ज्योतिर्गमय
ध्यान का महत्व
जीवन में निरंतर समस्याओं से त्रस्त व्यक्ति तनाव का शिकार हो जाता है। तनाव को कम करने के लिए वह मादक द्रव्यों का सेवन करता है। मादक द्रव्यों के सेवन से बाहर का तनाव तो एक बार क्षीण होता हुआ प्रतीत होता है, किंतु भीतरी तनाव कम होने के बजाय और बढ़ जाता है। उस तनाव को न तो मादक पदार्थ दूर कर सकते हैं और न ही औषधियां। अनेक स्थलों पर वैज्ञानिक परीक्षणों से प्रमाणित हो चुका है कि औषधियों द्वारा तनाव और उत्तोजना समाप्त नहीं हुई, जबकि ध्यान के द्वारा काफी हद तक कम अवश्य हो गई। ध्यान के माध्यम सें व्यक्ति बहुत बदल जाता है और उसमें सकारात्मक सुधार आता है। यह जीवन के प्रति नजरिये को बदल देता है जिससे नशा जैसी चीजों से व्यक्ति दूर हो जाता है।
बहुत अधिक नशा करने वाले, अकारण उत्तोजित रहने वाले लोग भी ध्यान में साधना करने के बाद काफी बदले हुए पाए गए और धीरे-धीरे तनाव व कुंठा से मुक्त हो गए। यह निर्विवाद तथ्य है कि आदमी जितना अधिक तनाव में रहता है, उतना ही वह आग्रही होता है। आग्रह की स्थिति में उसे अपनी भूल का अनुभव नहीं होता। ध्यान की मानसिकता अनाग्रह की स्थिति में निर्मित हो सकती है। ध्यान अपने -आप में विनम्रता का प्रयोग है, अनाग्रह का प्रयोग है। ध्यान काल में अहम टूटता है, आग्रह छूटता है, विनम्रता बढ़ती है और अनाग्रह उसे प्राप्त हो जाता है। ऐसी स्थिति में आग्रह को टिकने का स्थान ही नहीं मिलता। अनाग्रही व्यक्ति में परिवर्तन करना नहीं पड़ता, वह तो स्वयं घटित होता है। ध्यान द्वारा तनाव का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाता है। उसके बाद दृष्टि स्पष्ट होती है। ध्यान से आग्रह समाप्त होता है और अनाग्रही चित्ता किसी भी गलत आदत से सहजता से मुक्त हो सकती है। अनेक वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि ध्यान से एकाग्रता बढ़ती है जो सफलता के लिए बेहद आवश्यक है। यह बात तो जाहिर ही है कि किसी भी कार्य को सुचारू रूप से अंजाम देने में एकाग्रता का अत्यंत महत्व है। ध्यान की अवस्था में हम सांसारिक बातों से दूर होकर अपनी अंतस चेतना में उतर जाते हैं, जहां पर हम ईश्वर की अनुभूति कर सकते हैं और आनंदित हो सकते हैं।