माना जाता है, वे श्रद्धेय डॉ. अम्बेडकर भी आरक्षण के पक्ष में नहीं थे, लेकिन कुछ स्वार्थी नेताओं के दबाव में संविधान में आरक्षण की व्यवस्था रखी। मात्र दस वर्ष के लिए लेकिन तत्कालीन सत्ताधारी नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ हेतु आरक्षण की अवधि बढ़ाते हुए बहुसंख्यक समाज एक न हो, क्योंकि इसकी अखण्डता ही राष्ट्र की अखण्डता है। वर्तमान में आरक्षण की स्थिति इस प्रकार कर दी गई है कि वह राष्ट्र की जनता को गृह युद्ध की ओर ले जा रही है। आरक्षण व्यवस्था पर पुन: विचार कर आरक्षण व्यवस्था समाप्त कर देना चाहिए, हां आगे बढऩे में जो अक्षम है यानि साधनहीन गरीब हंै, चाहे वे किसी भी जाति के हों, उन्हें शिक्षा आदि में इतनी सुविधा दी जाए कि वह स्वयं को समर्थ वर्ग के बराबर खड़ा कर सकें। आज स्थिति यह है कि आरक्षित वर्ग अनारक्षित वर्ग से प्रत्येक क्षेत्र में आगे है। अनारक्षित वर्ग का केवल 20 प्रतिशत ही आगे है, अन्य उस स्थिति में पहुंचने वाले है, जिसमें आजादी के पूर्व आरक्षित वर्ग के लोग थे।
अरविन्द भटनागर