भारत की प्रथम महिला आइपीएस किरण बेदी
नई दिल्ली । भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम महिला अधिकारी रहीं किरण बेदी द्वारा राजनीती मे कदम रखते ही दिल्ली की राजनीति में जैसे हडकंप मच गया है। भाजपा ने उन्हें सभावित मुख्यमंत्री के रूप में घोषित किया है। आखिर कौन है किरण बेदी? जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें..
किरण बेदी भारत की पहली महिला पुलिस आईपीएस अधिकारी हैं। उन्होंने स्वेच्छा से रिटायरमेंट लेने के पश्चात समाज सेवा में भूमिका निभाने का निर्णय लिया। किरण बेदी ने 1972 में पुलिस सर्विस को ज्वाइन किया। उन्होंने ईमानदारी से ड्यूटी करते हुए समाज को नई दिशा दिखाने का प्रयास किया। 27 नवबंर 2007 में उन्होंने स्वेच्छा से रियाटरमेंट लेने के बाद किरण बेदी समाज सेवा में जुट गई। लोकपाल बिल को लेकर शुरू किये गये आंदोलन में उन्होंने समाज सेवक अन्ना हजारे व अरविंद केजरीवाल के साथ धरने प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्हें कुछ घंटों के लिए हिरासत में भी लिया गया।
किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा की प्रथम वरिष्ठ महिला अधिकारी हैं। उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दिया है। वे संयुक्त आयुक्त पुलिस प्रशिक्षण तथा दिल्ली पुलिस स्पेशल आयुक्त (खुफिया) के पद पर कार्य कर चुकी हैं। इस समय वे संयुक्त राष्ट्र संघ के 'शांति स्थापना ऑपरेशन' विभाग में नागरिक पुलिस सलाहकार' के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें वर्ष 2002 के लिए भारत की 'सबसे प्रशंसित महिला' चुना गया। द ट्रिब्यून के पाठकों ने उन्हें 'वर्ष की सर्वश्रेष्ठ महिला' चुना।
बेदी का जन्म सन् 1949 में पंजाब के अमृतसर शहर में हुआ। वे श्रीमती प्रेमलता तथा श्री प्रकाश लाल पेशावरिया की चार पुत्रियों में से दूसरी पुत्री हैं। उनके मानवीय एवं निडर दृष्टिकोण ने पुलिस कार्यप्रणाली एवं जेल सुधारों के लिए अनेक आधुनिक आयाम जुटाने में महत्वपूर्ण योगदान किया है। नि:स्वार्थ कर्त्तव्यपरायणता के लिए उन्हें शौर्य पुरस्कार मिलने के अलावा अनेक कार्यों को सारी दुनिया में मान्यता मिली है जिसके परिणामस्वरूप एशिया का नोबल पुरस्कार कहा जाने वाला रमन मैगसेसे पुरस्कार से उन्हें नवाजा गया। उनको मिलने वाले अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की श्रृंखला में शामिल हैं - जर्मन फाउंडे्शन का जोसफ ब्यूज पुरस्कार, नार्वे के संगठन इंटशनेशनल ऑर्गेनाजेशन ऑफ गुड टेम्पलर्स का ड्रग प्रिवेंशन एवं कंट्रोल के लिए दिया जाने वाला एशिया रीजन एवार्ड जून 2001 में प्राप्त अमेरीकी मॉरीसन-टॉम निटकॉक पुरस्कार तथा इटली का 'वूमन ऑफ द इयर 2002' पुरस्कार
राजनीति विज्ञान में व्याख्याता (1970-1972) विमेन, अमृतसर खालसा कॉलेज में के रूप में अपने कैरियर शुरू किया। जुलाई 1972 में, वह भारतीय पुलिस सेवा में शामिल हो गए 7 किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा के कई निर्णयों में नशीले पदार्थों के नियंत्रण, यातायात प्रबंधन और वीआईपी सुरक्षा के क्षेत्रों में विशेष रूप से प्रभावित किया। निरीक्षक कारागार तिहाड़ जेल (दिल्ली) (1993-1995) में, जनरल के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वह जेल के प्रबंधन में सुधार की एक संख्या की स्थापना की । वह तिहाड़ जेल में अपने काम के बारे में लिखने के लिए 1994 के रेमन मैगसेसे पुरस्कार और जवाहर लाल नेहरू फैलोशिप जीता
किरण बेदी को सामान्य लोग केवल इसलिए जानते हैं क्योंकि उन्होंने इंदिरा गाँधी की गाड़ी के ऊपर अवैध पार्किंग का चालान काट दिया था । इससे लोगों को यह लगता है कि किरण बेदी बेहद ईमानदार और कड़ी अधिकारी थी लेकिन किरण बेदी के व्यक्तित्व के कुछ और भी पहलू हैं ।
विवादित कार्यकाल
मिज़ोरम में उप महानिरीक्षक (रेंज) के पद पर रहते हुए किरण बेदी ने अपने पद का इस्तेमाल करते हुए अपनी बेटी का नामांकन लेडी हर्डिंग महाविद्यालय में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में करवा दिया. नामांकन करवाना गलत नहीं था लेकिन किरण बेदी ने अपनी बेटी का नामांकन उत्तर-पूर्व भारतीय कोटा (नॉर्थ ईस्ट कोटा) के तहत करवाया था. ये अलग बात है कि उनकी बेटी ने कभी एमबीबीएस का पाठ्यक्रम पूरा नहीं किया और पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई । इससे भी बड़ी बात यह हुई कि उन्होंने इस संबंध में अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी कोई सूचना नहीं दी. दरअसल उत्तर भारतीय कोटा की सुविधा के पीछे उस क्षेत्र के युवाओं को आगे बढ़ाने की मंशा थी और एक अधिकारी के तौर पर किरण बेदी यह बात बहुत अच्छी तरह जानती थी, लेकिन उन्होंने कानूनी संरचना में ख़ामी का फायदा अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए किया.
