उत्तराखंड त्रासदी: आज भी हरे हैं तबाही के जख्म
देहरादून। उत्तराखंड में 16 जून 2013 को आई दैवीय आपदा को एक साल पूरा हो चुका है, लेकिन आज भी तबाही के जख्म भरे नही है। केदारनाथ आपदा की पहली बरसी पर देशभर के लोगों की आंखें फिर भर आई हैं। प्रकृति के कहर से तबाह हुए गांवों में अभी भी जिंदगी पटरी पर नही लौट पाई है।
इतना ही नहीं, सडके, पुल, स्कूल और अस्पतालें पुरी तरह दुरूस्त नही हो पाए है। हालांकि, करोडों रूपये खर्च कर सरकार ने जल्दी से सडकें तो बनवा दी लेकिन ये सडकें खतरे से खाली नहीं है। चार धाम जाने वाली सडकें दो या तीन बारिश की मेहमान हैं। इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों व पीडित परिवारों आपदा में बेघर हुए हजारों परिवारों को एक साल बाद भी नई छत नसीब नहीं हो पाई। चारधाम यात्रा शुरू करने के लिए लगातार हाथ-पैर मारती रही सूबे की सरकार ने अब तक उन 337 गांवों की सुध लेना भी मुनासिब नहीं समझा, जो खतरे के मुहाने पर खडे हैं। बीते साल की त्रासदी का साया अब भी उत्तराखंड पर मंडरा रहा है।
पर्यटन व्यवसाय पर टिके इस सूबे के लिए बडी चुनौती है यात्रियों का भरोसा बहाल करना। तब के अब तक तीर्थयात्रियों की संख्या में आई गिरावट से यहां के होटल-गेस्टहाउस कारोबार की कमर तोड कर रख दी है। ऎसे हर परिवार को नए आवास के लिए चार किश्तों में पांच लाख रूपये दिया जाना है। करीब 2265 परिवारों को डेढ लाख रूपये की पहली किश्त दी जा चुकी है, जबकि 77 परिवारों के लिए भूमि चयन की प्रक्रिया जारी है।
साथ ही, 200 परिवारों को दो लाख रूपये की दूसरी किश्त दे दी गई है। सरकार ने दावा किया था कि केदारनाथ से सभी शवों को हटाकर उनका दाह संस्कार कर दिया गया है लेकिन एक साल बाद नरकंकालों के मिलने की खबर सुनकर उन लोगों के मन फिर विचलित हो गए जिन्होंने अपनों को खो दिया। लोग अपनों के बाकी बचे अवशेषों के तलाश में फिर उत्तराखंड पहुंच गए हैं।