बिना अनुमति दो बार पद छोड़ा और चार बार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई
वर्ष 1983 में गोवा और 1992 में मिज़ोरम के पुलिस अधिकारी का पद उन्होंने बिना उच्च अधिकारियों की अनुमति के छोड़ दिया. इसके अलावा चार विभिन्न पदों पर रहते हुए वो वहाँ के लिए निश्चित अपनी सेवा की समयावधि को पूरा नहीं कर पाई. ये अवसर थे- गोवा की पुलिस अधीक्षक, उप महा निरीक्षक(रेंज) मिज़ोरम, निरीक्षक(कारागार) तिहाड़ कारा और निरीक्षक चंडीगढ़ पुलिस. 25 जनवरी 1984 को गोवा पुलिस के निरीक्षक राजेंद्र मोहन को लिखे पत्र में किरण बेदी ने स्वयं स्वीकारा था कि वो अवकाश पर हैं जिसकी उन्हें स्वीकृति नहीं दी गई थी.
तीस हजारी के वकीलों के हड़ताल का बर्बरतापूर्वक दमन
वर्ष 1988 में राजेश अग्निहोत्री नामक वकील पर चोरी का आरोप लगा । लेकिन पुलिस द्वारा उसे हथकड़ी पहना कर लेकर जाने के खिलाफ दिल्ली बार एसोसियेशन हड़ताल पर चली गई। उनके हड़ताल को खत्म करने के लिए तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (उत्तरी दिल्ली) किरण बेदी के आदेश पर पुलिस बलों ने तीस हजारी के हड़ताल कर रहे वकीलों की जम कर पिटाई की. उस समय उन पर यह आरोप भी लगे थे कि एक महापौर की मिलीभगत से किरण बेदी ने वकीलों के खिलाफ हिंसा के लिए एक भीड़ को संगठित करने और उन्हें तीस हजारी तक पहुँचाने में सहयोग की थी. वकीलों की माँग पर मामले की जाँच के लिए न्यायाधीश डी.पी वाधवा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। इस समिति ने अपनी जाँच पड़ताल में किरण बेदी और पुलिस बलों के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाया । इस समिति के तथ्यों को स्वीकारते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे संसद के पटल पर रखते हुए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जाँच के आदेश दे दि॥ इसका मतलब यह था कि मंत्रालय के आदेश पर चल रही विभागीय जाँच में भी अगर किरण बेदी को दोषी ठहरा दिया जाता तो उनको सेवा से बर्ख़ास्त किया जा सकता थ॥ लेकिन फिर मामले को दबा दिया गया और उस फाइल का ठौर छीन लिया गया।
राज्यपाल और उच्च अधिकारियों ने जारी किए हैं उनकी कार्यशैली के खिलाफ लिखित नोट-
उनकी सेवा के दौरान ऐसी भी स्थितियाँ आई है जब राज्यपाल ने उनके खिलाफ लिखित नोट जारी किए हैं। मिज़ोरम में पोस्टिंग के दौरान वहाँ के राज्यपाल ने किरण बेदी से उनके द्वारा 'प्रेस में सूचना लीक' करने का जवाब माँगते हुए अरूचि(डिसप्लेजर) का एक औपचारिक नोट जारी किया था।
किरण बेदी उन पुलिस अधिकारियों में से है जिन्हें भारतीय पुलिस सेवा में अधिकारी के तौर पर काम करते हुए कभी भी राष्ट्रपति से कोई पदक नहीं मिला। जबकि पुलिस में कार्य के दौरान विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति द्वारा हर वर्ष पदक देकर पुलिस अधिकारियों को सम्मानित किया जाता है।
इसके बावज़ूद भी किरण बेदी अपनी वरिष्ठता के आधार पर पुलिस आयुक्त का पद चाहती थी जिसके न मिलने पर उन्होंने पुलिस अधिकारी के तौर पर भारत और यहाँ के नागरिकों की सेवा करने से अप्रत्यक्ष रूप से इंकार करते हुए अपना इस्तीफा सौंप दिया।